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संपादकीय
आर्थिक आजादी तो ठीक, असमंजस भी तो मिटे: सियाराम पांडेय ''शांत''
By Deshwani | Publish Date: 4/7/2017 2:02:12 PM
आर्थिक आजादी तो ठीक, असमंजस भी तो मिटे: सियाराम पांडेय ''शांत''

 देश दूसरी आजादी की ओर बढ़ चुका है। सरकार भी मान रही है कि जीएसटी देश का फैसला है लेकिन उसे जीएसटी को लेकर व्याप्त शंकाओं का प्रशमन तो करना ही होगा, अन्यथा सोशल मीडिया पर फैलने वाली भ्रामक खबरें लोकतांत्रिक भारत की जड़ों को खोखला कर देंगी, इस आशंका को नकारा नहीं जा सकता। इस पर खर्च चाहे जितना भी हो। हर जन प्रतिनिधि की जिम्मेदारी है कि वह जीएसटी के सभी पहलुओं को जनता के समक्ष बयां करें ताकि किसी भी तरह का संभ्रम न रहे। गलतफहमी न हो। 

इतिहास गवाह है कि यह देश आधी रात को आजाद हुआ था। देशवासी आज तक इस आजादी का मतलब नहीं समझ पाए। वे स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच का फर्क नहीं तय कर पाए। देश के पहले थल सेनाध्यक्ष मानिक शाॅ भी नहीं समझ पाए थे। उन्होंने एक सभा में स्वतंत्रता पर बोलते हुए स्पष्ट किया था कि नाऊ वी आर फ्री। अवर फूड इज फ्री। अवर ड्रिंकिंग इज फ्री। इवरीथिंग इज फ्री। खैर जब लोग हंसने लगे तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया और बाद में उन्होंने अपनी गलती सुधार ली लेकिन तमाम देशवासी आजादी का मतलब आज तक नहीं समझ पाए। आजादी का अर्थ वे खुद तय करते हैं, वह भी अपनी सुविधा के संतुलन के हिसाब से। नागरिकों ने यह तो जाना कि वे आजाद हैं। संविधान ने उन्हें कुछ अधिकार दिए हैं लेकिन उन्होंने यह जानना मुनासिब नहीं समझा कि उनकी तरह के अधिकार और स्वतंत्रता देश के दूसरे लोगों को भी मिली है। सबकी आजादी की अपनी सीमा है। अपनी सीमा में रहकर ही आजादी का वास्तविक आनंद लिया जा सकता है। संविधान ने हर नागरिक के लिए कुछ कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं। 

आजादी का मतलब यह हरगिज नहीं कि कोई स्वच्छंद होकर सड़क पर डंडा घुमाए। एक व्यक्ति उसी सीमा तक अपना डंडा घुमा सकता है, जिस दायरे तक किसी का सिर न आए। जितना आजाद डंडा घुमाने वाला है, उतना ही आजाद सड़क पर चलने वाला दूसरा व्यक्ति है। दूसरे की आजादी में दखल देने और खलल डालने का अधिकार किसी को भी नहीं है। अगर दिन के उजाले में देश स्वतंत्र हुआ होता तो इस देश के हर आदमी को यह बात मालूम होती। आधी रात में कांग्रेस के नेताओं ने अंग्रेजों के साथ किस शर्त पर आजादी ली, इसका पता आज तक देशवासियों को नहीं चल सका। यही वजह है कि आज हर व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों को लेकर ऊहापोह में है। रोज-ब-रोज होने वाले आंदोलनों के मूल में यही अज्ञानता है। हर व्यक्ति अगर अपने मौलिक अधिकारों से वाकिफ होता, संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार अगर सुविधाओं में तब्दील हो गए होते तो जगह-जगह आंदोलन नहीं होते। आजादी को लेकर देश के कुछ विश्वविद्यालयों में युवा नारे नहीं लगाते। इस देश के राजनीतिक सूत्रधारों को यह बात तो स्वीकारनी ही पड़ेगी कि उनके स्तर पर आजादी और भारतीय संविधान के बारे में जनजागरूकता फैलाने का काम ईमानदारी से नहीं हुआ।

 

