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मोतिहारी
युवाओं को मंथन करना होगा, जेपी के सपनों का भारत चाहिए या जातियों में विभक्त देश - प्रो विनय
By Deshwani | Publish Date: 10/10/2018 8:50:11 PM
युवाओं को मंथन करना होगा,  जेपी के सपनों का भारत चाहिए या जातियों में विभक्त देश - प्रो विनय

मोतिहारी। प्रो विनय कुमार वर्मा। देशवाणी न्यूज नेटवर्क।

जीवन के हर क्षेत्र में मूल्यों का ह्रास हुआ है। आज का युवावर्ग विकृत राजनीति के प्रभाव में जात-पात के चंगुल में जकड़ा हुआ है। भारत को संवारने वाले देश भक्त सपूतों ने जिस कल्पना को साकार करने के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान किया, आज उनकी आत्मा चित्कार कर रही होगी। नकरात्मक राजनीति के तहत शहीदों की कुर्बानियों को दरकिनार करते हुए अलगाववािदयों, आंतकवादियों और अतिवादियों को महिम-मण्डित किए जाने का घृणित कुकर्म  किया जा रहा है, लेकिन स्मरण रहे िक आने वाला समय उन्हें कठघरे में जरूर खड़ा करेगा और इतिहास के पृष्ठों में उनका घृणित कर्म चीख-चीख कर उनके काले कारनामें की कहानी बयान करेगा।
 
 
 
स्वामी विवेकानन्द ने अध्यात्मा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने ""तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'' महात्मा गांधी, लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से राष्ट् भक्ति का दर्शन बताते हुए आजादी की लड़ाई लड़ी। इनके साथ दूसरी धारा में भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, अशफकुल्लाह खां, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहूति देकर भारत माता के माथे पर लहु का तिलक लगाया।
 
 

 अब सोचना आपको है कि हमारे एेसे महान वीर सपूतों के सपनों का भारत चाहिए या िवखण्डित मानसिकता के सपनों का भारत चाहिए। जहां सिर्फ विध्वंश हो सृजन का सपना अंधकार में डूबा हुआ हो। आज 11 अक्टूबर है अथवा लोकनायक जयप्रकाश की 116वीं जयंती है। 74 आन्दोलन का एक सिपाही होने के नाते अपने देशवािसयों खास कर युवा वर्ग को मैं यह याद दिलाना चाहता हूं िक आजादी की लड़ाई में सन 1942 के आन्दोलन के प्रणेता जयप्रकाश महात्मा गांधी समेत सभी बड़े नेता जेल भेज दिए गए। अगस्त क्रान्ति के नायक जयप्रकाश नारायण ने उस समय आन्दोलन की बागडोर सम्भाली जब  ""अंग्रेजो भारत छोड़ों'' का शंखनाद करते देश को ऐसा आन्दोनलित किया। जिसके आजादी का सूरज नई अंगड़ाई के साथ उगा। आजादी के बाद जेपी ने भारत के सर्वोच्च पद के प्रस्ताव को ठुकराते हुए देश की सेवा का संकल्प लिया। सन 1974 में बिहार की भ्रष्ट सरकार के खिलाफ छात्रों ने आन्दोलन की शु़़रूआत की। आन्दोलन से जुड़े छात्र नेताओं ने जेपी से आन्दोलन का नेतृत्व करने का प्रार्थना की जिसे जेपी ने स्वीकार किया।
 
 

 जेपी के नेतृत्व में छात्रों का यह आन्दोलन जन आन्दोलन का  रूप ले लिया। आन्दोलन को समाज के सभी वर्गाे का समर्थन मिलने लगा। आन्दोलन की गति से घबरा का अन्दोलन की गति से घबरा कर तत्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण, अटल िबहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख एवं अन्य नेताओं के साथ कई छात्र नेताओं भूमिगत रह कर आन्दोलन की मशाल को प्रज्जवलित रखा। देश भर में एक ही दिन प्रत्येक शुक्रवार को लोकवाणी के माध्यम से देशवासियों के समक्ष बाते रख्ी जाती है। यहां तक कि अमला भौचंक रह गए देश भर में समाज के हर वर्ग के प्रतिकार के कारण जनवरी 1977 को आपातकाल को शिथिल करते हुए आम चुनाव की घोषणा की गयी। लेिकन पद लोलूप अति महत्वकांक्षी नेताओं के कारण सरकार गिर गयी। 085 अक्टूबर 1979 को जेपी ब्रह्रालीन हो गए। 74 के आन्दोलन को दूसरी आजादी की लड़ाई भी कहा गया। देश भर के बुद्धिजीिव, कलाकार, साहित्यकार, समाज शास्त्री, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ अर्थात समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं था। जिसने जेपी के आह्रवान पर अान्दोलन में शामिल नहीं हुआ। तत्कालिन संक्रमणकाल को व्याख्यायित करते हुए दुष्यंत कुमार ने लिखा- एक बूढ़ा मुल्क में या यूं कहो इस अंधेरी कोठरी में एक रौशनदान है।
 

राष्ट्र कवि दिनकर ने कहा-  वह सुनो भविष्य पुकार रहा, वह दलित जाति त्राता है। स्वप्नों का द्रष्टा जय प्रकाश, भारत का भाग्य विधाता है।
 
 
(लेखक प्रो विनय कुमार वर्मा जेपी आंदोलन के अग्रणी सिपाही रहे हैं।)
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