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बिहार
ससमय वैज्ञानिक अभियान नहीं चला तो मेहसी के 80 प्रतिशत से ज्यादा लीची चट कर जाएगें अज्ञात कीट
By Deshwani | Publish Date: 10/2/2019 11:00:00 AM
ससमय वैज्ञानिक अभियान नहीं चला तो मेहसी के 80 प्रतिशत से ज्यादा लीची चट कर जाएगें अज्ञात कीट

मोतिहारी। मेहसी से हामिद रजा की रिपोर्ट।

देश के सबसे बड़े लीची उत्पादक परिक्षेत्र बिहार के पूर्वी चम्पारण के मेहसी के किसान अज्ञात लाल कीट से सहमे हुए हैं। पिछले वर्ष इस लाल कीट यानी Red bitter या स्टींग बग के हमले की शुरुआत मेहसी के लीची बगानों की फसलों पर हुई थी। इस कीट के वैज्ञानिक या zoological नाम अभी ठीक-ठीक किसी कृषि वैज्ञानिकों ने नहीं बताया है। कोई इसे रेड बीटर, स्टिंग बग तो कोई आज्ञात लाल कीट कह रहा है। यहां के किसानों को बस इतना पता है कि पिछलेे वर्ष इस कीट ने करीब 80 प्रतिशत लीची की फसलों को बर्बाद कर दिए थे।
 
 
 समय पर इसका निदान नहीं किया गया तो 100 करोड़ रुपये से ज्यादा की फसल के नुकसान होने की आशंका जताई गई है। पिछले वर्ष इस कीट के हमले के नुकसान से यहां के किसान अभी तक नहीं उबर पाए हैं। लिहाजा इस वर्ष भी लीची के मंजरों पर इस कीट की उपस्थिति काफी देखने को मिल रही है। 
 
 
इस परिक्षेत्र में करीब 11 हजार हैक्टेयर में लीची के पेड़ हैं। अब लीची के पेड़ों में मंजर आना शुरू हो गया है। रविवार को मुजफ्फरपुर के वैज्ञानिकों ने पेड़ों को हिलाकर देखा तो वे कीट जमीन पर गिरे। उन्होंने किसानों को दवा के छिड़काव के सुझाव दिए हैं। किसानों को 10 से 15 फरवरी तक पहला व 20 से 25 फरवरी तक कीट नाशक दवा के दूसरे छिड़काव की सलाह दी है। लिहाजा राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुसहरी मुजफ्फरपुर व कृषिकेन्द्र पीपराकोठी, मोतिहारी के वैज्ञानिकों के बड़े अभियान की जरूरत है।

राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुसहरी मुजफ्फरपुर द्वारा कार्यान्वित फार्मर फ़र्स्ट परियोजना अंतर्गत मेहसी के मिर्जापुर में कुछ लीची बगीचों का भ्रमण एवं सर्वेक्षण अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ कुलदीप श्रीवास्तव एवं डॉ संजय कुमार सिंह ने रविवार को किया। वैज्ञानिकों इस बार लीची के मंजर व फल को बचाने के लिए पहले से ही तैयारी कर रहे हैं। गत वर्ष लीची के फल और मंजरों पर स्टिंग बग कीट से काफी नुकसान हुआ था। कीट के कारण 80% फल झड़ गया था। इस वर्ष इस तरह की कोई समस्या ना हो। 

इसके लिए अभी से ही केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह के निर्देश पर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर के निदेशक डॉ विशाल नाथ की देख रेख में एक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। निरीक्षण के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि कई पेड़ों पर स्टिंग बग का प्रौढ़ अभी मौजूद है। पौधे या उनकी शाखाओं को जोर से हिला कर देखने पर कुछ प्रौढ़ कीट जमीन पर गिरे हैं। इसका मतलब है कि इन कीटों का पूरी तरह सफाया नहीं हुआ है। इनका प्रकोप फिर से होने वाला है। यही प्रौढ़ कीट हजारों की संख्या में अंडा देगी जिसके बच्चे पूरे मंजर एवं फल को सफाचट कर देंगे।
 
 
 
वैज्ञानिकों ने किसानों को तत्काल लीची के पौधों को हिला कर स्टिंग बग को नीचे गिरा कर गिरे हुए प्रौढ़ स्टिंग बग को इकट्ठा कर जमीन में दबा देने की सलाह दी है। जिन किसानों के बगीचे में पिछले वर्ष अत्यधिक प्रकोप था वह अभी तत्काल ट्राइजोफाश 15 मि.ली. में थापोक्लोप्रिड 0.5 मि.ली. एवं स्टीकर का घोल 0.3 मि.ली. को एक लीटर पानी में घोलकर पेड़ों पर छिड़काव करें। उपयुक्त दोनों रसायन एवं स्टीकर का ज्यादा घोल बनाने हेतु दवा की मात्रा प्रति लीटर के अनुसार ही गुणित कर ही पानी मिलाएं। पहला छिड़काव 10 से 15 फरवरी एवं दूसरा छिड़काव 25 से 28 फरवरी 2019 को करने की सलाह दी गई। वैज्ञानिकों का आकलन था कि यह प्रयास सामूहिक स्तर पर करने से अत्यधिक लाभ होगा। जिनके पास कम पेड़ हो तो पेड़ को हिला कर ही कीटों को मारा जा सकता है। किसी प्रकार की समस्या आने पर वैज्ञानिकों ने संपर्क करने का आग्रह किसानों से किया। 
 
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