भारत के संसदीय इतिहास में पहला मौका था जब देश की संसद में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व में संविधान की पूर्वपीठिका का सभी सांसदों ने पाठ किया। किसी भी राज्य की विधानसभा में ऐसा मंजर तो कभी देखने में नहीं आया। देश की संसद में पहली बार एक बड़ी पहल हुई थी। इस पहल का दायरा बढ़ाकर इसे जनसामान्य के बीच ले जाया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। अब यह कहा जा रहा है कि यह दूसरा मौका है जब आजादी की तरह ही आधी रात को इस देश को आर्थिक आजादी मिली है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस आर्थिक आजादी को लेकर भी जनमानस में असमंजस बना रहे। हालांकि इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि माल और सेवाकर के बारे में लोगों को जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार ने अनथक प्रयास किए हैं लेकिन अभी भी उपभोक्ताओं, दुकानदारों और कंपनियों के कर्ताधर्ताओं को यह नहीं मालूम कि किस सामान पर कितना जीएसटी निर्धारित है। बिल्कुल मनमाना-घरजाना हिसाब किताब है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के स्तर पर भी जीएसटी को आम जनता के लिए राहतकारी बताया जा रहा है। विशेषज्ञ भी कुछ इसी तरह के दावे कर रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहें आम आदमी को परेशान करने के लिए काफी हैं। व्यापारी भी कम परेशान नहीं हैं। उनकी शंकाओं का जितनी जल्दी समाधान हो जाए, उतना ही मुनासिब होगा। 

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जून को आधी रात घंटा बजाकर देश में माल और सेवा कर लागू कर दिया है और इसी के साथ एक देश-एक कर का नारा बुलंद हो गया। बात यहीं तक सीमित नहीं रही, इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के स्थापना दिवस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने देश के सभी चार्टर्ड अकाउंटेंट को अर्थ जगत का ऋषि-मुनि करार दिया। सम्मान देने की इससे अधिक बेहतरीन भावना और कुछ भी नहीं हो सकती लेकिन क्या भारतीय ऋषि ऐसा ही कुछ करते थे जो आज के चार्टर्ड अकाउंटेंट किया करते हैं। भातीय ऋषि कभी भी अपने आदर्शों और सिद्धांतों से समझौता नहीं करता। अपने जमीर का सौदा करना उसे कभी गंवारा नहीं रहा। देश में जितनी भी फर्जी कंपनियां चल रही हैं, उनके स्याह को सफेद करने का काम कौन करता है? यही चार्टर्ड अकाउंटेंट। सभी चार्टर्ड अकाउंटेंट को आरोपों के कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता लेकिन अधिकांश के कार्य व्यवहार पर अंगुली तो उठाई ही जा सकती है। यह सच है कि करापवंचन में लिप्त कंपनियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। उनके मुताबिक सरकार ने 37 हजार से अधिक शेल कंपनियों की पहचान कर ली है। नोटबंदी के बाद एक लाख से अधिक कंपनियों का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। नोटबंदी के दौरान पता चला है कि देश में तीन लाख से अधिक कंपनियां संदिग्ध लेन-देन में लिप्त थीं। प्रधानमंत्री ने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स से यह भी कहा है कि उन्हें देश ने एक पवित्र अधिकार दिया है। बही-खातों में सही को सही और गलत को गलत कहने का, प्रमाणित करने और ऑडिट करने का अधिकार सिर्फ आपके पास है। सीए पर समाज की आर्थिक सेहत की जिम्मेदारी होती है। दुनियाभर में भारत के सीए पहचाने जाते हैं। सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने यहां तक कह दिया कि मेरी और आपकी देशभक्ति में अंतर नहीं है लेकिन कुछ सच्चाई कभी-कभी सोचने को मजबूर करती है। प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि कुछ लोग देश की प्रगति में बाधक हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ सरकार ने कड़े कदम उठाए हैं। नए कानून बनाए हैं। विदेश में कालाधन जमा करने वालों को और मुसीबत होने वाली है। नोटबंदी के दौरान किसी ने तो इन कंपनियों की मदद की ही होगी। ये बेईमान कंपनियां किसी न किसी ‘डॉक्टर’ के पास तो गई ही होंगी। ऐसे लोगों की मदद करने वालों को पहचानने की जरूरत है। प्रधानमंत्री के इस आश्वासन में दम है कि जिन्होंने गरीबों को लूटा है, उन्हें गरीबों को लूटी गई रकम वापस करनी ही होगी लेकिन ऐसा कब तक होगा, यह भी तो सुस्पष्ट किया ही जाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को भारतीय अर्थ व्यवस्था का अंबेसडर करार दिया है। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मानें तो जीएसटी का सर्वाधिक लाभ उत्तर प्रदेश को होगा। केंद्र सरकार ने कर चोरों से निपटने के लिए यह व्यवस्था लागू की है। एक साल के अंदर सारे कर चोर आॅनलाइन आ जाएंगे और कर देना उनकी मजबूरी होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी को पूरे देश का साझा निर्णय बताया है और साथ ही साथ इस बात की भी आश्वस्ति दी है कि जीएसटी का बड़ा लाभ देश को भविष्य में मिलेगा। इसके विपरीत कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने जीएसटी को सर्वाधिक जटिल टैक्स प्रणाली बताते हुए प्रधानमंत्री पर तंज कसा है कि भगवान भला करे भारत का। 

