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महात्मा गांधी सत्याग्रह सताब्दी वर्ष पर रक्सौल को नकार देना उचित नहीं- डॉ शलभ
By Deshwani | Publish Date: 3/4/2018 8:10:41 PM
महात्मा गांधी सत्याग्रह सताब्दी वर्ष पर रक्सौल को नकार देना उचित नहीं- डॉ शलभ

रक्सौल।
डॉ प्रो स्वयंभू शलभ के विचारों पर आधारित अनिल कुमार की रिपोर्ट।

महात्मा गांधी सत्याग्रह शताब्दी वर्ष' के अवसर पर रक्सौल से जुड़े महात्मा गांधी के संदर्भों पर विचार किये जाने की मांग करते हुए डा. प्रो. स्वयंभू शलभ ने कहा है कि केंद्र सरकार और बिहार सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में मोतिहारी को केंद्र बनाया जाना उचित है, परंतु रक्सौल को नकार देना उचित नहीं।
इस अपील को प्रधानमंत्री कार्यालय में गत 1 अप्रैल को अवर सचिव श्री अंबुज शर्मा ने निबंधित किया।
वहीं इस आशय का मेल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित साह, प्रदेश अध्यक्ष श्री नित्यानंद राय, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा, मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री श्री सुशील मोदी, पर्यटन मंत्री बिहार श्री प्रमोद कुमार, सांसद डा. संजय जायसवाल, विधायक डा. अजय कुमार सिंह समेत डीएम मोतिहारी एवं एसडीओ रक्सौल को भी भेजा गया है।
महात्मा गांधी के रक्सौल आगमन से संबंधित पुस्तकों, संदर्भों और रक्सौल के लोगों की समस्या को लेकर हरदिया कोठी के मैनेजर जे.पी.एडवर्ड को लिखे महात्मा गांधी के पत्रों का हवाला देते हुए बताया गया है कि रक्सौल को इस समारोह की श्रृंखला से अलग रखना न सिर्फ इस ऐतिहासिक भूमि के प्रति अन्याय होगा बल्कि आने वाली पीढ़ियां भी चंपारण सत्याग्रह के इतिहास को समग्रता से नहीं समझ पाएंगी।
-9 नवम्बर 1920 को महात्मा गांधी आए थे रक्सौल
 बताया गया है कि 9 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी रक्सौल आये थे। डा. राजेन्द्र प्रसाद, मजरूल हक और शौकत अली भी उनके साथ थे। यहां के पुराने एक्सचेंज रोड स्थित हरि प्रसाद जालान की पथारी में उन्होंने भाषण दिया था जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खोलने का आह्वान भी किया। उस सभा में रक्सौल के साथ सीमावर्ती क्षेत्र के लोग भी शामिल हुए। उन लोगों ने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा था। उस आह्वान पर 1921 में रक्सौल के पुराने एक्सचेंज रोड में राष्ट्रीय गांधी विद्यालय की स्थापना हुई जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में क्रांतिकारियों की शरणस्थली भी बनी। महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे स्व. महादेव देसाई की डायरी के पन्ने इस यात्रा की पुष्टि करते हैं। इस डायरी को चंपारण सत्याग्रह का एक प्रामाणिक दस्तावेज माना जाता है। Gandhi heritage portal/ Collected works of Mahatma Ganghi में भी इसका जिक्र मिलता है। डा. राजेन्द्र प्रसाद की पुस्तक 'Satyagraha in Champaran' समेत के. के. दत्ता की पुस्तक में भी गांधी की इस यात्रा का वर्णन है। 1979 में इस सीमा क्षेत्र का इतिहास 'रक्सौल - अतीत और वर्तमान' के नाम से प्रकाशित हुआ था जिसके लेखक शिक्षाविद् श्री कन्हैया प्रसाद (सेवानिवृत शिक्षक) हैं। इस ऐतिहासिक दस्तावेज में भी महात्मा गांधी की रक्सौल यात्रा का बाकायदा उल्लेख किया गया है।
 
1907 में हडसन साहब के मैनेजर फलेजर साहब ने रक्सौल नगर की नींव डाली थी और इस क्षेत्र के सुनियोजित विस्तार के लिए लोगों को प्रेरित किया था। इसलिए इस नगर को 'फलेजरगंज' के नाम से भी जाना गया। बाद में मैनेजर जे.पी.एडवर्ड ने भी इस नगर के विस्तार में दिलचस्पी ली। जिनका निवास स्थान इस क्षेत्र में 'हरदिया कोठी' बना। 17 एवं 21 मई 1917 को महात्मा गांधी द्वारा जेपी एडवर्ड को लिखे पत्र भी रक्सौल के लोगों की समस्याओं पर महात्मा गांधी की चिंता को दर्शाते हैं।
महात्मा गांधी के साथ रक्सौल के संदर्भों को समझने के लिए 'फलेजरगंज', 'हरदिया कोठी' और 'रक्सौल बाजार' को भी जोड़कर देखना होगा। रक्सौल नाम उस समय ज्यादा प्रचलन में नहीं था। ऐतिहासिक कार्यों का अध्ययन करते समय इतिहासकार के उल्लेखों को साक्ष्यों और तथ्यों के आलोक में देखे जाने की आवश्यकता होती है। उपरोक्त पुस्तकें जो महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन से जुड़े विभिन्न संदर्भों का विवरण देती हैं। उनके साथ यहां के इतिहासकारों और विज्ञों की राय लेकर इस शृखला में रक्सौल को भी शामिल करने की मांग की गई है।
 
 
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