ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगातदेश की संस्कृति का प्रसार करने वाले सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर को प्रधामंत्री ने संर्जक पुरस्कार से सम्मानित किया'दंगल' फेम सुहानी भटनागर की प्रेयर मीट में पहुंचीं बबीता फोगाट
मनोरंजन
(फिल्म समीक्षा) मन में सतरंगी स्वप्न जगाती है ‘तुम्हारी सुलु’, : अशोक मनवानी
By Deshwani | Publish Date: 20/11/2017 11:28:06 AM
(फिल्म समीक्षा) मन में सतरंगी स्वप्न जगाती है ‘तुम्हारी सुलु’, : अशोक मनवानी

बहुत दिन बाद कोई अच्छी फिल्म देखने को मिली - तुम्हारी सुलु। किसी ने कहा है कि फिल्में स्वप्न जगाती हैं और स्वप्न जिंदगी जीने की ख्वाहिश। जिंदगी के उतार-चढ़ावों में कितने ही दिलों को बंजर होने से बचा लेती है - फिल्मों की रूपहली दुनिया। तेज धूप में सुखदायी छांव का एहसास करवाती और मन में सतरंगी स्वप्न जगाती इसी तरह की फिल्म है- तुम्हारी सुलु। शुक्रवार, 17 नवम्बर को रिलीज इस फिल्म के प्रदर्शन के पहले ही दिन देखने का मन हुआ और मैं बेटे मोहित को मित्र बनाकर उसके साथ जा पहुँचा भोपाल के फन सिनेमा में फिल्म देखने। अरसे बाद सिनेमा के पर्दे पर कहानी, अभिनय और निदेशन के रंगों से सजी नए अंदाज की फिल्म है- तुम्हारी सुलु

अपने अभिनय के लिए अमिताभ और अभिषेक बच्चन के साथ पा फिल्म में विशेष रूप से सराही गई अभिनेत्री विद्या बालन की यह दूसरी ऐसी फिल्म है जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया। हकीक़त तो यही है कि अधिकांश दर्शक यदि थियेटर तक तुम्हारी सुलु देखने पहुँचे रहे हैं तो उसकी वजह है एक समर्थ अभिनेत्री विद्या बालन के अभिनय का अंदाज देखने की जिज्ञासा। कहानी बहुत सरल है। महानगर में रह रहे किसी मध्यवर्गीय परिवार में आर्थिक दिक्कतों से निपटने के लिए क्या-क्या जतन होते हैं, इसका बखूबी चित्रण किया गया है। सिंगल अर्निंग पर्सन के कारण किसी भी परिवार में गृहस्थी के पहिए मुश्किल से चल पाते हैं। परिवार का दूसरा व्यक्ति जॉब की तलाश में रहता है, इस बीच अपनी रूचि का कोई कार्य मिल जाए तो क्या कहने। लेकिन फिर हमारे रिश्तेदारों के पारम्परिक सोच के कारण नए जॉब पर सवाल भी उठने लगते हैं। सुलु की दो बहनें जिस तरह सुलु के कैरियर और फैमिली लाइफ में सलाहकार की भूमिका अदा करती हैं वो एक तरह का परिवार में बाहरी हस्तक्षेप है। फिल्म तुम्हारी सुलु में विद्या बालन के रेडियो जॉकी बन जाने के बाद ऐसा ही कुछ होता है। बेटे को स्कूल से निकालने के लिए प्रिंसिपल साहब बुलवाते हैं। प्रिंसिपल साहब का अभिभावकों से पूछा गया सवाल आज के कटु सत्य को सामने लाता है। वे पूछते हैं - क्या आप लोग सब एक साथ रहते हैं, फिर भी ये प्रॉब्लम कैसे सामने आई ? बच्चे के माता-पिता के पास कोई जवाब नहीं होता। इस समाज में स्त्रियों को उनकी अभिरूचि के मुताबिक भूमिका निभाने का मंच मिल नहीं पाता। उनकी प्रतिभा चौके-चूल्हे तक सिमट जाती है। तुम्हारी सुलु फिल्म ऐसे ही अनेक सामाजिक प्रश्नों को उजागर करती है। अच्छी बात ये है कि फिल्म समाधान के रास्ते भी दिखाती है।

संभवत: पहली बार किसी फिल्म में किसी रेडियो स्टेशन का दफ्तर और वहाँ की कार्य संस्कृति को इतने विस्तार से फिल्माया गया है। दरअसल रेडियो को एक बड़ी ताकत माना गया है। जिस तरह अखबार में संपादक के नाम पत्र आया करते हैं, उसी तरह अब आकाशवाणी और दूसरे एफ.एफ. रेडियो स्टेशन्स के कार्यक्रम सिर्फ इसलिए लोकप्रिय हो रहे हैं, क्योंकि वे पाठकों और श्रोताओं से संवाद स्थापित करते हैं। अन्य माध्यमों में ये संभव नहीं कि इस तरह दो तरफा संवाद हो। रेडियो जॉकी सुलु से जब एक बुजुर्ग श्रोता बातचीत करते अपने अतीत में खो जाते हैं और बताते हैं कि उनकी दिवंगत पत्नी का नाम भी सुलु था। तब बहुत भाव पूर्ण दृश्य देखने को मिलता है। यह वास्तविकता है कि आज कितने ही ऐसे लोग हैं जिनसे दिन भर में शायद ही कोई बातचीत करता हो। रेडियो उदघोषक से बतियाते ऐसे एकाकी जीवन बिता रहे लोगों को बातचीत से तसल्ली मिल जाती है। फिल्म की एक विशेषता यह भी है कि भारतीय परिवारों में पति-पत्नी के बीच होने वाले सहज संवाद भी इस फिल्म में शामिल हैं। कहीं-कहीं तो फिल्म निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और बासु दा के दौर की हल्की-फुल्की हास्य व्यंग्य प्रधान फिल्मों के दृश्य भी याद आ जाते हैं। फिल्म में म्यूजिक साधारण ही है सिवाय सहारे के लिए फिल्म में लिए गए एक पुराने गीत हवा-हवाई.... को छोडक़र। फिल्म की ताकत इसका निर्देशन और विद्या बालन का अतुलनीय अभिनय है जिसे सौ-सौ बार प्रणाम करने का मन करता है। साल में एक-दो इस तरह की फिल्म आती रहे तो लोग सिनेमा घर का रास्ता नहीं भूलेंगे। निर्देशक एस. त्रिवेणी की इस स्तर की यह पहली फिल्म है। भोपाल के रंगमंच से जुड़े रहे मानव कौल ने बतौर अभिनेता अच्छा काम किया है। नेहा धूपिया ने फिल्म में एक रेडियो स्टेशन प्रमुख की भूमिका बहुत दिल से निभाई है।

(लेखक मध्‍‍‍‍‍यप्रदेश जनसंपर्क विभाग में उप संचालक हैं)

image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS