ब्रेकिंग न्यूज़
मोतिहारी निवासी तीन लाख के इनामी राहुल को दिल्ली स्पेशल ब्रांच की पुलिस ने मुठभेड़ करके दबोचापूर्व केन्द्रीय कृषि कल्याणमंत्री राधामोहन सिंह का बीजेपी से पूर्वी चम्पारण से टिकट कंफर्मपूर्व केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री सांसद राधामोहन सिंह विभिन्न योजनाओं का उद्घाटन व शिलान्यास करेंगेभारत की राष्ट्रपति, मॉरीशस में; राष्ट्रपति रूपुन और प्रधानमंत्री जुगनाथ से मुलाकात कीकोयला सेक्टर में 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 9 गीगावॉट से अधिक तक बढ़ाने का लक्ष्य तय कियाझारखंड को आज तीसरी वंदे भारत ट्रेन की मिली सौगातदेश की संस्कृति का प्रसार करने वाले सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर को प्रधामंत्री ने संर्जक पुरस्कार से सम्मानित किया'दंगल' फेम सुहानी भटनागर की प्रेयर मीट में पहुंचीं बबीता फोगाट
संपादकीय
आधुनिक हिन्दी कथा जगत के युग पुरुष थे प्रेमचंद : अनिता महेचा
By Deshwani | Publish Date: 31/7/2017 3:15:26 PM
आधुनिक हिन्दी कथा जगत के युग पुरुष थे प्रेमचंद : अनिता महेचा

हिन्दी के आधुनिक साहित्यकारों में प्रेमचंद का स्थान शीर्षस्थ है। वे हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कथाकार एवं अपन्यास सम्राट माने जाते हैं। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी गद्य के निर्माता भी हैं अैेर उसके सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि भी हैं। जब उन्होंने लिखना प्रारम्भ किया तो उस समय हिन्दी का कथा साहित्य प्रारम्भिक अवस्था में था। उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर साहित्य का संबंध जन-जीवन से स्थापित किया और मानव जीवन की विविध स्थितियों को कहानियों के विषय के रूप में चुना। राष्ट्रीय चेतना ,समाज सुधार, पारिवारिक जीवन, देश की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं विभिन्न समस्याओं को लेकर उन्होंने कहानियां रची। इन सभी विशेषताओं से प्रेमचंद जन-जन के प्रिय कहानीकार एवं उपन्यासकार माने जाते हैं।

प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 में बनारस के पास लमही नामक गांव में हुआ था। इनके बचपन का नाम धनपतराय था , लेकिन घर में उन्हें नवाबराय नाम से पुकारा जाता था । छोटी उम्र में शादी होने तथा पिता के देहान्त होने से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके उन्हें बनारस में अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी। बाद में नौकरी करते हुए उन्होंने बी.ए. तक पढ़ाई की तथा सरकारी सेवा में अपनी योग्यता के बल पर डिप्टी इन्सपेक्टर बन गये थे। 

राष्ट्रीय आंदोलन के प्रभाव में आकर उन्होंने 20 साल की नौकरी से त्याग पत्र दे दिया, और स्वतन्त्र रूप से सहित्य सृजन करते रहे। गांधीवाद और स्वतन्त्रता आंदोलन के अनेक चित्र इनकी कहानियों में प्राप्त होते हैं। उन्होंने कथा साहित्य द्वारा श्रेष्ठ जीवन मूल्येां को पूरा समर्थन प्रदान किया। प्रेमचंदजी का सन् 1936 में देवावसान हो गया। 

प्रेमचंदजी सर्वप्रथम नवाबराय के नाम से उर्दू में कहानियाँ लिखा करते थें। उनका उर्दू में लिखा ‘‘सोजेवतन‘‘ नामक कहानी संग्रह अग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। तब से वह प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। उनकी पहली कहानी ‘संसार का अनमोल रत्न‘ 1907 में जमाना में प्रकाशित हुई थी।

प्रेमचंदजी की प्रारम्भिक कहानियां जो सन् 1917 से 1920 के दरम्यान लिखी गई, उसमें सुदीर्घ कथानक एवं घटनाओं का अत्यधिक विस्तार प्राप्त होता है। इनका कहानियों में आदर्शवाद आरोपित रूप में प्रतीत होता है। इन कहानियों में ‘सुजान भगत‘, ‘बड़े घर की बेटी‘ , ‘पंच परमेश्वर ‘ , ‘शराब की दुकान‘ , ‘नमक का दारोगा‘ जैसी कहानियां इसी कोटि के अन्तर्गत आती हैं। 

