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संपादकीय
प्रकृति की रक्षा का संदेश देती है भारतीय संस्कृति
By Deshwani | Publish Date: 21/3/2021 9:04:00 PM
प्रकृति की रक्षा का संदेश देती है भारतीय संस्कृति

सुमित शशांक (सिविल सेवा प्रशिक्षक)
विगत कुछ वर्षों में प्राकृतिक घटनाओं का बढ़ता हुआ क्रम यह दर्शाता है की आधुनिकता की रेस में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कितना बढ़ गया है,अपने हजारों साल की विकास यात्रा के दौरान मनुष्य ने भारतीय संस्कृति में संस्कृति को प्रकृति का रक्षक माना..मानव तथा प्रकृति के बीच अटूट संबंध को सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति ने पहचाना तथा इसे सम्मान प्रदान किया।

विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में मृण्यमूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है,जो संभवत: पृथ्वी देवी की प्रतिमा है। मानव संस्कृति को प्रकृति के सबसे करीब  ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद लेकर आता है, आयुर्वेद जहां जीवन का आधार अर्थात पंचमहाभूत का उल्लेख है।

आयुर्वेद जो हमें बताता है कि प्रकृति में पाया जाने वाला प्रत्येक तत्व अपने आप में महत्वपूर्ण है हमारे शास्त्रों ने पेड़ पौधे पुष्प झरनों तथा जीव-जंतुओं को भी विभिन्न तरीकों से सुरक्षित रखना सिखाया,यह दिखाता है कि भारतीय संस्कृति प्रकृति के लिए हजारों वर्षों से कितनी चिंतनशील रही है। भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों का मूल्यांकन करने पर हम पाएंगे कि सुदूर तथा आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने प्रकृति संरक्षण तथा प्रकृति के महत्व को किस प्रकार से अपनी प्रकृति पूजा तथा प्रकृति संरक्षण को दर्शाती चित्रकला तथा पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते पारंपरिक ज्ञान के माध्यम से जीवंत रखा,परंतु आज भौतिक समृद्धि की चाह ने प्राकृतिक संरक्षण के सिद्धांत को कहीं पीछे छोड़ दिया है। 

हरे भरे मिश्रित वनों का स्थान कंक्रीट के जंगलों ने ले लिया है भारत जो कि एक मानसून आधारित कृषि प्रधान राष्ट्र है जहां वनों की सघनता वातावरण में नमी तथा वर्षा के लिए महत्वपूर्ण है.वहां पूर्व की सरकारों के कार्यकाल के दौरान संसाधनों का दोहन,प्रकृति के विभिन्न हिस्सों जैसे पठारी भागों में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण तत्वों का दोहन तथा नदी एवं नदियों पर आधारित जैविक चक्र को खतरे में डालना,उनकी दूरदृष्टि पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है! 

प्रकृति के महत्व को पहचानते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में विभिन्न प्रकृति संरक्षण संबंधी कार्यक्रम चलाए गए जिसमें नमामि गंगे परियोजना एक महत्वपूर्ण परियोजना जिसमें 45 अरब रुपए का ऋण विश्व बैंक द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिये मंज़ूर किया गया है। मिशन के तहत विश्व बैंक द्वारा 25,000 करोड़ रुपए की 313 परियोजनाओं को भी मंजूरी प्रदान की गई है !

परंतु क्या हमें वृक्षारोपण, स्वच्छता वातावरण में बढ़ते CO2 जैसे मुद्दों पर सरकारी प्रयासों तक ही सीमित रहना चाहिए या फिर पेरिस जलवायु समझौते के तहत भारत ने जो वादा किया था कि वह साल 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 33 से 35 फीसदी की कमी लाएगा उसे पूरा करने में क्या हमारा भी कोई नैतिक दायित्व नहीं बनता है.
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