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राजनीति में भाषायी मर्यादाओं का सवाल ?
By Deshwani | Publish Date: 19/2/2017 12:37:05 PM
राजनीति में भाषायी मर्यादाओं का सवाल  ?

प्रभुनाथ शुक्ल

आईपीएन। यूपी का चुनावी मैदान राजनीतिक दलों के लिए जंग बन गया है। राजनीतिक दल और राजनेता चुनावी झोली से नीति नए जुमले निकाल कर रहे हैं। निजी हमले भी किए जा रहे हैं और 30-35 साल पुराने गड़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं। जिसका कोई औचित्य नहीं है। लेकिन सत्ता और सिंहासन की लालच में सब कुछ जायज है। लेकिन आम आदमी और प्रधानमंत्री के बयान में फर्क है। एक सामान्य राजनेता कुछ भी बोल दे उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है, लेकिन जब उसी बात को देश का पीएम सार्वजनिक सभा में बोलें तो उसके कुछ अलग मायने हैं। हलांकि यह राजनीतिक निहितार्थ से कुछ अधिक नहीं है। लेकिन सवाल पद और गरिमा का है। राजनीति में गिरने की सीमा किस हद तक होनी चाहिए, क्या इसका पैमाना नहीं होना चाहिए। वह भी पीएम और राहुल गांधी जैसे नेताओं के लिए। जिससे देश बड़े बदलाव की उम्मीद रखता है।

दो दिन पूर्व कन्नौज की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और सपा के गठबंधन पर बड़ा हमला बोला। पीएम ने कहा की अखिलेश कुर्सी की लालच में पिता की हत्या की साजिश रखने वाली कांग्रेस से गठबंधन कर लिया। जब मुलायम सिंह विधान परिषद में विपक्ष के नेता थे, तो उनके कड़े विरोध के कारण कांग्रेस तंग आगर उनकी हत्या की साजिश रची थी और गोलियां चलवायी लेकिन वह बच गए। पीएम ने कहा की कांग्रेस की गोद में बैठने के पहले उस घटना को याद कर लेना चाहिए था।

प्रधानमंत्री को क्या किसी सार्वजनिक मंच से इस तरह के बयान देने चाहिए था। यह घटना 33 साल पुरानी है। जिसका यूपी की वर्तमान राजनीति से कोई लेना देना भी नहीं है। जब की यह घटना तब स अब तक यूपी की एक पीढ़ी पूरी तरह जवान हो चली है और बहुत पानी बह चुका है। ं इस तरह की अनगिनत घटनाएं बंद फाइलों में धूल चाट रही हैं और नीत राजनीतिक हत्याएं हो रही हैं। फिर पीएम ने इस तरह का बयान क्यों दिया।घटना उस समय हुई थी जब मुलायम सिंह 04 मार्च 1984 को इटावा से लखनउ जा जा रहे थे और उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसायी गयी थी। 

हलांकि उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। इस घटना से कांग्रेस का कोई लेना देना नहीं था। इसमें कांग्रेस नेता बलराम सिंह का नाम आया था। बीते तैंतीस साले में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के रिश्तों जाने कितने उतार चढ़ाव आए। यह सच है की 2004 में सोनिया गांधी को पीएम बानाने का मुलायम सिंह यादव ने मुखर विरोध किया था, लेकिन अमेरिका से परमाणु अप्रसार संधि में कांग्रेस के साथ खड़े हुए।  जिस बलराम सिंह यादव पर मुलायम सिंह की हत्या की साजिश रचने का नाम आया उन्हें ही मुलामय ने 1998 में समाजवादी पार्टी में शामिल किया। पीएम ने जिस घटना का महिमा मंडन किया आरोपी उन्हीं बलराम सिंह को 2004 ने भाजपा ने मैनपुरी से सांसद का उम्मीदवार बनाया। भाजपा ने उन्हें क्यों उम्मीदवार बनाया। हलांकि मुलायम सिंह यादव पब्लिक फोरम पर कुछ अवसरों पर कांग्रेस पर अपनी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा चुके हैं। उसी बयान को आधार बना पीएम ने बाप-बेटे के बीच बढ़ी तल्खी का मनोवैज्ञानिक लाभ लेने की कोशिश की।  

