संपादकीय
विश्वास और समर्पण के रिश्ते को सिर्फ मजहबी न मानें: सियाराम पांडेय ‘शांत’
By Deshwani | Publish Date: 3/8/2017 11:00:48 AMविवाह सामान्य संस्कार नहीं है। यह दंपति ही नहीं, उनके परिवारों का भी एक दूसरे के प्रति विश्वास और समर्पण होता है। विवाह के दौरान वर ‘नातिचरामि’ कहकर संबंधों में अतिचार न करने का संकल्प लेता है। विवाह को जन्म-जन्मान्तर का संबंध माना जाता है। विश्वास की डोर ही विवाह संबंधों को अरसे तक बांधे रहती है लेकिन इन दिनों जिस तरह वैवाहिक रिश्तों में गिरावट आई है। कड़वाहट का संचार हुआ है और संबंध विच्छेद के मामले बढ़े हैं, उसे देखते हुए पूरे देश में विवाह पंजीकरण की अनिवार्यता की जरूरत महसूस की जा रही है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा लिए गए निर्णय को जरूरत के इसी आलोक में देखा जा सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में संपन्न कैबिनेट की बैठक में उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियमावली-2017 को मंजूरी दी गई है। इस फैसले के लागू होने पर अब सभी वर्गों को विवाह का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। मुस्लिम दंपति भी निकाह के पंजीकरण के लिए बाध्य होंगे। प्रतिपक्ष निश्चित रूप से इस मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करेगा लेकिन सच तो यह है कि निकाह का पंजीकरण होने के बाद मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न और तलाक के मामलों में कमी आएगी। सवाल उठता है कि जब योगी सरकार ने सभी धर्मों के लिए विवाह पंजीकरण अनिवार्य किया है तो किसी विशेष धर्म का नाम लेकर इस मामले को बेवजह तूल देने का कोई औचित्य नहीं है। मुस्लिम महिलाओं के तलाक के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में पीड़ित महिलाओं का पक्ष रखने की बात भाजपा की ओर से अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र में कही गई थी और मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने खुलकर यह बात कही थी कि उनकी सरकार महिलाओं का उत्पीड़न बर्दाश्त नहीं करेगी। सभी वर्गों के लोगों के लिए विवाह पंजीकरण की अनिवार्यता के लिए नियमावली बनाए जाने को कमोवेश इसी रूप में देखा जा सकता है। इससे बाल विवाह की घटनाओं में भी कमी आएगी और इससे बालिकाओं को शिक्षा-दीक्षा का पर्याप्त अवसर मिल सकेगा। पहले वर-वधू के विवाह की लग्न पत्रिका को ही सबसे बड़ा विवाह पंजीकरण माना जाता था लेकिन अब हालात बदल गए हैं। देश की बढ़ती जरूरतों के हिसाब से भी अब पंजीकरण अनिवार्य हो गया है। वीजा, पासपोर्ट बनवाने में भी विवाह का पंजीकरण जरूरी होता है। दिल्ली वक्फ बोर्ड ने भी पिछले दिनों निकाह पंजीकृत करने का निर्णय लिया था और बाद में प्रबल विरोध के बाद उक्त निर्णय को निरस्त किया गया था। दारुल उलूम देवबंद के मुफ्ती अबुल कासमी ने कहा था कि शरीअत में तो निकाह को लिखित रूप में लिखने पर पाबंदी नहीं लगाई है लेकिन पंजीकरण सेे निकाह में पेचीदगी और परेशानी खड़ी हो जाएगी। जामिया मजाहिरुल उलूम सहारनपुर के नाजिम मौलाना सैयद सुलेमान मजाहिरी ने भी उस समय दारुल उलूम के दृष्टिकोण का समर्थन किया था और निकाह के अनिवार्य पंजीकरण को गैर जरूरी बताया था। मदरसा मजाहिरुल उलूम वक्फ सहारनपुर के मौलाना मोहम्मद सईदी ने पंजीकरण कानून को एक तरह से शरीअत में हस्तक्षेप बताया था। इंस्टीट्यूट ऑफ मुस्लिम लॉ के डायरेक्टर अनवर अली एडवोकेट ने कहा था कि हिन्दुस्तान के कई राज्यों में निकाह का पंजीकरण कानूनी और अनिवार्य है जैसे कश्मीर, गोवा, असम और केरल आदि में। कुछ इस्लामी देशों में भी निकाह का पंजीकरण होता है फिर आखिर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीअत उलेमा और जमाअत इस्लामी इस बात पर क्यों जोर देती हैं कि पंजीकरण न हो। तहरीक वहदत इस्लामी के अमीर मौलाना अताऊर रहमान वजदी ने कहा था कि काजी द्वारा जो निकाहनामा भरा जाता है वह अपने आप में एक तरह का पंजीकरण है, इसको ही काफी माना जाए। कानूनी तौर पर पंजीकरण सिर दर्द साबित होगा।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने निकाहनामा को विवाह पंजीकरण के बराबर मान्यता दिलाने के लिए गांव-गांव में जनजागरण अभियान चलाने का निर्णय लिया था। बोर्ड ने निकाहनामा को प्रत्येक जिले के दारुलकजा (शरई अदालत) में सुरक्षित रखने का भी फैसला किया था। इसके लिए दारुलकजा का विस्तार करने की बात कही गई थी। बोर्ड कार्यकारिणी के सदस्य जफरयाब जीलानी ने भी कभी कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विवाह पंजीकरण के मुद्दे पर सदस्यों ने लगातार तीन दिन तक गंभीरता से विचार किया। सभी सदस्यों ने एकमत से राय जताई कि निकाहनामा को विवाह पंजीकरण के बराबर मान्यता मिलनी चाहिए। योगी सरकार के इस निर्णय के बाद अल्पसंख्यकों का क्या रुख होगा, यह देखने वाली बात होगी। समर्पण और विश्वास के रिश्ते (निकाह) को सिर्फ मजहबी नहीं माना जाना चाहिए।