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आध्यात्मिक रहस्यों एवं ऊर्जा से परिपूर्ण क्षेत्र है चित्रकूट का टाठी घाट
By Deshwani | Publish Date: 10/1/2017 12:43:09 PM
आध्यात्मिक रहस्यों एवं ऊर्जा से परिपूर्ण क्षेत्र है चित्रकूट का टाठी घाट

  चित्रकूट, (हि.स.)। चौरासी कोस का चित्रकूट परिक्षेत्र आज भी अपने अन्दर ऐसे-ऐसे आध्यात्मिक रहस्य समाहित किए हुए है, जिसे देखकर कोई भी दांतों तले उंगलिया दबा ले। तपोभूमि के ऐसे ही रहस्यों एवं ऊर्जा से भरा क्षेत्र है टाठी घाट। यहां आज भी मन्दाकिनी किनारे घने जंगलों में बनी डेढ़ दर्जन से अधिक झोपड़ियों में दर्जनों संत भौतिकता एवं चमक-दमक से दूर तपस्यारत हैं। यहां मन्दाकिनी कि कलकल करती धारा के बीच संत प्रभु श्रीराम को आत्मसात करके जीवन धन्य करने की ओर उन्मुख हैं। टाठी घाट के बारे में कहा जाता है कि "भय, उचाट मन स्थिर नाही" अर्थात यहां रहने वालों को भय सताता है, उदासी प्रतीत होती है और मन इधर उधर भटकता है, लेकिन इन सबके बाद यदि कोई साधु इन्द्रियों को वश में करके यहां रुक गया तो उसका साधना में रमना तय है। यहां तपस्या करने वाले संतों का मानना है कि आश्रमों में कभी साधना सफल नहीं हो सकती, इसलिए उन्होंने एकांत का चयन किया। टाठी घाट में तपस्यारत अयोध्या के संत रामकिशुन दास एवं वृन्दावन के दीनबंधु दास ने बताया कि चित्रकूट में कुछ ही ऐसे स्थान हैं, जहां एक बार राम नाम लेने पर हजार गुना फल होता है और ऐसे ही स्थानों में एक है टाठी घाट। इस समय नारायण दास, सुकदेवदास, राधौदास, टीकारामदास समेत दर्जनों संत टाठी घाट में तपस्यारत हैं। कभी भिक्षा मांगकर तो कभी भक्तों द्वारा दिए गए भोजन प्रसाद से उदारपूर्ति करके दिन-रात भजन करना यहां रहने वाले संतों कि दिनचर्या है। आज भी इस स्थान तक पहुंचने का कोई सुगम रास्ता नहीं है लिहाजा संतों की तपस्या में विघ्न भी कम आते हैं। तीर्थक्षेत्र के जो जानकार भक्त हैं, वही इस दुरुह क्षेत्र तक पहुंच पाते हैं। बाहरी श्रद्धालुओं का तो यहां तक पहुंचना लगभग असंभव है। कर्वी-सतना मार्ग पर अनुसुइया मोड़ के पहले घनघोर जंगल में मन्दाकिनी किनारे टाठी घाट स्थित है। इस स्थान को टाठी घाट कहने के पीछे भी एक अद्भुत कहानी है। बताते हैं यहां प्राचीन काल में एक संत तपस्या किया करते थे। धीरे-धीरे उनका मन साधना में ऐसा रमा कि उन्हें भोजन के लिए भिक्षा मांगने में लगने वाला समय कष्टकारी प्रतीत होने लगा। उन्होंने एक दिन मन्दाकिनी नदी में खड़े होकर अपनी समस्या सुनाई। नदी में एक सोने की भोजन से लगी टाठी (थाली) प्रकट हो गई। आवाज आई पात्र में ले-ले और थाली वापस कर दें। नित्य इसी तरह थाली आपके लिए आएगी इससे आपकी साधना में कम विघ्न पड़ेगा। यह सिलसिला बदस्तूर चलता रहा लेकिन एक दिन संत के भक्त ने सोने कि थाली चुरा ली। जब दूसरे दिन भोजन नहीं आया तो संत अचरज में पड़ गए उन्होंने दिव्य ट्टष्टि से देखा तो सारा माजरा उनकी समझ में आ गया। 

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