दरभंगा। मो0 अब्दुल कलाम।
विश्व के समस्त राष्ट्रों के निर्माण में शिक्षकों की ही भूमिका रही है। चाहे राष्ट्र पूंजीवादी हो या फिर साम्यवादी अथवा भारत की तरह। राष्ट्र कैसा होगा, राष्ट्र किस ओर जाएगा? इसकी आधारशिला भी गुरू ही रखते है। तभी तो आचार्य चाणक्य ने कहा है- शिक्षक साधारण नहीं होता प्रलय और निर्माण दोनों ही उसकी गोद में पलते है। शिक्षक सिर्फ क्लास रूप में पढ़नेवाला ही नहीं होता है बल्कि किसी भी प्रकार के ज्ञान से परिचित करानेवाला व्यक्ति गुरू है। उपरोक्त बातें डॉ0 प्रभात दास फाउण्डेशन एवं ल ना मि वि वि के पीजी समाजशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित ‘‘राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका’’ विषयक संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए प्रख्यात राजनीतिक चिंतक डॉ0 जितेन्द्र नारायण ने कही। राष्ट्रवाद की विस्तृत व्याख्या करते हुए डॉ नारायण ने बताया कि जिस तरह से परिवार के निर्माण-उन्नति में परिवार के सदस्यों का योगदान होता है उसी तरह से राष्ट्र के निर्माण में भी नागरिकों की भूमिका होती है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित संस्कृत विभाग के वरीय प्रोफेसर डॉ0 जयशंकर झा ने कहा कि गुरू को ऐसे ही देवताओं से भी ऊपर का दर्जा नहीं दिया गया है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ विनोद कुमार चैधरी ने कहा कि परिवार को बच्चों का प्रारंभिक विद्यालय माना गया है। लेकिन बच्चों को जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है।
संगोष्ठी को समाजशास्त्र विभाग के पूर्व छात्र प्रो. दिलीप कुमार झा, चंद्रभूषण कुमार, अलका झा, कंचन कुमारी, संगम जी झा, राजेश्वर झा, प्रियंगम जी झा, रूही खातून, जयशंकर झा आदि शामिल थे।
संगोष्ठी का संचालन विभाग के वरीय प्रो0 डॉ0 विद्यानाथ मिश्र ने किया। जबकि अतिथियों का स्वागत प्रो0 गोपी रमण प्रसाद सिंह ने किया। वहीं धन्यवाद ज्ञापन डॉ मंजू झा ने दिया। मौके पर फाउण्डेशन के सचिव मुकेश कुमार झा, अनिल कुमार सिंह, नवीन कुमार, रविन्द्र चैधरी, मोहन साह आदि उपस्थित थे।