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संपादकीय
नए साल के जश्न पर भी मजहब का साया
By Deshwani | Publish Date: 23/12/2017 1:17:50 PM
नए साल के जश्न पर भी मजहब का साया

सियाराम पांडेय ‘शांत’

पूरा देश नववर्ष को पूरे जोश के साथ मनाने को तैयार है। इसके लिए यहां के हर परिवार ने अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार कार्यक्रम भी बना रखे हैं। जाति, धर्म से उपर उठकर लोग नया साल मनाते हैं। कोई मंदिर-मस्जिद, गिरिजाघर और गुरुद्वारे में जाकर ईश्वर की प्रार्थना कर अपने दिन की शुरुआत करता है, कोई इस दिन को यादगार बनाने के लिए यात्रा-देशाटन का कार्यक्रम बनाता है लेकिन इस बार नया साल उत्साह के साथ मनाया जा सकेगा या नहीं, इस पर संदेह के बादल मंडराने लगे हैं। इसकी वजह यह है कि नए साल के जश्न पर भी मजहब की संकीर्ण छाया पड़ने लगी है। मुस्लिमों की बड़ी शैक्षणिक संस्था दारूल उलूम देवबंद ने नए साल के जश्न को ही नाजायज ठहरा दिया है।

नए साल को धर्म के चश्मे से देखना देश के उल्लास में खलल डालने जैसा है। इसकी जितनी भी आलोचना की जाए, कम है। भारत उमंग, उल्लास और उत्साह का देश है। यह तीर्थों का देश है। त्यौहारों का देश है। यहां जन्म ही नहीं, मृत्यु का स्वागत भी उत्सव सरीखा ही होता है। हम भारतीय दरअसल जाति और मजहब कम, उत्सवधर्मी समाज ज्यादा हैं। विविधता में एकता ही हमारा धन है। यह ‘मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना’ की मान्यता में यकीन रहने वाला देश है। जो सबकी सुनता है लेकिन निर्णय अपने विवेक से करता है। यही वजह है कि सदियों की गुलामी के बाद भी भारत का वजूद कायम है। इकबाल ने लिखा है कि ‘हिंदू हैं, हम वतन हैं, हिंदोस्तां हमारा। सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा।’ इकबाल की इस रचना पर कुछ बौद्धिकों को मतभेद हो सकता है। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने भी अपने प्रवचन में हाल ही में स्पष्ट किया है कि भारत में जन्म लेने वाला हर व्यक्ति हिंदू नहीं है। उन्होंने यह बात किस संदर्भ में कही, यह तो वही बेहतर बता सकते हैं लेकिन जहां तक नए साल की एकरूपता का सवाल है तो इस पर बहस नहीं की जा सकती। भारत में रहने वाले किसी जाति, मजहब के अनुयायी हों लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि वे सभी भारतीय हैं। ऐसे में भारत में मनाए जाने वाले पर्व, त्यौहार, भारतीय जीवनमूल्यों, सिद्धांतों, परंपराओं को महत्व दिया, भारतीय प्रकृति के संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी है। मजहब के हिसाब से सभी धर्मों के अलग-अलग नववर्ष होंगे लेकिन कामकाज के लिए जो कैलेंडर निर्धारित है, उसकी एकरूपता को, उसके निर्धारण को चुनौती देना कितना वाजिब है, विचार तो इस पर भी करने की जरूरत है। 

उत्तर प्रदेश में ईश्वर के अनेक अवतार हुए हैं। जैन धर्म के कई तीर्थंकरों का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ है। राम, कृष्ण, बुद्ध, नरसिंह, बाराह अवतार उत्तर प्रदेश में हुए हैं। दत्तात्रेय, वशिष्ठ, अत्रि, परशुराम, विश्वामित्र, पतंजलि, व्यास, शुकदेव और भृगु आदि ऋषियों की जन्मस्थली रही है उत्तर प्रदेश। शिवमहापुराण को आधार मानें तो ब्रह्मा और विष्णु का जन्म भी वाराणसी अर्थात आनंदवन में हुआ था। इस लिहाज से इस भूमि का विशेष महत्व है। उत्तर प्रदेश की इस पावन भूमि ने पूरी दुनिया को वेद, पुराण, उपनिषद,स्मृति आदि ग्रंथ दिए हैं। धरती पर सर्वप्रथम धर्मचर्चा का इतिहास इसी पावन भूमि पर रचा गया। उत्तर प्रदेश के कण-कण में आध्यात्मिकता और चिंतन का संसार समाहित है लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि हाल के कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश विकास के क्षेत्र में कम, विवाद को लेकर ज्यादा चर्चित रहा है। जिस तरह से एक-एक मसले उछल रहे हैं, उन्हें बहुत उचित नहीं कहा जा सकता। 

