दरभंगा
मिथ्या कलंक से बचने वाला सुहागिनों का खास पर्व तीज
By Deshwani | Publish Date: 12/9/2018 9:04:51 PMतीज व्रत करती सुहागिन। फोटो-देशवाणी।
दरभंगा। देवेन्द्र कुमार ठाकुर।
भादो माह की शुक्ल पक्ष तृतीया को तीज व्रत सुहागिनों द्वारा मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस व्रत का बड़ा महत्व है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से माता गौरी और भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि इस व्रत के प्रताप से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है। पुराणों और लोक कथाओं में भी इस व्रत की महिमा का गुणगान मिलता है। यह व्रत जितना फलदायी है। उतने ही इसके नियम कठिन हैं।
हरतालिका तीज का व्रत अत्यंत कठिन माना जाता है। यह निर्जला व्रत है यानी कि व्रत के पारण से पहले पानी की एक बूंद भी ग्रहण करना वर्जित है। व्रत के दिन सुबह-सवेरे स्नान करने के बाद “उमा महेश्वर सायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये“ मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं रखती हैं। लेकिन एक बार व्रत रखने के बाद जीवन भर इस व्रत को रखना पड़ता है। हरतालिका तीज की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल अर्थात यानी कि दिन-रात के मिलने का समय।
हरतालिका तीज के दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। संध्या के समय फिर से स्नान कर साफ और सुंदर वस्त्र धारण कर सुहागिन महिलाएं नए कपड़े पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। उसके बाद विधिवत गौरी व शिव की पूजा कर अपने पति के दीर्घायु होने का पूजा करती है। वही दूसरी ओर मिथ्या कलंक से बचने के लिए चौठ चन्द्र पर्व मनाया जाता है। द्वापर युग में श्री कृष्ण के ऊपर मिथ्या कलंक लगने के बाद से इस पर्व की शुरुआत हुई थी। शास्त्रों के मुताबिक द्वारिकापुरी में सत्राजित को भगवान सूर्य से स्यमंतक मणि प्राप्त हुआ था। भगवान कृष्ण ने सत्राजित से कहा कि यह मणि आप राजा उग्रसेन को दे दो। सत्राजीत ने उनकी बात नहीं सुनी। एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेन मणि को लेकर वन में शिकार करने जाते हैं तो वहां सिंह के द्वारा उसकी मौत हो जाती है। सिंह के मुंह में मणि देख जांबवंत सिंह को मारकर मणि ले लेता है। इधर अफवाह फैली कि श्री कृष्ण ने ही प्रसेन को मारकर मणि ले लिए। चौठ के चंद्र को देखने से उनपर मणि चोरी का कलंक लगा था। उसके बाद भगवान चन्द्रदेव को प्रसन्न करने के लिए श्री कृष्ण ने पूजा-अर्चना की। यह पर्व मिथ्या कलंक से बचने के लिए मनाया जाता है। इस दिन हाथ में फल लेकर चंद का दर्शन किया जाता है। श्रद्धालु पर्व के दिन नए मिट्टी के बर्तन में नियम निष्ठा से दही जमाकर चन्द्र को अर्पण करते हैं और शंख जल से चन्द्रदेव को अर्घ्य देते हैं और डालिया या सूप भी चढ़ाते हैं। डालिया में नारंगी, सेब, केला, दही का छांछ आदि भरा जाता है। व्रती काफी निष्ठा से यह पर्व करती हैं।