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संपादकीय
दमदार तकनीकी परिवेश से बढ़ेगा देश-प्रदेशःसियाराम पांडे ''शांत’
By Deshwani | Publish Date: 9/8/2017 4:31:34 PM
दमदार तकनीकी परिवेश से बढ़ेगा देश-प्रदेशःसियाराम पांडे ''शांत’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान विकास का गवाह बना। प्रदेश भर के पाॅलीटेक्निक काॅलेज के छात्रों ने इस अवसर पर प्रदेश के तकनीकी विकास से जुड़े अपने प्रोजेक्ट प्रस्तुत किए। इसमें स्मार्ट सिटी से लेकर सौर संयंत्र, सीवरेज प्लांट जैसी बहुविध परियोजनाओं के माॅडल शामिल रहे। एक से एक माॅडल, नवोन्मेषी सोच और रचनाधर्मिता का अनूठा संगम। जिसने भी उन्हें देखा, बस देखता ही रह गया। छात्र-छात्राओं के इन अनुभवों को लोक व्यवहार में उतारने की जरूरत है लेकिन अमूमन यह देखने में आता है कि स्कूल-काॅलेजों में, विश्वविद्यालयों में तकनीकी प्रदर्श तैयार तो होते हैं, हुक्मरान उनके गुण-दोष भी जानते-सुनते हैं, लेकिन उन प्रदर्शों पर काम करने, उन अवधारणाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में अपेक्षित काम नहीं होता। इसमें संदेह नहीं कि शोध के क्षेत्र में अनेक कार्य हुए हैं। युवा पीढ़ी हर क्षण नया सोच रही है, उसे बस प्रोत्साहन की जरूरत है। 
इंदिरा गांधी के दौर में बिहार के भभुआ जिले के एक शोधार्थी ने एक आविष्कार किया था। चूंकि आविष्कार अमेरिका में हुआ था। अमेरिका की तमाम यातनाओं के बावजूद उस छात्र ने अपने आविष्कार की तकनीकी जानकारी अमेरिकी परीक्षणकर्ताओं को नहीं दी थी। इंदिरा गांधी की पहल पर ही वह छात्र भारत लौटा था लेकिन उसके प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करना तो दूर, उस बावत सोचा भी नहीं गया और परिणाम यह हुआ कि एक मेधावी छात्र विक्षिप्त हो गया। अभिशप्त जीवन जीने को बाध्य हो गया। आविष्कार था एक माचिशनुमा यंत्र जिससे किसी भी उ़ड़ते हुए वायुयान को आसमान में ही रोका जा सकता था। यह एक बड़ी परिलब्धि थी। इस उद्धरण के पीछे मकसद केवल यह बताना है कि राजनेता जिन प्रदर्शों का अवलोकन करते हैं, उनके गुण-दोष भी जानें और उन परियोजनाओं को आगे भी बढ़ाएं जिससे देश- प्रदेश और अधिक तकनीकी दक्षता को हासिल कर सके।
राजकीय महिला पाॅलीटेक्निक लखनऊ की छात्राओं द्वारा स्मार्ट सिटी पर आधारित माॅडल को कमोवेश इसी रूप में देखा-समझा जा सकता है। इस टीम का नेतृत्व कर रही राधिका पांडेय की मानें तो उनके प्रोजेक्ट में स्मार्ट सिटी को लेकर हर बारीकी का ध्यान रखा गया है। इस बात की पूरी कोशिश की गई है कि स्मार्ट सिटी के लोगों को लेश मात्र भी असुविधा न हो। जो काम उच्चाधिकारियों को करना चाहिए, उस दिशा में प्राविधिक शिक्षा से जुड़े विद्यार्थी सोच रहे हैं, यह उत्तर प्रदेश के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है। जिस देश और प्रदेश के युवा बेहतरी के सपने देख रहे हों, अपने देश और प्रदेश को आगे ले जाने के ख्याल से कुछ नया और अलहदा कर रहे हैं, उस विचारधारा का स्वागत किया जाना चाहिए और उनकी विचार परंपरा को आगे बढ़ाना चाहिए। विकास के लिए अच्छे विचार जहां कहीं से आएं, वे स्वागतव्य हैं, अनुकरणीय हैं। 
