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मानवता पर सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे आतंकवाद पर सामूहिक रूप से निपटने की जरूरत: प्रधानमंत्री मोदी
By Deshwani | Publish Date: 28/9/2019 11:20:12 AM
मानवता पर सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरे आतंकवाद पर सामूहिक रूप से निपटने की जरूरत: प्रधानमंत्री मोदी

- आतंकवाद किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए समस्या
 
न्यूयॉर्क/नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से दुनिया से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। पीएम मोदी ने दुनियाभर के नेताओं को आगाह किया कि आतंकवाद सबके लिए घातक है। यह मानवता के खिलाफ है। इससे लड़ने के लिए सबको एकजुट होना पड़ेगा।
 
संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें अधिवेशन को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि आंतकवाद के खतरे के बारे में भारत जो चेतावनी दे रहा है उसमें गंभीरता और आक्रोष दोनों है। आतंकवाद मानवता पर मंडरा रहा सबसे बड़ा संकट है और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के मूल उद्देश्यों के लिए एक चुनौती है। आतंकवाद किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए समस्या है।
 
मोदी ने आतंकवाद के खतरे के संबंध में पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन उन्होंने विश्व समुदाय का ध्यान इस संकट की ओर आकृष्ट कराया तथा आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक कार्रवाई पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने विश्व को युद्ध नहीं बल्कि बुद्ध दिया है। संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में सबसे अधिक भागीदारी भारत की है तथा भारतीय सैनिकों ने ही सबसे अधिक बलिदान दिया है। 
 
मोदी ने उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह सब हम भारत की 130 करोड़ जनता के लिए ही नहीं बल्कि इससे पूरी दुनिया को लाभ मिलेगा। उन्होंने दुनिया के अन्य विकासशील देशों के साथ भारत को जोड़ते हुए कहा कि उनकी समस्याओं और सुख-दुख में हम भागीदार हैं। भारत चाहता है कि विकास यात्रा के उसके अनुभवों का लाभ इन देशों के लोगों को भी मिले। भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के आदर्श के बारे में तीन हजार वर्ष पूर्व तमिल कवि कणियन पूंगुन्ड्रनार की कविता "यादुम् ऊरे, यावरुम् केड़िर” उद्धृत की, जिसमें दुनिया में कहीं भी रहने वाले मानव के साथ अपनेपन की अभिव्यक्ती की गई थी। इस कवित का शाब्दिक अर्थ है- "हम सभी स्थानों के लिए अपनेपन का भाव रखते हैं और सभी लोग हमारे अपने हैं।”
 
मोदी ने पांच वर्ष पूर्व संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन को संबोधित करने का जिक्र करते हुए कहा कि इस बार वह पहले से भी अधिक मजूबत जनादेश हासिल करने के बाद इस विश्व मंच पर आए हैं। यह जनादेश पहले से बड़ा और व्यापक ही नहीं बल्कि प्रेरक भी है। मोदी ने भारत में स्वच्छता अभियान की सफलता का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले पांच वर्षों के दौरान देश में 11 करोड़ शौचालय बनाए गए। यह दुनिया के लिए प्रेरक संदेश है। आयुष्मान भारत के रूप में दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की गई जिसके अंतर्गत 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपये तक की नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई। उन्होंने कहा कि वित्तीय समावेशन के लिए 37 करोड़ लोगों के बैंक खाते खुलवाये गए जिससे गरीबों में विश्वास पैदा हुआ।
 
पर्यावरण सुरक्षा के बारे में भारत की प्रतिबद्धता का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन में भारत की भागीदारी सबसे कम है लेकिन इसे रोकने के अभियान में भारत अग्रणी है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र भवन की दीवार पर ‘एकल उपयोग प्लास्टिक’ को रोकने संबंधी उक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि महात्मा गांधी की जयंती दो अक्टूबर से देश में इस तरह के प्लास्टिक पर पूरी तरह रोक का अभियान शुरू किया जाएगा। मोदी के इस कथन पर सभागार में करतल ध्वनि हुई।
 
गरीबी और रोगों से लड़ने के लिए भारत में किए जा रहे उपायों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम तपेदिक (टीबी) के खात्मे के लक्ष्य विश्व के लक्ष्य से पांच साल पहले ही 2025 पूरा कर लेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के लोगों को यह आश्चर्य हो सकता है कि भारत विकास के लक्ष्यों को इतनी जल्दी कैसे हासिल कर पा रहा है। इसका उत्तर देते हुए मोदी ने कहा कि यह जनभागीदारी से ही संभव है। भारत की संस्कृति और संस्कार हमें ‘जीव में शिव’ का संदेश देते हैं। इसी के अनुरूप हम तेजी से बदलाव कर पा रहे हैं। हमारे सपने वैश्विक हैं और हम जन कल्याण से जगत कल्याण सुनिश्चित करना चाहते हैं।
 
मोदी ने विश्व समुदाय को प्राकृतिक आपदा का मुकाबला करने में सक्षम आधारभूत ढांचे का विकास करने के लिए प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय गठबंधन में शामिल होने का आमंत्रण दिया। निरापद उर्जा के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर उर्जा गठबंधन की पहल करने के बाद भारत की यह दूसरी पहल है।
 
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एकतरफा कार्रवाई और संरक्षणवाद का विरोध करते हुए मोदी ने कहा कि ‘बिखरी हुई दुनिया किसी के हित में नहीं है।’ किसी भी देश के लिए यह उचित नहीं है कि वह अपने देश की सीमाओं में सिमट जाए। उन्होंने बहुपक्षीय सहयोग और संयुक्त राष्ट्र की केन्द्रीय भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि इस विश्व संस्था को अधिक ताकत एवं नई दिशा देनी होगी।
 
अपने भाषण का अंत करते हुए मोदी ने कहा कि शिकागो की धर्म संसद में 125 वर्ष पूर्व स्वामी विवेकानंद ने सौहार्द और शांति का संदेश दिया था। आज भी भारत दुनिया को यही संदेश दे रहा है।  
 
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