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संपादकीय
शिक्षा मित्रों का हिंसक आंदोलन आखिर कितना मुफीद
By Deshwani | Publish Date: 30/7/2017 12:35:04 PM
शिक्षा मित्रों का हिंसक आंदोलन आखिर कितना मुफीद

सियाराम पांडेय ‘शांत’
सोलह साल और चार माह में कितना अंतराल होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। सोलह साल की जटिल समस्या इतने कम समय में हल नहीं हो सकती। कभी भाजपा ने चालीस साल बनाम चार साल का दावा किया था। इसमें उसने कांग्रेस को घेरने की कोशिश की थी लेकिन उत्तर प्रदेश में इन दिनों जरा उलटा हो रहा है। सपा, बसपा और कांग्रेस ने शिक्षामित्रों के समायोजन मामले में राज्य सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है। विधान परिषद में विपक्ष ने जिस तरह नारे लगाए कि लाठी की सरकार नहीं चलेगी, उसका राजनीतिक निहितार्थ तो यही है। ऐसा नहीं कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने शिक्षामित्रों के लिए कुछ किया ही नहीं है। अपने चुनावी वायदे के मुताबिक जिन शिक्षामित्रों का समायोजन नहीं हो सका था, उनके मानदेय बढ़ाने का काम भी उन्होंने किया है। इसके बाद भी विपक्ष योगी सरकार को न केवल घेर रहा है बल्कि सर्वोच्च न्यायालय से समायोजन निरस्त होने के लिए उसे जिम्मेदार भी ठहरा रहा है। पूर्ववर्ती सरकारों में शिक्षामित्रों की स्कूलों में तैनाती किन शर्तों पर हुई थी, यह भी किसी से छिपा नहीं है। आवेदन पत्र में ही इस बात का उल्लेख था कि यह पद नितांत अस्थायी है। सरकार जब चाहे तब इस व्यवस्था को समाप्त कर सकती है। उसमें एक शर्त यह भी थी कि संविदा पर नियुक्त शिक्षामित्र खुद को स्थायी करने की मांग नहीं करेंगे। जब शिक्षामित्रों की तैनाती का आधार ही लचर हो तो उन्हें मदद कैसे मिल सकती है? यह अलग बात है कि शिक्षामित्रों की पौने दो लाख की संख्या को वोट बैंक के नजरिए से देखा गया और उन्हें विधि विरुद्ध तरीके से समायोजित करने के प्रयास हुए। समायोजन की संभावना बनते देख शिक्षामित्रों ने यूनियन बना ली और वे सड़कों पर उतरने लगे। 
 
सर्वोच्च न्यायालय से समायोजन निरस्त होने के बाद उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र उत्तेजित हैं। वे पूरे प्रदेश में आंदोलन, तोड़-फोड़ और आगजनी कर रहे हैं। कहीं-कहीं वे पुलिसकर्मियों पर भी हमलावर हो रहे हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी शिक्षामित्रों ने बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय का घेराव किया। बीएसए को अपने कार्यालय में जाने से रोका। भाजपा के प्रदेश मुख्यालय पर भी उन्होंने नारेबाजी की। कई जिलों में तो शिक्षामित्र इतने अधिक आक्रामक हो गए कि उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठियां भांजनी पड़ी। उन पर पानी की बौछार करनी पड़ी। शिक्षा मित्रों के उग्र रवैये को देखते हुए सरकार की ओर से सभी जिला अधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को जगह-जगह चौकसी बरतने के निर्देश दिए गए हैं। विधान परिषद में भी शिक्षामित्रों के समायोजन रद्द होने और उन पर लाठी चार्ज का मामला उठा। उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने भी शिक्षामित्रों से संयम बरतने और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करने की अपील की है। शिक्षामित्रों को ऐसा लग रहा है कि योगी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अगर उनका पक्ष मजबूती से रखा होता तो उनका समायोजन निरस्त नहीं होता। शिक्षामित्रों के पैरवीकर्ता वकील की राय भी कुछ इसी तरह की है। उनका मानना है कि सरकार ने नियुक्ति पर नहीं, समायोजन पर फोकस किया जबकि यह पूरी तरह से नियुक्ति का मामला है। विधान परिषद में दिए गए योगी आदित्यनाथ के स्पष्टीकरण में एकबारगी दम नजर आता है। उन्होंने कहा है कि शिक्षामि़त्रों के समायोजन में ही गलती थी। पूर्व की सरकारों ने गलत किया। ऐसा न होता तो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द नहीं होता।
