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संपादकीय
परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण का खतरनाक पहलू
By Deshwani | Publish Date: 19/6/2019 3:12:44 PM
परमाणु हथियारों के आधुनिकीकरण का खतरनाक पहलू

प्रमोद भार्गव

दुनिया में पिछले वर्ष की तुलना में परमाणु हथियारों की संख्या में कमी जरूर आई है, लेकिन परमाणु हथियार शक्ति संपन्न देश अब अपने हथियारों का आधुनिकीकरण करके उन्हें और घातक बना रहे हैं। भारत, चीन और पाकिस्तान ऐसे देश हैं, जो अपने हथियारों के आधुनिकीकरण के साथ उनकी संख्या भी बढ़ा रहे हैं। 
 
स्टॉकहोम स्थित अंतरराष्ट्रीय शांति अनुसंधान संस्थान की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2019 की शुरुआत में अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, भारत, पाकिस्तान, इजराइल और उत्तर कोरिया के पास करीब 13,865 हथियार थे, जिनकी संख्या 2018 की तुलना में 600 कम है। 2018 में परमाणु हथियारों की संख्या 14,465 थी। 13,865 हथियारों में से 3750 हथियारों की तैनाती ऑपरेशन बलों के साथ है। इनमें से 2000 हथियारों को अत्यधिक सतर्कता की संचालन स्थिति में रखा गया है। इन हथियारों में कमी का श्रेय रूस और अमेरिका को दिया गया है। हालांकि उनके पास दुनिया के कुल हथियारों की संख्या 90 फीसदी से भी ज्यादा है। यह अमेरिका और रूस के बीच 2010 में हुई नई स्टार्ट (स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी) संधि की शर्तों के चलते संभव हो पाया है। इस संधि की अवधि 2021 में पूरी होने वाली है। बावजूद इसके नवीनीकरण की दिशा में अब तक कोई पहल शुरू नहीं हुई है।
 
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के पास 6185, रूस 6500, यूके 200, फ्रांस 300, चीन 290, पाकिस्तान, 150 से 160, भारत 130 से 140 और इजराइल के पास 80 से 90 हथियार हैं। परमाणु हथियार नियंत्रण कार्यक्रम के निदेशक शैनन काइल का कहना है, 'दुनिया कम हथियार रखना चाहती है, लेकिन उनका आधुनिकीकरण करके आकार लघु करना चाहती है। जिससे परमाणु हथियार रखने में सुविधा हो।' दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञों का अनुमान है कि पाकिस्तान के पास भारत से ज्यादा परमाणु हथियार हैं। इनमें भी अधिकांश ऐसे खतरनाक बम हैं, जो अत्यधिक रेडियोधर्मी पदार्थों से भरे हैं। 
 
पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर नजर रखने वाले लेखकों के दल की 2018 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के पास इस समय 140 से 150 परमाणु हथियार हैं। यदि परमाणु अस्त्र निर्माण करने की उसकी यही गति जारी रही तो 2025 तक इनकी संख्या 220 से 250 हो जाएगी। यदि यह संभव हो जाता है तो पाकिस्तान दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा परमाणु हथियार संपन्न देश हो जाएगा। इस रिपोर्ट के प्रमुख लेखक एम क्रिस्टेनसेन, जुलिया डायमंड और रॉबर्ट एस नोरिस ने यह जानकारी दी है, जो वाशिंगटन डीसी में स्थित 'फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट' के परमाणु सूचना परियोजना निदेशक हैं। अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए के पूर्व वरिष्ठ खुफिया अधिकारी केविन हलबर्ट की मानें तो पाकिस्तान दुनिया के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक देशों में से एक है। 
 
पाकिस्तान की यह खूंखार और डरावनी सूरत इसलिए बन गई है, क्योंकि तीन तरह के जोखिम इस देश में खतरनाक ढंग से बढ़ रहे हैं। एक आतंकवाद, दूसरे, रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था और तीसरे, परमाणु हथियारों का जरूरत से ज्यादा भंडारण। आर्थिक संकट के ऐसी ही बदतर हालात से उत्तर कोरिया जूझ रहा है। मानव स्वभाव में प्रतिशोध और ईर्ष्या दो ऐसे तत्व हैं, जो व्यक्ति को विवेक और संयम का साथ छोड़ देने को मजबूर कर देते हैं। इस स्वभाव को क्रूरतम परिणति में बदलते हम अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर किए परमाणु हमलों के रूप में देख चुके हैं। अमेरिका ने हमले का जघन्य अपराध उस नाजुक परिस्थिति में किया था, जब जापान इस हमले के पहले ही लगभग पराजय स्वीकार कर चुका था।
 
पाकिस्तान दुनिया के लिए खतरनाक देश हो अथवा न हो, लेकिन भारत के लिए वह खतरनाक है। इसमें किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए। दशकों से वह भारत पर हमला करने के लिए आतंकियों के इस्तेमाल को सही ठहरता रहा है। पाकिस्तान, भारत के खिलाफ छद्म युद्ध के लिए कट्टरपंथी मुस्लिम अतिवादियों को खुला समर्थन दे रहा है।
 
मुंबई और संसद पर हमले के दिमागी कौशल रखने वाले योजनाकार दाऊद और हाफिज सईद को पाकिस्तान ने शरण दे रखी है। पुलवामा हमले का अपराधी अजहर मसूद वहां कुछ समय पहले तक खुला घूमता था। यही नहीं भारत के खिलाफ आतंकी रणनीतियों को प्रोत्साहित व संरक्षण देने का काम पाकिस्तान की गुप्तचर संस्थाएं और सेना कर रही है। हालांकि, पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को संरक्षण देने के उपाय अब उसके लिए भी संकट बन रहे हैं। आतंकी संगठनों का संघर्ष शिया बनाम सुन्नी अतिवाद में तब्दील होने लगा है। इससे पाकिस्तान में अंतर्कलह और अस्थिरता बढ़ गई है। बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में इन आतंकियों पर नियंत्रण के लिए सैन्य अभियान चलाने पड़े हैं। 
 