सन् 1921 से 1930 के मध्य लिखी इनकी कहानियों में कला की दृष्टि से अत्यधिक परिपक्वता आई। इस दौरान लिखी गई कहानियों में उन्होंने आरोपित आदर्शवाद को त्यागकर यथार्थवाद को अपनाया लेकिन आदर्श का कुछ प्रभाव अभी भी उनकी कहानियों में विद्यमान था। इस काल में लिखी गई कहानिंयो में ‘शतरंज का खिलाड़ी, ‘ईदगाह‘ ,‘माता का हृदय‘, ‘परीक्षा‘, ‘आँसुओं की होली‘, ‘पण्डित मोटाराम शास्त्री‘ , ‘शांति‘ जैसी कहानियों में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। सन् 1931 से 36 तक लिखी गई उनकी कहानियां आदर्शवाद से पूर्ण रूप से मुक्त होकर यथार्थ की ओर उन्मुख हो गई थीं। इन कहानियों में मानव मनोविज्ञान का सूक्ष्म चित्रण किया गया है। ‘कफन‘ ,‘मंत्र‘, ‘पूस की रात‘ ,‘नशा‘, ‘मिस पद्मा‘, इसी दौरान लिखी गई बेहद महत्वपूर्ण कहानियां हैं। इन कहानियों के अन्तर्गत उनकी कथा चेतना अपनी सम्पूर्ण सर्वोत्कृष्टता के रूप में उजागर होती है। 

प्रेमचंद जी ने ऐसे साहित्य का सृजन किया जो उदात्त मानवीय भावनाओं और मूल्यों के कारण अजर-अमर हैं। उन्होंने 300 के आसपास कहानियां लिखीं जो ‘मानसरोवर‘ के नाम से 8 भागो में सरस्वती प्रेस से प्रकाषित हो चुकी हैं। उन्होंने लगभग एक दर्जन उपन्यासों की रचना की। ‘प्रतिज्ञा‘, ‘वरदान‘, ‘सेवा सदन‘, ‘निर्मला‘, ‘गबन‘, ‘प्रेमाश्रम‘, ‘रंगभूमि‘, ‘कायाकल्प‘, ‘गोदान‘, ‘रूठी रानी‘ और मंगलसूत्र (अपूर्ण) आदि प्रमुख हैं।

हिन्दी उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में इनका आगमन एक वरदान से कम नहीं माना जा सकता। प्रेमचंदजी ने कहानी व उपन्यास को कोरी कल्पना और रूमानियत के धुंधलके से निकालर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया। उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नई पहचान दी। जीवन के अनेक रंगों के अनुभूतिपरक चित्र इनकी कहानी की विषेषता है। 

उन्होंने कहानी को घटना के स्थान पर उसे चारित्रिक आयाम प्रदान किया और वायवी परिवेश के स्थानपर जीवन के यथार्थ को उद्घाटित किया। ऐसा करने के कारण ही प्रेमचंद लाखों लोगों के चहते और प्रिय लेखक बन सके। इसी वजह से उनकी तुलना रूस के गोर्की व चीन के लुसुंग से की जाती हैं। 

प्रेमचंदजी ने जागरण, मर्यादा, माघुरी, हंस का सम्पादन भी किया। उन्होंने ‘प्रेम की बेदी‘ ,‘करबला‘, और ‘संग्राम‘ जैसे नाटक भी लिखे तथा ‘कुछ विचार‘ एवं ‘विविध प्रंसग‘ में इनके निंबंध संग्रहित हैं। प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी साहित्य के युग पुरुष माने जाते हैं। उन्होने अपने युग के समाज ,धर्म और राजनीति के अनुभवों को अपनी लेखनी के द्वारा संजोया था। जीवन के तमाम जीवंत अनुभव उनकी रचनाओं में साकार रूप में देखे जा सकते हैं। 

इसी कारण उनके उपन्यास और कहानियां इतनी प्रभावशाली हैं कि पुरानी होकर भी उनके कथानक ,उनकी रचना प्रक्रिया तथा अन्य तत्व हमेशा ताजगी भरे लगते हैं। उनकी प्रत्येक रचना में यथार्थ जीवन की धड़कनें हैं, और इसी कारण उन्हें बार-बार पढ़ने पर भी मन उकताता नहीं। यह बात नहीं कि उन्होने अपनी रचनाओं को कोरे यथार्थ से ही सजाया है बल्कि उनमें जीवन के व्यावहारिक आदर्शों की कल्पना भी मिलती है और उस जीवन की स्पष्ट झलक भी, जैसा वह जीवन समाज में देखना चाहते थे। प्रेमचंद अपनी रचनाओं में आज भी जिंदा हैं, और हमेशा जिंदा रहेगें। विश्व के अमर कहानिकारों में आज भी उनका स्थान अग्रगण्य बना हुआ है।

 
image
COPYRIGHT @ 2016 DESHWANI. ALL RIGHT RESERVED.DESIGN & DEVELOPED BY: 4C PLUS