विवाद के शोशे उछालने वालों को भी सोचना होगा कि वे अपने गौरवशाली उत्तर प्रदेश को अंततः किस रूप में देखना चाहते हैं। देश- प्रदेश है, तभी धर्म है। धर्म है तभी सुख है। धर्म से रहित व्यक्ति धनी तो हो सकता है लेकिन सुखी नहीं हो सकता। धर्म धारण करने की शक्ति है। वह जीवन शैली है। जिसके जीने की कोई शैली ही न हो, जिसके जीने का कोई रंग-ढंग ही न हो, ऐसे व्यक्ति का क्या जीना और क्या मरना? भारतीय प्रकृति जीवंतता की है जिसमें हर कुछ नया है। नदी की धारा को देखिए, उसकी हर लहर नई होती है। पुरानी लहर आगे बढ़ जाती है। नई लहर उसकी जगह ले लेती है। हर दिन नया होता है। हर क्षण नया होता है लेकिन हम भारतीय नए नहीं हो पाते। पुराने ही रह जाते हैं। पुरानी सोच के दायरे से बाहर निकल ही नहीं पाते। दकियानूसी चिंतन से हमारा कितना विकास होगा, इस बावत सोचने-समझने की जरूरत तक महसूस नहीं की जाती। 

नया साल आने में बस कुछ ही दिन शेष हैं। लोगों ने नए साल के उमंग को लेकर विशेष तैयारियां कर रखी हैं लेकिन कुछ लोगों को नया साल रास नहीं आ रहा है। उनकी नजर में नया साल मनाया ही नहीं जाना चाहिए क्योंकि वह उनके मजहबी सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है। आजादी के बाद से आज तक यह देश 1 जनवरी को नया वर्ष मनाता आ रहा है। यह जानते हुए भी कि यह अंग्रेजों द्वारा निर्धारित तिथि है। इस देश के बुद्धिजीवी राजनेताओं ने, विचारकों ने काफी सोच-समझ के बाद ही 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का निर्णय लिया होगा। 1 जनवरी को नववर्ष मनाना है या नहीं, यह विचार तो उसी वक्त होना चाहिए था। आज इस मरहले पर विवाद खड़ा करना प्रासंगिक तो नहीं ही है। 

देवबंद मुस्लिमों का बड़ा शिक्षण केंद्र है। वहां के धर्मगुरुओं ने नए साल का जश्न 1 जनवरी को नहीं मनाने का फरमान जारी किया है। मदरसा जामिया हुसैनिया के वरिष्ठ उस्ताद मौलाना मुफ्ती तारिक कासमी की मानें तो नए साल का जश्न मनाना या नए साल की मुबारकवाद देना इस्लाम में जायज नहीं है। यहां तक कि केक काटना भी इस्लाम में नाजायज है। इस्लाम धर्म से जुड़े लोगों को इस तरह की परंपराओं से दूर रहना चाहिए। इस्लाम धर्म में नया वर्ष मोहर्रम से आरंभ होता है। कुछ हिंदू संगठन भी एक जनवरी को नववर्ष मनाने की मुखालफत करते रहे हैं। हिंदुओं का नया साल होलिकादहन के बाद चैत्र माह के शुक्ल पक्ष से आरंभ होता है। उसी दिन से नया नव विक्रम संवत शुरू होता है। इसलिए नया साल उसी दिन मनाना चाहिए। 

हिंदू और मुस्लिम समुदाय के धर्म गुरुओं की मानें तो 1 जनवरी को अंग्रेज नववर्ष मनाते हैं। भारत में इसके आयोजन का औचित्य नहीं है। हिंदू और मुस्लिम धर्मग्रंथों में क्या जायज है और क्या नाजायज है, क्या उस पर सही मायने में अमल हो रहा है? अमल हो रहा होता तो देश में अराजक उपद्रव के हालात ही न बनते। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में हम असली हिंदू, तुम नकली हिंदू की बहस उठती ही नहीं। त्यौहार मनाए जाने चाहिए, उन्हें लेकर बेजह वितंडावाद खड़ा करना वाजिब नहीं है। 

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने संगठित अपराध नियंत्रण के लिए यूपीकोका जैसा सख्त कानून विधानसभा में पास किया है लेकिन विपक्ष इस पर भी तंज कस रहा है। वह युवाओं को बरगलाने और भड़काने में जुटा है। उन्हें यह बता रहा है कि नववर्ष पर सेल्फी लेने वालों पर भी सरकार यूपीकोका लगा सकती है। योगी आदित्यनाथ सदन को पहले ही आश्वस्त कर चुके हैं कि यूपीकोका का अनुचित प्रयोग नहीं होगा। यही नहीं, संभवतः विपक्ष के विरोध की धार को कम करने के लिहाज से ही उन्होंने सभी राजनीतिक दलों को नए साल का तोहफा भी दिया है। उन्होंने आश्वस्त किया है कि उनकी सरकार नेताओं पर लगे 20 हजार मुकदमे वापस लेने जा रही है।

राजनीतिक विरोध होते रहते हैं लेकिन नए साल के उमंग में व्यवधान डालना उचित नहीं है। इसे पूरा देश मनाता है। जाति और धर्म से अलग हटकर लोग इसका आनंद लेते हैं। हर साल नए साल पर आतंकवादी भारत के उमंग में बाधा डालने की योजना बनाते हैं। हमारे सुरक्षा बल उनसे निपटते भी हैं। उनकी नापाक योजनाओं को नाकाम भी करते हैं कि यह देश शांति और सद्भाव के साथ नया साल मना सके। धर्मगुरुओं को भी रंग में भंग डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। लोग अपने-अपने धर्म के मुताबिक नववर्ष मनाते भी हैं, किसने रोका है लेकिन किसी को भी मजहब के नाम पर नए साल की मुबारकवाद देने से रोकने के प्रयास निंदनीय हैं। हम अपने देश को खुशियां नहीं दे सकते तो उसे अपनी खुशी मनाने से रोकें तो नहीं।

(लेखक हिंदुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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