उन्होंने विधान परिषद को यह भी बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले के बाद उन्होंने अपर मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह शिक्षामित्रों का प्रतिवेदन लेकर सरकार के साथ बैठें। सरकार विधिसंगत रास्ते तलाश रही है। जब सरकार शिक्षामित्रों के मुद्दे पर खुद विचार कर रही है तो सड़कों पर उतरना और हिंसा करना ठीक नहीं है। शिक्षामित्रों को किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए। लगे हाथ उन्होंने यह भी कह दिया कि विपक्ष शिक्षा मित्रों को केवल वोट बैंक मानता है। शिक्षामित्र अगर हिंसा करेंगे और हिंसा का शिकार कोई निर्दोष होगा तो सरकार कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी। उन्होंने शिक्षामित्रों को प्रदर्शन करने की बजाय स्कूलों में जाकर पढ़ाने की नसीहत भी दी। उन्होंने इस बात के भी संकेत दिए कि लोकतांत्रिक तरीके से कही गई हर बात सुनी जाएगी। विपक्ष की धमकियों से सरकार डरने वाली नहीं है। जिनका समायोजन नहीं हुआ था उनका मानदेय बढ़ाया गया है। लोकतंत्र में रास्ता निकलता है। उनकी सरकार किसी भी व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं होने देगी। इससे बड़ी बात मुख्यमंत्री और क्या कह सकते हैं? इसके बाद भी अगर शिक्षामित्र आंदोलित रहते हैं तो इसे उनके दिमाग का दिवालियापन नहीं तो और क्या कहा जाएगा? राज्य का मुखिया जब शिक्षामित्रों को खुलकर आश्वस्त कर रहा है। इसके बाद भी उनका हिंसक आंदोलन समझ से परे हैं। इस पर अविलंब विचार किए जाने की जरूरत है। 
आंदोलन की अपनी मर्यादा होती है। वह अपनी सीमा में ही अच्छा लगता है। आंदोलन का अपना अनुशासन होता है। अनुशासित और मर्यादित आंदोलन ही देश को मजबूती देता है। गांधी जी ने पूरी आजादी की लड़ाई अहिंसक तरीके से लड़ी। सत्याग्रह को हथियार बनाया। सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया लेकिन अपने आंदोलन को पथ से भटकने नहीं दिया। उसी गांधी के देश में अब आंदोलन का मार्ग बदल गया है। तौर-तरीके बदल गए हैं। अब आंदोलन शांति के साथ नहीं होते। आंदोलन करने वाले अपना हित तो देखते हैं लेकिन उनके आंदोलन से आम जनमानस को कितनी परेशानी हो रही है, इसका विचार भी नहीं करते। जिसे देखिए, सीधे सड़क पर आ जाता है। छोटी-छोटी समस्याओं के लिए भी लोग आंदोलित होते हैं और इसका खमियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ता है। आंदोलनकारियों को यह तो सोचना ही होगा कि आंदोलन लोकतंत्र की आत्मा है। इसे कलुषित न होने दिया जाए। इसमें हिंसा और अराजकता का समावेश न किया जाए। आंदोलन शांत चित्त वालों का हथियार है। भटका हुआ दिशाहीन आंदोलन तो दुख का सबब ही बनता है। उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों के आंदोलन को कमोवेश इसी रूप में देखा जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी ने अपने लोक कल्याण संकल्प पत्र-2017 में इस बात का दावा किया था कि प्रदेश के सभी शिक्षा मित्रों की समस्या का तीन माह में न्यायोचित तरीके से समाधान किया जाएगा। इस क्रम में योगी आदित्यनाथ सरकार ने असमायोजित शिक्षामित्रों का मानदेय बढ़ाया भी है। ऐसे में यह आरोप लगाना ठीक नहीं है कि सरकार शिक्षामित्रों की समस्या को लेकर गंभीर नहीं है या उसने सर्वोच्च न्यायालय में शिक्षामित्रों का मामला उचित ढंग से नहीं रखा।