इसमें संदेह नहीं कि जीएसटी का लाभ कुछ हद तक उपभोक्ताओं को मिलने भी लगा है। कुछ कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतें घटाई भी हैं। कुछ कीमतें घटाने का विचार कर रही हैं लेकिन पुराने स्टाक पर आज भी व्यापारी पुरानी कीमत ही वसूल रहे हैं। अलबत्ते उस पर जीएसटी का अतिरिक्त बोझ भी उपभोक्ताओं पर डाल रहे हैं। जीएसटी निश्चित रूप से एक बड़ा फैसला है। एक देश-एक कर के निर्णय से इस देश को निश्चित रूप से राहत मिलेगी लेकिन यह भी उतना ही सच है कि विदेशी कंपनियों को भारत में अपना माल उतारने के लिए आयात, एक्साइज और कस्टम ड्यूटी नहीं देनी पड़ेगी। माल और सेवाकर वे भारतीय उपभोक्ताओं से ही वसूल लेंगे। उन्हें इसके लिए भारत सरकार को अपनी ओर से कुछ भी अतिरिक्त देने की जरूरत नहीं होगी। इसका असर जाहिरा तौर पर भारत के घरेलू उत्पादन पर पड़ेगा। यह स्थिति मेक इन इंडिया की भावना पर भारी पड़ सकती है। भारतीय व्यापारियों से तो सरकार कान पकड़कर माल एवं सेवाकर वसूल लेगी लेकिन आर्थिक कदाचार के मामले में वह विदेशी कंपनियों पर किस तरह नियंत्रण करेगी, यह देखने वाली बात होगी। नोटबंदी को लेकर केंद्र सरकार का उत्साह देखते ही बन रहा है लेकिन इससे देश का कितना नुकसान हुआ है। खासकर नोट छापने में, एटीएम की करेंसी चेस्ट बदलने के संदर्भ में। एक लंबे समय तक देश की अर्थव्यवस्था ठहरी रही है। बैंकों के सहयोग से पूंजीपतियों ने, राजनीतिक दलों ने किस तरह अपने काले धन को सफेद किया, यह भी किसी से छिपा नहीं है। केंद्र सरकार को पूंजी का प्रवाह निरंतर बनाए रखने के बारे में सोचना चाहिए। देश हर निर्णायक फैसले में केंद्र सरकार के साथ है। सफाई जरूरी है लेकिन इस सफाई में इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि देश का आर्थिक संतुलन बना रहे। भारतीय कुटीर उद्योगों को अगर जिंदा रखना है तो उन्हें सुविधाजन्य परिवेश देना ही होगा। कालेधन पर अंकुश जरूरी है लेकिन यह भी देखा जाना चाहिए कि इससे आमजन को परेशानी न हो। उनके हाथ से रोजगार न छिन जाए। कुल मिलाकर नोटबंदी के बाद जीएसटी का निर्णय स्वागत योग्य है, इसकी जितनी भी सराहना की जाए, कम है लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर ईमानदारी से हर आदमी टैक्स देना शुरू कर दे तो इस देश को तरक्की के शीर्ष पर पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता।

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