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संपादकीय
सोशल मीडिया की बहती हवा
By Deshwani | Publish Date: 5/5/2020 5:36:34 PM
सोशल मीडिया की बहती हवा

संगीता कुमारी  (लेखिका / कवयित्री)
 
यह बहुत ही सोचने की बात है कि हम किस समाज में रहते हैं? उस समाज की सोच कैसी है? हम उसके साथ किस दिशा में जा रहे हैं। समाज के मुख्य रूपों में से एक आज हमारा महत्त्वपूर्ण समाज ‘सोशल मीडिया’ है। मीडिया के अनेक रूप हैं। जैसे टीवी, फेसबुक, ट्विटर, वहट्सप, इंस्टाग्राम आदि। इन सबमें मुख्य टेलीविजन पर आने वाले विभिन्न चैनलों के माध्यम से प्राप्त खबरें हैं। खबरें हमें हमारे समाज से परिचित कराती हैं। इस कारण क्या हमें यह समझ लेना लेना चाहिये कि केवल कोरोना का रोना रोने के अलावा हमारे पास कोई सकारात्मक पहलू नहीं बचा है जिस पर विचार किया जा सके! जामाती जमाती का कई दिनों तक हल्ला होता रहा क्योंकि वो कोरोना वायरस से बेखौफ होकर इधर उधर घूमते रहे। नासमझी के कारण अनेक जगह कोरोना फैलने का खतरा बढ़ा गये। पहले महाराष्ट्र उसके पश्चात यूपी के बुलंदशहर में संतों की निर्मम हत्या हुई तो ठीक से हो हल्ला हो भी ना पाया कि सिलवर पर्दे के दो महान कलाकारों की एक के बाद एक दो दिनों में हुए निधन का शोक दो दिनों तक मीडिया के लिये बना है। जिसका हम सभी को बहुत दुख है।  
 
 
कहने का तात्पर्य यह है कि समाज में होती घटनाओं की खबर देना एक और बात है, मगर उन खबरों को हफ्तों तक खींच खींचकर तब तक खींचते रहना जब तक कोई दूसरी खबर खींचने को ना मिल जाये; तब तक खींचते रहना ही खबर है क्या? ऐसा क्यों होता है कि दूसरी खबर आते ही पहली खबर सदा के लिये  दफन हो जाती है? अगर वह विचारने योग्य थी तो उसे पुन: विचार के केंद्र में लाना चाहिये। समाज की उससे उन्नत्ति कितनी होगी इस पर विचार करना दूसरी बात है। हम सभी जानते हैं कि हालात हमेशा एक से नहीं रहते! फिर बदलते हालातों से हमारा भविष्य सुनिश्चित है या नहीं! ये सब अनेक बातें हैं जिन पर प्रत्येक व्यक्ति को विचार करना चाहिये ना कि बहती हवाओं के साथ केवल तिनके की भांति बेवजह इधर उधर उड़ते रहना चाहिये। 
 
 
आज कोरोना के कारण हम सभी घरों में बंद हैं। जिससे एक फायदा हुआ है कि प्रदूषण बहुत कम हो गया है। तो क्या हमें इस पर विचार नहीं करना चाहिये कि ये प्रदूषण लॉकडाउन खुलने के बाद भी कम ही रहे। लॉकडाउन जब नहीं होगा तब कहीं ऐसा ना हो कि फिर से स्वच्छ प्रकृति स्वच्छ हवा देने के लिये तरसने लगे! इसलिये भविष्य में यूँ ही सुधार बना रहे विचार करने वाले डिबेट भी तो हों! 
 
 
आज रोजगार भी बेरोजगार बन गये हैं। इस कारण पहले से बढ़ी हुई बेरोजगारी में और अधिक वृद्धि हुई है। क्या इस पर हमें विचार नहीं करना चाहिये? आज अपने जीवन के अनेक वर्षों को किताबों की ढेर में बिताने वाले युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिये क्या योजनायें हैं? इस पर चर्चा होनी चाहिये। 
छोटे छोटे बच्चे स्कूल जायें या फिर साल भर घर पर बैठकर ही ऑनलाईन शिक्षा लें उससे होने वाले फायदे और नुकसान के विषय में भी चिंतन मनन करना चाहिये। 
गाँवों में वापिस पहुँचे मजदूर, शहरी गरीब रोजगारों को गाँवों में रोजगार देने का प्रवंध किया जाना चाहिये ताकि उन्हें खुले वातावरण में अपने अपने गाँवों में ही रोजगार मिल सके। शहरों का वो मुँह क्यों ताकेंगे अगर गाँवों में ही उन्हें रोजगार मिलेगा। शहरों में भी बेवजह बढ़ते बोझ में कमी आयेगी जिससे शहर भी अत्यधिक घनत्त्व आबादी से बच जायेगा। अगर आवश्यकता ना हो तो शहरों से दूर फैक्ट्री इंडंस्ट्री लगनी चाहिये ताकि आबादी वाले इलाके प्रदूषण से बचे रहें। 
 
कहने का तात्पर्य यह है कि सोशल मीडिया को अनेक सामाजिक विकास के मुद्दों पर डिबेट कराना चाहिये। जनता को समाज के प्रति उनके कर्त्तव्यों की सोच जगानी चाहिये। आज का युवा कुंठित होता जा रहा है। उनकी कुंठाओं को हर सम्भव दूर करने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि युवा देश की ऊर्जा हैं। ऊर्जा का सदुपयोग नहीं करना ऊर्जा का अपमान होगा। 
 
वर्तमान सरकार बहुत बढ़िया तरीके से कोरोना लड़ाई लड़ रही है। सब कुछ सरकार पर ही नहीं सोशल मीडिया को भी सकारात्मक नजरिया रखते हुए अपने देश के नागरिकों के लिये ज्योत जगाना चाहिये।
 
 
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