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों की नियुक्ति 1999 में प्रारंभ हुई थी। इनका चयन ग्राम शिक्षा समितियों ने किया था। जिन शिक्षा मित्रों का चयन किया गया है उनमें एक लाख 24 हजार स्नातक हैं जबकि 23 हजार मात्र इंटर पास हैं। सहायक अध्यापक पद पर समायोजन का फैसला लेने से पहले सरकार इस पर होमवर्क कर लेती तो भी गनीमत थी लेकिन जिस तरह आनन-फानन में सरकार ने शिक्षामित्रों के समायोजन के निर्णय को अंजाम तक पहुंचाया, उसका खुलकर विरोध हुआ। टीईटी और बीएड पास अभ्यर्थियों ने सरकार के इस आदेश को न्यायालय में चुनौती दी। सियासी नजरिए से भर्ती के बारे में फैसला लेने की वजह से पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार को किरकिरी का सामना करना पड़ा। 72 हजार शिक्षकों की नियुक्ति में भी ऐसा हो चुका है। बसपा सरकार में टीईटी को मेरिट के आधार पर नियुक्ति देने के फैसले को सपा ने सत्ता में आते ही पलट दिया था। सरकार ने नियमावली में संशोधन करके उसमें मेरिट का क्लास भी जोड़ा था। इस फैसले को अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी थी और अंत में सरकार को अपने पैर वापस खींचने पड़े थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ ने अपने फैसले में कहा था कि चयनित होने के कारण किसी को नियुक्ति पाने का अधिकार नहीं मिल जाता। पूर्ण पीठ ने शिक्षा अधिकार कानून लागू होने के कारण 2 जून 2010 से शिक्षा मित्रों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाने को सरकार का नीतिगत फैसला माना था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2015 शिक्षामित्रों की नियुक्तियों को अवैध ठहरा दिया था जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर में इस आदेश को स्टे कर दिया था। तत्कालीन अखिलेश सरकार ने करीब 1 लाख 35 हजार शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षकों के तौर पर समायोजित किया है, जबकि करीब 35 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति अभी होनी थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सभी शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द हो गया है। केवल वही शिक्षामित्र पढ़ाने के लिए योग्य माने जाएंगे जो टीईटी पास होंगे और इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने शिक्षामित्रों को टीइटी पास करने की राहत भी दी है। इसके बाद भी शिक्षामित्रों का आंदोलन उनकी बौखलाहट और विपक्ष के उकसावे से प्रेरित ही नजर आता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से सभी मंत्रियों, विधायकों, सांसदों और नौकरशाहों के बच्चों को शासकीय स्कूलों में पढ़ाने के निर्देश दिए थे और यह भी कहा था कि अशिक्षित शिक्षकों के भरोसे प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को नहीं छोड़ा जा सकता। योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष से यह भी कहा है कि यह देश राष्ट्रवाद की राह पर चलकर ही आगे बढ़ेगा। विपक्ष तोड़-फोड़ और विरोध की राजनीति न करे, वह प्रदेश के विकास की नीति पर चले। एकात्म मानववादवाद के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय की भी आंदोलन को लेकर स्पष्ट धारणा थी कि आंदोलन होना चाहिए। इससे लोकतंत्र को बल मिलता है लेकिन उसमें हिंसा का समावेश नहीं होना चाहिए। आजकल जिस तरह आंदोलन का स्वरूप हिंसक हो रहा है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। सवाल यह है कि जब प्रदेश में सबकी सुनने वाली सरकार है तो हिंसक आंदोलन क्यों? समस्या का समाधान शांति से भी हो सकता है। शिक्षामित्रों की वर्षों की मेहनत बेकार न जाए लेकिन राज्य के बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित रहे, योगी सरकार को इन दोनों ही मोर्चे पर सोचना होगा, तभी समस्या का सही समाधान हो सकेगा। 
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