 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में 93 परियोजनाओं का लोकार्पण और आठ परियोजनाओं का शिलान्यास किया। तकनीकी महाविद्यालयों को इस दौरान 20 करोड़ रुपये भी दिए गए जिससे कि वे न केवल विकसित हों, बल्कि सरकार की विकास मूलक सोच के अनुरूप बन सकें। इस कार्यक्रम में अरसे से चली आ रही बुके संस्कृति के अवसान के लक्षण भी नजर आए। दरअसल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों विधानसभा में बुके संस्कृति पर चिंता जाहिर की थी और इसे फूलों की बर्बादी करार दिया था। स्वागत समारोह में बस एक फूल भेंट करने की सलाह दी थी। मुख्यमंत्री की सोच के अनुरूप ही यहां कार्य व्यवहार भी हुआ। जब कार्यक्रम की शुरुआत में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को रुद्राक्ष का पौधा भेंट किया गया। यह एक अच्छी पहल है। स्वागत समारोह में ऐसी चीजें भेंट की जानी चाहिए जो यादगार साबित हों। यही बात विकास प्रसंगों पर भी लागू होती है। विकास ऐसा होना चाहिए जो टिकाऊ भी हो, लोकोपकारी और स्मरणीय भी हो। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस राय का स्वागत किया जा सकता है कि प्रदेश के 75 जिलों की पहचान उसके अपने उत्पादों की वजह से हो। यूं तो हर संज्ञा का अपना महत्व होता है लेकिन कार्य का विशेषीकरण भी तो कोई चीज है। 
मुझे याद है। एक सज्जन मेरे पास आए थे। कोई डेढ़ दशक पहले। उन्होंने गोमती का प्रदूषण हटाने का सुझाव दिया था। उनका प्रोजेक्ट मुझे अच्छा लगा था और मैं उन्हें लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से भी मिला था। इन दोनों ही हस्तियों को उनका प्रस्ताव अच्छा लगा था। प्रोजेक्ट बहुत महंगा भी नहीं था। कुल तीन लाख रुपये का सालाना खर्च आ रहा था। विचार था कि अगर सड़कों किनारे बनी नालियों पर लोहे की छलनी लगा दी जाए तो गोमती में बहुत सारे कूड़े-कचरे को जाने से रोका जा सकता है और इस बहाने हम गोमती की सफाई पर होने वाले सालाना खर्च को भी बहुत हद तक कम कर सकते हैं। सरकार के मुखिया और मुख्य सचिव के स्तर पर तर्क दिया गया था कि अगर छलनी गायब हो जाए तो क्या होगा? इसके जवाब में परियोजनाकर्ता का तर्क था कि एक बार छलनी लगाने का खर्च बस 25 हजार है। तीन लाख की रकम इसी जरूरत को पूरा करने के लिए हैं। इसके बाद अधिकारियोंने इस मसले पर जो चुप्पी साधी कि डकार भी नहीं ली क्योंकि इस परियोजना में कमीशन की गुंजाइश नहीं थी और प्रोजेक्ट पेश करने वाले का भी कोई फायदा नहीं था। नाम-यश के अलावा आर्थिक प्रगति के दूर-दूराज तक आसार नहीं थे। गोमती में रोज कितनी गंदगी जाती है, उसकी बानगी एक बालक के नाले में बहने के बाद की गई रिवर बैंक काॅलोनी के एक नाले की सफाई में निकले टनों कचरे से ही लगाई जा सकती है। ऐसे कितने ही नाले गोमती में हर क्षण गिरते हैं। कमोवेश यही स्थिति प्रदेश की सभी नदियों और शहरों की है। कहने का मतलब यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट को उसके गुण-दोष के आधार पर अपनाया जाए न कि अधिकारियों के आर्थिक लाभ के लिहाज से। 