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संपादकीय
राजनीति में परिवारवाद
By Deshwani | Publish Date: 30/3/2019 12:46:47 PM
राजनीति में परिवारवाद

रमेश सर्राफ

राजनीति में अक्सर परिवारवाद की चर्चा होती रहती है। देश की जनता के मन में परिवारवाद के विरोध में आक्रोश रहता है। इसके बावजूद राजनीति में सैदव परिवारवाद फलता-फूलता रहा है। हमारे देश की राजनीति में परिवारवाद की शुरूआत करने में नेहरू परिवार को अग्रणी माना जाता रहा है। नेहरू परिवार जो बाद में गांधी नाम से जाना जाने लगा की अब पांचवीं पीढ़ी राजनीति कर रही है। नेहरू परिवार के पहले सदस्य पंडित मोतीलाल नेहरू 1919 व 1928 में दो बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू आजादी के बाद बनी देश की प्रथम सरकार के प्रधानमंत्री बने। जवाहरलाल कई बार कांग्रेस के अध्यक्ष व 17 वर्षों तक देश के प्रधानमंत्री रहे। 
 
मोतीलाल नेहरू की पुत्री विजयलक्ष्मी पण्डित आजादी से पूर्व बनी सरकार में मंत्री थीं। वह 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष बनीं। उन्होंने राजदूत व राज्यपाल के पदों पर भी काम किया। मोतीलाल नेहरू की तीसरी पीढ़ी में उनकी पौत्री इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री व कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं। नेहरू की चौथी पीढ़ी में इदिरा गांधी के पुत्र राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष रहे। इन्दिरा के दूसरे पुत्र संजय गांधी सांसद व कांग्रेस महासचिव रहे। राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी कई बार सांसद बनीं। वह अभी केंद्र सरकार में मंत्री हैं। उधर राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष व सांसद हैं। उनकी बहन प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव हैं। संजय गांधी के पुत्र वरूण गांधी सांसद हैं।
 
कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी की चार पीढ़ियां राजनीति करती रही है। कमलापति त्रिपाठी खुद केन्द्र में रेल मंत्री व उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उनके पुत्र लोकपति त्रिपाठी उत्तरप्रदेश में मंत्री व पुत्रवधू चंदा त्रिपाठी सांसद रहीं। कमलापति के पौत्र राजेशपति व प्रपोत्र ललितेशपति विधायक रह चुके हैं। चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री व देश के उपप्रधानमंत्री रहे। उनके बड़े पुत्र ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। उनके बड़े बेटे अजय चौटाला सांसद रहे हैं। छोटे बेटे अभय व पुत्रवधू नैना चौटाला विधायक हैं। देवीलाल के परिवार में चौथी पीढ़ी में उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला सांसद हैं।
 
जम्मू कश्मीर में शेख अब्दुल्ला परिवार में तीन सदस्य मुख्यमंत्री रह चुके हैं। शेख अब्दुल्ला तो मुख्यमंत्री रहे ही, उनके पुत्र फारूक अब्दुल्ला व पौत्र उमर अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस के बड़े नेता जगजीवन राम केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। उनके पुत्र सुरेश राम विधायक रहे व पौत्री मेधावी कीर्ति हरियाणा सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार केन्द्र सरकार में मंत्री व लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। 
 
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री व केन्द्र में मंत्री रहे हेमवती नन्दन बहुगुणा देश के बड़े नेता थे। उनकी पत्नी कमला बहुगुणा सांसद रही थीं। उनके पुत्र विजय बहुगुणा उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। बहुगुणा की तीसरी पीढ़ी में उनके पौत्र सौरभ बहुगुणा अभी उत्तराखण्ड में सितारगंज से विधायक हैं। हेमवती नन्दन बहुगुणा के दूसरे पुत्र शेखर बहुगुणा भी इलाहाबाद से 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ कर हार गये थे। बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी अभी उत्तरप्रदेश की भाजपा सरकार में पर्यटन मंत्री हैं। वह आगामी लोकसभा चुनाव में प्रयागराज से भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। रीता बहुगुणा जोशी भाजपा में आने से पहले महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तरप्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
 
किसान नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की भी तीसरी पीढ़ी राजनीति में सक्रिय है। चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी सांसद रहीं तो उनके पुत्र अजीत सिंह कई बार केन्द्र सरकार में मंत्री रहे। चरण सिंह के पौत्र जयन्त चौधरी सांसद रह चुके हैं। चरण सिंह की पुत्री ज्ञानवती दो बार विधायक रह चुकी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा खुद राजनीति में सक्रिय हैं व तुमकुर सीट से आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनका छोटा बेटा कुमारस्वामी कर्नाटक का मुख्यमंत्री व बड़ा बेटा एच डी रेवेन्ना कर्नाटक सरकार में मंत्री है। मुख्यमंत्री कुमारस्वामी की पत्नी अनिता कुमारस्वामी विधायक हैं। कुमारस्वामी का बेटा निखिल लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी है। उनके बड़े बेटे एच डी रेवेन्ना का बेटा प्रजव्वल अपने दादा की परम्परागत हासन सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। 
 
उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी तो पूरी तरह से परिवारवादी पार्टी बनी हुई है। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव सांसद हैं। वह तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। उनके पुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री व सांसद रह चुके हैं। पुत्रवधू डिम्पल यादव सांसद रही हैं। उनके भाई शिवपाल सिंह यादव उत्तरप्रदेश में मंत्री रहे हैं। उनके बड़े भाई रतन सिंह का पोता तेजप्रताप यादव सांसद है। उनके परिवार में दर्जनभर से भी अधिक सदस्य सांसद, विधायक व अन्य पदों पर काबिज हैं।
 