बावजूद, पाकिस्तान की एक बड़ी आबादी सेना और खुफिया तंत्र तालिबान, अलकायदा, लश्कर -ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी गुटों को खतरनाक नहीं मानते। इन आतंकियों को अच्छा सैनिक माना जाता है, जो धर्म के लिए अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। पाकिस्तान में आतंकी इतने वर्चस्वशाली हो गए हैं कि लश्कर-ए-तैयबा, पाकिस्तानी तालिबान, अफगान तालिबान और कुछ अन्य आतंकी गुट पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार के लिए चुनौती बन गए हैं। ये चुनी हुई सरकार को गिराकर देश की सत्ता पर सेना के साथ अपना नियंत्रण चाहते हैं। अगर ऐसा हो जाता है और परमाणु हथियार आतंकियों के हाथ लग जाते हैं, तो तय है, पाकिस्तान को दुनिया के लिए खतरनाक देश बन जाने में देर नहीं लगेगी। इस नाजुक परिस्थिति में सबसे ज्यादा जोखिम भारत को उठाना होगा, क्योंकि भारत, पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों के लिए दुश्मन देशों में पहले नबंर पर है। इमरान खान से आतंक पर नकेल कसने की उम्मीद थी, लेकिन मौजूदा हालात में वे कठपुतली प्रधानमंत्री साबित होते लग रहे हैं।
 
दूसरे विश्व  युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के शहर हिरोशिमा पर 6 अगस्त और नागासाकी पर 9 अगस्त 1945 को परमाणु बम गिराए थे। इन बमों से हुए विस्फोट और विस्फोट से फूटने वाली रेडियोधर्मी विकिरण के कारण लाखों लोग तो मरे ही, हजारों लोग अनेक वर्षों तक लाइलाज बीमारियों की गिरफ्त में रहे। विकिरण प्रभावित क्षेत्र में दशकों तक अपंग बच्चों के पैदा होने का सिलसिला जारी रहा। अपवाद स्वरूप आज भी इस इलाके में लंगड़े-लूले बच्चे पैदा होते हैं।
 
अमेरिका ने पहला परीक्षण 1945 में किया था। तब आणविक हथियार निर्माण की पहली अवस्था में थे, किंतु तब से लेकर अब घातक और लंबी दूरी तक मार करने वाले परमाणु हथियारों के निर्माण की दिशा में बहुत प्रगति हो चुकी है। लिहाजा, अब इन हथियारों का इस्तेमाल होता है तो बर्बादी की विभीषिका हिरोशिमा और नागासाकी से कहीं ज्यादा भयावह होगी। इसलिए कहा जा रहा है कि आज दुनिया के पास इतनी बड़ी मात्रा में परमाणु हथियार हैं कि समूची धरती को एक बार नहीं, कई बार तहस-नहस किया जा सकता है।
 
इसीलिए कहा जा रहा है कि यदि भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध का सिलसिला शुरू होता है तो इसके पहले ही प्रयोग में 12 करोड़ लोग तत्काल प्रभावित होंगे। न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर दी है कि ऐसी हालत में जिस देश पर परमाणु बम गिरेगा, वहां डेढ़ से दो करोड़ लोग तत्काल मौत की गिरफ्त में आ जाएंगे। साथ ही इसके विकिरण के प्रभाव में आए लोग 20 साल तक नारकीय दुष्प्रभावों को झेलते रहेंगे। यदि यह युद्ध शुरू हो जाता है और परमाणु अस्त्रों से हमले शुरू हो जाते हैं तो इन्हें आसमान में ही नष्ट करने की तकनीक फिलहाल कारगर नहीं है। शायद इसीलिए इमरान खान भारत से अपील कर रहे हैं कि युद्धों से कभी सार्थक परिणाम नहीं निकले हैं। 
 
लिहाजा कश्मीर समस्या का हल बातचीत से तलाशा जाए। दरअसल, इमरान ऐसा इसलिए भी कहने को मजबूर हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तान के पास फिलहाल टेक्टिकल परमाणु अस्त्र हैं। जिसकी मारक क्षमता अपेक्षाकृत कम है। उन्हें केवल जमीन से ही दागा जा सकता है। इसे दागने के लिए पाकिस्तान के पास शाहीन मिसाइल है, जिसकी मारक क्षमता 1800 से 1900 किमी है। इसकी तुलना में भारत के पास अग्नि जैसी ताकतवर मिसाइलों की पूरी एक श्रृंखला है। जिनकी मारक क्षमता 5000 से 8000 किमी तक है। यही नहीं, भारत के पास परमाणु बम छोड़ने के लिए ऐसी त्रिस्तरीय व्यवस्था है कि हम जमीन, पानी और हवा से भी मिसाइलें दागने में सक्षम हैं। 
 
भारत की कुछ मिसाइलों को तो रेल की पटरियों से भी दागा जा सकता है। साथ ही हमारे पास उपग्रह से निगरानी प्रणाली भी है। भारत का संकट केवल इतना है कि उसके हाथ, 'पहले परमाणु शस्त्र' का उपयोग नहीं करने की नीति से बंधे हैं। भारत की पीठ में छुरा भोंकने वाले देश पाकिस्तान के परिप्रेक्ष्य में इस नीति से बंधे रहने की जरूरत नहीं रह गई है। हालांकि परमाणु हथियारों की बढ़ती स्पर्धा में भारत को इस नीति से बंधे रहना राष्ट्रहित में ठीक नहीं है।
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