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों ही गंदगी को विकास में बाधक मानते हैं। बीमारियों की जड़ मानते हैं। दोनों ही को इस बात का भान है कि गंदगी से उत्पन्न बीमारियों पर इस देश और प्रदेश को कितना खर्च करना पड़ रहा है। बीमारियों पर हजारों करोड़ खर्च करने से अच्छा तो यह है कि बीमारियों की जड़ गंदगी को ही खत्म कर दिया जाए। कूड़े से देश और प्रदेश की छवि खराब न हो, इस पर ही विचार कर लिया जाए। इसमें शक नहीं कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट देश के समक्ष आज की सबसे बड़ी चुनौती है। क्या ऐसी कोई तकनीकी नहीं विकसित की जा सकती जिससे सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट बेहतर, सरल,सहज और किफायती हो सके। मोदी और योगी हमेशा ही तकनीकी छात्रों से यह सवाल पूछते रहे हैं। देश के वैज्ञानिकों से यह सवाल पूछते रहे हैं कि क्या हम तकनीक को सस्ता और पर्यावरण फ्रेंडली बना सकते हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इससे एक कदम आगे बढ़कर काम करने की नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि हम सोचते हैं, शोध से पहले ही खूब पैसा मिल जाए ,तब काम शुरू करेंगे। यह नहीं होगा, हमें सोच बदलनी होगी। शोध शुरू होगा,अपने आप पैसे का प्रवाह बन जाएगा। अगर हर इंजीनियरिंग कॉलेज एक विषय को लेकर काम करना शुरू करे,तो बहुत कुछ हो सकता है। 
 
मुख्यमंत्री ने कुछ जलों के पानी में आर्सेनिक की अधिकता पर भी चिंता जाहिर की है। स्वाइन फ्लू फैलने पर चिंता जाहिर की है। उत्तर प्रदेश को समृद्ध बनाने की मंशा जताई है और इस बावत जनोनुकूल तकनीक विकसित करने पर जोर दिया है। ऐसी तकनीक विकसित करने पर जोर दिया है जिसे विकास के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी उपयोग में ला सके। उनका मानना है कि तकनीक को हमें अपनी जरूरतों के अनुकूल बनाना होगा, क्योकि जरूरी नहीं कि जो तकनीक विदेश में सफल हो, वह यहां भी सफल हो जाए। इस दौरान यह भी बात कही गई कि बाहर जो भी प्रोजेक्ट लगाए गए हैं, उन्हें देखकर तो यही लगता है, आने वाला वक्त भविष्य में देश के बच्चों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के बच्चों का भी है। योगी आदित्य नाथ कहते हैं कि उत्तर प्रदेश को अगर नई पहचान बनानी है तो इसके लिए हमें टीम भावना और तकनीकी दक्षता से काम करना होगा। उत्तर प्रदेश आजादी के समय देश के विकसित राज्यों में एक था। यहां के लोगों की प्रतिव्यक्ति आय अधिक थी। उत्तर प्रदेश सीमित संसाधनों में अपनी पहचान बनाए हुए था लेकिन आज उत्तर प्रदेश पिछड़े राज्यों में शुमार हो गया है। देश को दिशा देने वाला राज्य जब बीमार हो जाए तो भारत कैसे विकास करेगा? इसी कारण अब उत्तर प्रदेश को अपनी पहचान बनाने की आवश्यकता है। ऐसे में पं. श्रीराम शर्मा आचार्य का एक सूत्र वाक्य याद आता है। ‘ अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।’ अगर इस देश का हर आदमी केवल खुद को सुधार ले। सही-सही करने की ठान ले तो इस देश को सुधरते देर नहीं लगेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से इसी अवधारणा को आगे बढ़ाया था कि सवा अरब का यह देश विकास की ओर अगर एक पैर भी चलेगा तो देश सवा अरब कदम आगे बढ़ जाएगा। आज देश की इसी तरह के प्रोत्साहन की जरूरत है। हमें सोचना होगा कि देश से व्यक्ति है, व्यक्ति से देश नहीं है। यह सच है कि व्यक्तियों के समूह से समाज, प्रांत और राष्ट्र बनते हैं लेकिन राष्ट्र की अवधारणा मात्र से व्यक्ति मजबूत और जीवंत हो जाता है। मौजूदा समय देश और प्रदेश को आगे ले जाने का है, इसमें एक व्यक्ति की कोताही भी उचित नहीं है।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)
 
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