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल के पुत्र सुरेन्द्र सिंह सांसद व मंत्री रहे तो दूसरे पुत्र रणबीर सिंह महेन्द्रा विधायक व भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष रह चुके हैं। बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी दिल्ली विधानसभा की उपाध्यक्ष व हरियाणा में मंत्री रही हैं। वे अभी हरियाणा में कांग्रेस विधायक दल की नेता हैं। बंसीलाल की पोती श्रुती चौधरी हरियाणा में सांसद रह चुकी हैं। राजस्थान के बड़े जाट नेता नाथूराम मिर्धा कई बार सांसद व केन्द्र सरकार में मंत्री रहे थे। उनके पुत्र भानुप्रताप मिर्धा नागौर से सांसद रहे व पोती ज्योति मिर्धा भी नागौर से पूर्व सांसद हैं। ज्योति फिर से कांग्रेस टिकट पर मैदान में हैं।
 
परसराम मदेरणा राजस्थान सरकार में कई बार मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं। उनके पुत्र महीपाल मदेरणा राजस्थान में मंत्री थे मगर भंवरीदेवी कांड के कारण जेल भेजे गए। मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा विधायक हैं। मदेरणा की पुत्रवधू लीला मदेरणा जोधपुर की जिला प्रमुख रह चुकी हैं। हिमाचल प्रदेश के सुखराम हाल ही में कांग्रेस में घर वापसी कर चर्चा में हैं। वे प्रदेश व केन्द्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं। नरसिंम्हाराव सरकार में जब वो संचार मंत्री थे तब उनके घर से बड़ी राशि बरामद होने के कारण उनको केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हटाया गया था। उनके पुत्र अनिल शर्मा भाजपा की सरकार में मंत्री हैं व पूर्व में राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। सुखराम मंडी से अपने पौत्र आश्रय शर्मा को कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़वाने जा रहे हैं।
 
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनके पुत्र राजवीर सिंह सांसद हैं। राजवीर पूर्व में राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कल्याण सिंह के पौत्र संदीप सिंह उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री हैं। उमाशंकर दीक्षित कांग्रेस के बड़े नेता थे। वे तीन बार राज्यसभा सदस्य, इन्दिरा गांधी सरकार में मंत्री, कर्नाटक व पश्चिम बंगाल के राज्यपाल व कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे थे। उनकी पुत्रवधू शीला दीक्षित दिल्ली की कांग्रेस अध्यक्ष हैं। वो पूर्व में केन्द्र सरकार में मंत्री व तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। उमाशंकर दीक्षित के पौत्र संदीप दीक्षित दिल्ली से सांसद रह चुके हैं।
 
मराठा क्षत्रप शरद पवार केन्द्र में मंत्री व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनकी पुत्री सुप्रिया सूले बारामती से सांसद हैं। पवार के भाई अनन्त राव के बेटे अजीत पवार महाराष्ट्र सरकार में मंत्री व विधायक रहे हैं। अजीत पवार के पुत्र पार्थ पवार मावली से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। शरद पवार के दूसरे भाई अप्पा साहेब के पुत्र राजेन्द्र पवार के पुत्र रोहित पवार भी सक्रिय राजनीति में आने को प्रयत्नशील हैं। रणवीर सिंह हुड्डा संविधान सभा के सदस्य रहे थे। वे हरियाणा व पंजाब सरकार में मंत्री, लोकसभा व राज्यसभा के सांसद रहे थे। उनके पुत्र भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने चौधरी देवीलाल को लगातार तीन बार लोकसभा चुनाव में हराया था। भूपेन्द्र हुड्डा दो बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे। रणवीर हुड्डा के पौत्र दीपेन्द्र हुड्डा सांसद हैं।
 
एनटी रामाराव आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उनके पुत्र व पुत्रियां सांसद, विधायक व मंत्री बने। रामाराव के दामाद चन्द्रबाबू नायडू आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। चन्द्रबाबू नायडू के पुत्र नारा लोकेश राज्य सरकार में मंत्री हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे एम करूणनिधि के पुत्र अलागिरी केन्द्र में मंत्री रहे तो दूसरे पुत्र स्टालिन द्रमुक अध्यक्ष व विधायक हैं। उनकी पुत्री कनिमोझी राज्यसभा सांसद हैं। उनके भतीजे दयानिधि मारन केन्द्र सरकार में मंत्री रहे हैं। 
 
राजनीति में परिवारवाद की बात चले और लालू यादव का जिक्र न आए तो बात बेमानी है। वंशवादी राजनीति के धुर विरोधी रहे लालू ने मुख्यमंत्री रहने के दौरान चारा घोटाले में जेल जाते समय पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। फिलहाल राबड़ी बिहार विधान परिषद की सदस्य हैं। लालू के दोनों बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी विधायक हैं, जबकि बेटी मीसा भारती राज्यसभा की सदस्य है। लालू के समधी जितेन्द्र यादव उत्तरप्रदेश में विधान परिषद के सदस्य हैं। उन्हें यह पद लालू की मेहरबानी से ही मिला है। दिग्विजय सिंह, अशोक गहलोत, कमलनाथ, राजनाथ सिंह आदि नेता भी राजनीति में वंशवाद की बेल बढ़ाने में लगे हैं।
 
देश की राजनीति में परिवारवाद को आज सभी दलों के नेता बढ़ावा देने में लगे हैं। कोई भी राजनीतिक दल इससे अछूता नहीं है। परिवार के बढ़ते प्रचलन से राजनीति में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को अपने हक से महरूम होना पड़ता है। राजनीति में जब तक बढ़ते परिवारवाद पर लगाम नहीं लगेगी तब तक आम कार्यकर्ताओं के लिए मौके नहीं मिलेंगे।
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