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नेतृत्व तय करने के लिए जरूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करे श्रीलंका: अमेरिका
By Deshwani | Publish Date: 1/11/2018 2:53:36 PM
नेतृत्व तय करने के लिए जरूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करे श्रीलंका: अमेरिका

वॉशिंगटन। अमेरिका ने कहा है कि फिलहाल उसका ध्यान इस बात पर है कि श्रीलंका अपने नेतृत्व को तय करने के लिये जरूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करे। श्रीलंका में राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के गत शुक्रवार को रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त करके और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को इस पद पर नियुक्त करने से देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था।

 
अमेरिका के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता रॉबर्ट पालाडिनो ने यहां संवाददाताओं से कहा कि अमेरिका फिलहाल इस बात पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुये है कि श्रीलंका में नेतृत्व तय करने के लिए जरूरी संवैधानिक प्रक्रिया का पालन हो। उन्होंने बताया कि अमेरिका राष्ट्रपति से अपील करता है कि वह तत्काल स्पीकर से बातचीत करके संसद का सत्र बुलाएं और लोकतांत्रिक तरीकों से निर्वाचित प्रतिनिधियों को सरकार का नेतृत्व करने वाले का चयन करने का उत्तरदायित्व प्रदान करें।  
 
उन्होंने कहा कि हम सभी पक्षों से आग्रह करते हैं कि वे कानून का पालन करें और उचित प्रक्रिया का सम्मान करें। हालांकि, उन्होंने इस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि क्या अमेरिका श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री को मान्यता देता है। पालाडिनो ने कहा कि यह संसद को तय करना है कि प्रधानमंत्री कौन है।  
 
आपको बता दें कि रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से अचानक हटाए जाने के बाद देश में राजनीतिक संकट पैदा हो गया था। हालांकि, राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना का कहना है कि अगर संसद के इस सत्र में रानिल विक्रमसिंघे को बुलाया गया या फिर उन्हें दोबारा प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश की गई तो वह इस्तीफा दे देंगे।
 
वहीं संसद के स्पीकर कारू जयसूर्या ने चेतावनी दी है कि वह महिंद्रा राजपक्षे को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठने देंगे। स्पीकर के दफ्तर की ओर से कहा गया है कि वह संसद में राजपक्षे को पीएम की कुर्सी पर नहीं बैठने देंगे। राष्ट्रपति सिरिसेना ने गत शुक्रवार को नाटकीय घटनाक्रम में विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद से हटाकर उनकी जगह पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि इसका मकसद सांसदों को विक्रमसिंघे के पाले से राजपक्षे के समर्थन में लाने के लिये समय हासिल करना था, ताकि वह 225 सदस्यीय संसद में बहुमत के लिये 113 का आंकड़ा जुटा सकें।
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