वाशिंगटन, (हि.स.)। आतंकवाद के खिलाफ भारत के अभियान को अमेरिका ने जोर का झटका धीरे दिया है। अमरीकी कांग्रेस ने 2018 के राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम (एनडीएए-2018) में बड़ा बदलाव किया है। इसमें केवल हक्कानी नेटवर्क को शामिल किया है और लयकर-ए-तयैबा को अलग कर दिया है, जबकि पुराने विधेयक लश्कर भी शामिल था।
जानकारों का कहना है कि इससे ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका अतंकवाद को लेकर अपनी पुरानी नीति पर लौट गया है, क्योंकि उसने विधेयक के जरिए केवल अफगानिस्तान को प्राथमिकता दी है और कश्मीर में आतंकवाद को नजरंदाज किया है।
समाचार पत्र 'द डॉन' के मुताबिक, विधेयक के नए संस्करण में आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान की सहभागिता के लिए अमरीका की ओर से दिए जा रहे धन के लिए अमरीका के रक्षा मंत्री को यह प्रमाणित करने की आवश्यकता जताई है कि पाकिस्तान ने हक्कानी नैटवर्क की गतिविधियों को रोकने के लिए कदम उठाए हैं।
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका अपना पूरा ध्यान अफगानिस्तान में चल रही आतंकी गतिविधियों पर ही केन्द्रित करना चाहता है। अमरीकी कांग्रेस ने पाकिस्तान को 70 करोड़ डॉलर (4.5 हजार करोड़ रुपए) की सहायता देने का ऐलान किया है।
पाकिस्तान को यह मदद अफगानिस्तान में चलाए जा रहे अमरीकी अभियानों को समर्थन देने के एवज में दी जाएगी। अमरीका गठबंधन सहायता निधि से यह राशि पाकिस्तान को देगा।
लश्कर को हक्कानी नैटवर्क के साथ शामिल न करने के फैसले से भारत को झटका लगा है। लश्कर- ए- तैयबा एक प्रतिबंधित संगठन है और इसका संस्थापक साल 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमले का सूत्रधार है।
विदित हो कि इस साल सितंबर में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के घोषणापत्र में आतंकी संगठन लश्कर ए तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन की कड़ी निंदा की गई थी। इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा था। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि चीन कई बार जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की दिशा में अड़ंगा लगा चुका था। ऐसे में आतंकवाद के मुद्दे पर चीन को साथ जोड़ने में भारत को कामयाबी मिली थी।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र लश्कर -ए-तयैबा को आतंकी संगठन मानता है और महसूस करता है कि इसका मुख्य ध्यान कश्मीर पर केंद्रित है ना कि अफगानिस्तान पर।
पुराने विधेयक में हक्कानी नेटवर्क के साथ लश्कर को जोड़ने का तात्पर्य यह था कि अमेरिका न केवल अफगानिस्तान में आतंकवाद को खत्म करने में पाकिस्तान की मदद चाहता है, बल्कि कश्मीर मसले पर भी उसके रुख में बदलाव की उम्मीद करता है। लेकिन अब परोक्ष रूप से अमेरिका ने कश्मीर मामले में पाकिस्तान पर से वह दबाव घटा दिया है।