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झारखंड
दो ध्रुवों में बंटते दिख रहे झारखण्ड के विपक्षी दल
By Deshwani | Publish Date: 11/11/2017 5:05:44 PM
दो ध्रुवों में बंटते दिख रहे झारखण्ड के विपक्षी दल

 रांची, (हि.स.)। झारखंड में महागठबंधन बनाने की कवायद परवान चढ़ने से पहले ही नीचे गिर जाती है। कुछ दिनों से राज्य के मुख्य विपक्षी दलों ने अपने को एकजुट दिखाने का दिखावा जरुर कर रहे हैं लेकिन इन सब के बीच एक नए गठबंधन की सुगबुगाहट देखी जा रही है। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) गठबंधन को लेकर बात तो करती है लेकिन, वह चाहती है कि उसके झंडे के नीचे राज्य के अन्य विपक्षी दल आएं । उनके इस अड़ियल रवैया से अब प्रदेश में झारखण्ड विकास मोर्चा-कांग्रेस और वामदल एक महाजुटान की तैयारी कर रहे हैं जिसकी अगुवा कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय, झाविमो के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी है । 

इन तीनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने राजधानी रांची के अलावा अन्य जिला मुख्यालयों पर भी आपसी समन्वय दर्शाने की कोशिश की है । इन दोनों शीर्ष नेताओं ने बातचीत में बताया कि राज्य में भाजपा को रोकने के लिए महागठबंधन की जरूरत है । 

सीएनटी-एसपीटी सहित प्रदेश के आदिवासी-मूलवासियों की परम्परा का हवाला देकर मुख्य विपक्षी दल झामुमो, झाविमो, कांग्रेस, राजद और वामदलों ने राज्य सरकार के विरुद्ध संयुक्त रुप से आंदोलन छेड़ा। इसके तहत रांची से लेकर दिल्ली तक आंदोलन और धरना-प्रदर्शन का दौर चल रहा है लेकिन शुक्रवार को महाजुटान की तैयारी के तहत विपक्ष की प्रेसवार्ता में झामुमो –राजद के प्रतिनिधियों का न आना कहीं न कहीं प्रदेश में दो ध्रुवों की ओर इशारा कर रहे हैं । झामुमो-राजद का मुख्य आधार वोट बैंक (मुस्लिम-ईसाई) है । ऐसे में उन्हें डर लग रहा है कि राज्य के पहले मुख्यमंत्री और धुर हिन्दूवादी बाबूलाल मरांडी के साथ आने से उनका आधार वोट खिसक सकता है । इसलिए झामुमो की ओर से इस तरह के संयुक्त अभियान से खुद को अलग रखने की कवायद काफी दिनों से चल रहा है । पार्टी प्रवक्ताओं ने शुक्रवार को प्रेसवार्ता में न पहुंचने की वजह शीर्ष नेताओं की पहले से तय बैठक का हवाला दिया । 

इधर विपक्षी एकता में पड़ रही दरार से झाविमो समेत अन्य दलों के नेता हतप्रभ हैं । पिछले दिनों बिहार क्लब में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय की उपस्थिति में बनी लंबी चौड़ी रणनीति का आखिर क्या होगा, वह किसी को पता नहीं लेकिन सत्तारुढ़ भाजपा इससे जरूर फीलगुड में है क्योंकि विपक्ष में बिखराव उसके लिए राहत देने वाला होगा। झाविमो नेता बंधु तिर्की कहते हैं कि अलग अलग लड़ना जनता के साथ धोखा होगा। अकेले लड़ाई जीती भी नहीं जा सकती । बहरहाल, अपने-अपने हित साधने के चक्कर में लगे विपक्षी दलों ने संयुक्त विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश तो जरूर की लेकिन वह अभी तक सफल होती नहीं दिख रही है।

झाविमो के महासचिव बंधु तिर्की ने कहा कि महागठबंधन बनाना जरूरी है। राज्य में अभी कॉरपोरेट परस्त सरकार की वजह से आदिवासी-मूलवासियों की सुध लेना वाला कोई नहीं है। वर्तमान सरकार उद्योगपतियों की सरकार है। इसे यहां की जनता से कोई वास्ता नहीं। उन्होंने कहा कि इसलिए महागठबंधन जरूरी है। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्य कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने कहा कि भाजपानीत रघुवर सरकार पूंजीपतियों की परस्त है। उन्होंने विपक्ष का आह्वान किया कि झारखंड स्थापना दिवस के दो दिन पहले 13 नवम्बर को सभी विपक्षी दल, आदिवासी संगठन एकजुट होकर रघुवर सरकार की नीतियों के विरोध में राजभवन के सामने महाधरना दें लेकिन उनका यह आह्वान कितना कारगर साबित होता है यह सोमवार को ही पता चल पायेगा। फिलहाल प्रदेश में विपक्ष दो ध्रुवों में बंटता जरूर दिख रहा है।

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