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21 मार्च को नहाय-खाय से प्रारंभ होगा चैती छठ का चार दिनी अनुष्ठान
By Deshwani | Publish Date: 20/3/2018 6:32:06 PM
21 मार्च को नहाय-खाय से प्रारंभ होगा चैती छठ का चार दिनी अनुष्ठान

पीपराकोठी। माला सिन्हा

 इस वर्ष लोक आस्था का महान पर्व चैती छठ का प्रारंभ 21 मार्च बुधवार को नहाय-खाय से होगा. गुरुवार को खरना,शुक्रवार को सायंकालीन अर्घ्य एवं शनिवार प्रातःकालीन अर्घ्य के बाद पारण होगा. हमारी भारतीय संस्कृति भगवान सूर्य को परब्रह्म के रूप में मानती है। जहाँ तक छठ माता का संबंध है,जिनकी पूजा सूर्यषष्ठी व्रत के रूप में है, यह एक शक्तिरूपा मानी जाती हैं. उक्त बातें महर्षिनगर स्थित आर्षविद्या शिक्षण प्रशिक्षण सेवा संस्थान-वेद विद्यालय के प्राचार्य सुशील कुमार पाण्डेय ने कही. आगे उन्होंने बताया कि इनकी पूजा पौराणिक काल से चली आ रही है,जिसका निर्देश अपने लौकिक पारंपरिक छठव्रत की कथाओं,मान्यताओं एवं महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले गीतों में मिलता है और यह प्रत्यक्ष भी है. सूर्यषष्ठी व्रत का विधान सृष्टिकाल से ही चला आ रहा है. यह व्रत सत्युग में नागकन्या के उपदेश से शर्याति नामक राजा की पुत्री सुकन्या ने किया था. पौराणिक मान्यता के अनुसार दुर्योधन द्वारा कपट पूर्वक जुआ में राज्यलक्ष्मी खो जाने के बाद घोर संकट से ग्रस्त वनवासी पांडवों की दुर्दशा देख द्रौपदी ने धौम्य ऋषि की आज्ञा से इस व्रत को किया था. इसके प्रभाव से पांडवों की राज्यलक्ष्मी पुनः वापस हो गयी. रावण से युद्ध को जाने से पहले अगस्त्य ऋषि द्वारा राम को आदित्य हृदयस्तोत्र का पाठ करवाना सूर्यदेव की महत्ता को दर्शाता है. सूर्य और षष्ठी दोनों की एक साथ उपासना करने से अनेक वांछित फलों को प्रदान करने वाला यह व्रत वास्तव में महत्वपूर्ण है. व्रती माताओं में छठी माता शक्तिरूप में विद्यमान होकर जगत् का कल्याण करती है,यह प्रत्यक्ष देखा जाता है. सामाजिक शक्ति के रूप में छठी माता घाटों पर श्री सविता (सिरसोप्ता) के रूप में बनायी जाती हैं और अस्ताचल होते हुए सूर्य के प्रकाश से उनका सम्बंध बिठाया जाता है,जो एक शक्ति का प्रत्यक्ष रूप ही है. शास्त्रीय मान्यता के अनुसार षष्ठी माता को ब्रह्मा की मानस पुत्री माना जाता है,जिनकी पूजा बालकों के जन्म,नामकरण,अन्नप्राशन आदि अवसरों पर संतान के आरोग्यता एवं दीर्घजीवन के लिए की जाती है. आज भी शिशु के जन्म से छठे दिन षष्ठी पूजन (छठियार) बड़े धूम-धाम से सोहर आदि मांगलिक गीतों एवं वाद्यों के वातावरण में किया जाता है. इससे पूर्णतया स्पष्ट होता है कि षष्ठी माता शिशुओं के संरक्षण एवं संवर्धन से संबंधित देवी हैं तथा इनकी विशेष पूजा षष्ठी तिथि को होती है. छठ के दिन श्रीसूक्त,पुरुषसूक्त,सूर्यसूक्त एवं आदित्यहृदय स्तोत्र का पाठ करने तथा ॐघृणि सूर्याय नमः से अर्घ्य देने का विशेष महत्व है. सूर्यषष्ठी व्रत श्रद्धा व विश्वास पूर्वक करने से परिवार में दरिद्रता नही आती. यह पूजा जीवन के दुःखों को दूर करने तथा विशेष कोढ़,सफेद दाग जैसे रोगों से मुक्ति के लिए,ज्ञाताज्ञात समस्त पापों से मुक्ति के लिए एवं पुत्र प्राप्ति के साथ समस्त मनोवांछित फलों की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण है.

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