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भारत-चीन में गेटवे ऑफ अफ्रीका को लेकर शीत युद्ध
By Deshwani | Publish Date: 25/7/2018 3:05:05 PM
भारत-चीन में गेटवे ऑफ अफ्रीका को लेकर शीत युद्ध

 किगाली। भारत-चीन दोनों ही अफ्रीकी देश रवांडा में रुचि ले रहे हैं। खास बात यह है कि जहां भारत-चीन में गेटवे ऑफ अफ्रीका को लेकर कड़ा मुकाबला  चल रहा है वहीं रवांडा भी इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाने की कोशिश में लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को रवांडा की दो दिवसीय यात्रा पर जब वहां पहुंचे, उससे कुछ देर पहले ही चीन के राष्ट्रपति रवांडा का दौरा कर वहां से रवाना हुए थे। इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में संतुलन बनाते हुए रवांडा भी अपने लिए फायदेमंद समझौते करने में कामयाब रहा है। अफ्रीका में कुछ तो खास है  क्योंकि चीन और भारत का रवांडा को इतना महत्व देना आम बात नहीं है।   रही बात चीन की उसकी साफ नीति है वो किसी भी कीमत पर भारत को स्वयं से आगे नहीं देखना चाहता और  इसी कारण दोनों देशों के बीच रवांडा को लेकर एक तरह से शीत  युद्ध छिड़ा हुआ है। 

 
रवांडा में दो दिन तक रहे पीएम मोदी ने इस देश को 20 करोड़ डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है। इसमें से आधे धन का इस्तेमाल रवांडा सिंचाई व्यवस्था विकसित करने और बाकी आधे का स्पेशल इकनॉमिक जोन (SEZ) बनाने में करेगा। भारत ने पिछले साल भी रवांडा को 12 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था। हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि नया कर्ज इससे अलग है या इसी का हिस्सा। दूसरी तरफ, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी रविवार को रवांडा में थे। इस दौरान उन्होंने रवांडा को 12.6 करोड़ डॉलर देने का वादा किया। इसमें से 7 करोड़ 60 लाख डॉलर हुए से किबेहो तक सड़क बनाने के लिए और बाकी नए बुगेसेरा एयरपोर्ट तक पहुंचने के लिए सड़क बनाने पर खर्च होगा।  
 
हो सकता है कि इस बार रवांडा को आर्थिक सहायता देने के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया हो लेकिन रवांडा में चीन की पैठ बहुत गहरी होती जा रही है। रवांडा की मौजूदा सड़कों में से 70 प्रतिशत का निर्माण चीनी कंपनियों ने किया है। इतना ही नहीं बीते 12 सालों के अंदर चीन ने रवांडा में 40 अरब डॉलर का निवेश किया है। दरअसल, रवांडा अफ्रीका की तीसरी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और अर्थव्यवस्था के विकास ने सामाजिक और राजनीतिक मानकों में भी सुधार किया है। ज्यादा प्राकृतिक संसाधन न होने के बावजूद, इस देश की भौगोलिक स्थिति इसे बाकी अफ्रीका में व्यापार बढ़ाने के लिए खास बनाती है। 55 अफ्रीकी देशों वाले अफ्रीकन यूनियन का अध्यक्ष इस बार पॉल कगामे को चुना गया है, जो रवांडा के राष्ट्रपति हैं। इसलिए रवांडा को बाकी अफ्रीकी देशों में व्यापार के दरवाजे खोलने वाले चाबी माना जा रहा है। 
 
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