1998 में मुलायम सिंह ने खुद हत्या की साजिश के आरोपी बलराम सिंह को गले लगाया और मैनपुरी से उन्हें मैनपुरी से टिकट देकर सांसद बनाया।बलराम सिंह 1971 में कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 1980 में उन्होंने जसवंतनगर से मुलायम सिंह को हराया था जहां से आज शिवपाल सिंह यादव चुनाव लड़ रहे हैं, कभी वह मुलायम सिंह का गढ़ था। कांग्रेस सरकार में 1980 से 1984 तक वह कैबिनेट मंत्री थे। 1988 मंे मैनपुरी से कांग्रेस सासंद चुने गए थे। राव सरकार मंें भी वह कैबिनेटमंत्री थे। 

हलांकि पीएम की तरफ से दिया गया बयान सियासी मानोविज्ञान की परिभाषा से अधिक कुछ नहीं है। राजनीतिक दल चुनावी महासंग्राम को अपने पक्ष में करने और वोटरों को लुभाने के लिए कोई हथकंड़ा नहीं छोड़ता चाहते हैं। भाजपा और पीएम मोदी के लिए यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यूपी राजनीतिक लिहाज से बड़ा राज्य है। कहते हैं दिल्ली का रास्ता लखनउ हो कर गुजरता है। दूसरी बात 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की अगुवाई में भाजपा ने यहां से 71 सीट जीता। भाजपा ने राज्य में सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है। पूरी लड़ाई पीएम मोदी को सामने रख की जा रही है। वह सर्जिकल स्टाइक और नोटबंदी की उपलब्धियों के सामने रख चुनाव मैदान में हैं। 14 साल से भाजपा राज्य की सत्ता से बाहर है। ऐसी स्थिति में वह राममंदिर, लव जेहाद, नोटबंदी, तीन तलाक जैसे मसलों को सामने रख कर हिंदूमतों का ध्र्रुवीकरण चाहती है। यूपी में सीधा मुकाबला कांगे्रस और सपा के गठबंधन से है। सीएम अखिलेश युवा हैं और परिवारिक झगड़े के बाद एक नयी तागत के रुप में उभरे हैं। दूसरी राहुल और अखिलेश की युवा जोड़ी है। इस वजह से भाजपा को कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। यहां त्रिकोणीय लड़ाई दिख रही है। उधर मायावती मनमोहन वैद्य के आरक्षण वाले बयान को लेकर हल्ला बोल रही हैं। कांग्रेस और सपा के साथ से मुस्लिममतों का बिखराव रुक सकता है। जिसकी वजह हैं की पीएम कांग्रेस पर हमलावर हैं। उन्हें मालूम हैं कि अगर कांग्रेस और एसपी का गठबंधन यूपी में मजबूत हुआ तो यह 2019 के लिए अच्छा नहीं होगा। दूसरी वजह भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं हो पाएगा। सियासी लिहाज से उसकी यह सबसे बड़ी पराजय होगी।  

पीएम मोदी पर 17 करोड़ लोगों ने भरोसा जताया है। दुनिया भर में उनकी सख्शियत को कोई जोड़ नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर पीएम सत्ता के लिए जुमलेबाजी का सहरा लेना पड़े यह राजनीतिक के लिए अच्छी बात नहीं है। संसद में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के खिलाफ भी उनका रेनकोट बाला बयान मीडिया में काफी चर्चा का विषय रहा। वहीं इस पर पर राहुल गांधी ने काउंटर अटैक करते हुए सारी मर्यादाएं लांघ दी। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को बाथरुप मंे झांकने की आदत है। पीएम और राहुल गांधी राष्टीय दल के नेतृत्वकर्ता हैं उनसे ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। सियासी जुमलेबाजी की लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उपर्युक्त लेख लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो।)

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