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लहसुन की खेती कर कमायें दोगुना लाभ
By Deshwani | Publish Date: 11/10/2017 12:24:30 PM
लहसुन की खेती कर कमायें दोगुना लाभ

लखनऊ, (हि.स.)। लहसुन की खेती ठंडे जलवायु के मौसम में की जाती है। इसकी सफल खेती के लिए तापमान 29.76-35.33 डिग्री सेल्सियस तापमान 10 घंटे का दिन और 70प्रतिशत आद्रता उपयुक्त होती है समुद्र तल से 1000-1400 मीटर तक कि ऊंचाई पर इसकी खेती कि जा सकती है।

फतेहपुर के मालंवा तहसी के किसान रामबाबू पाल ने बताया कि लहसुन की खेती से हमने अच्छा मुनाफा कामया है। दूसरे किसानों की तरह रामबाबू भी पहले धान गेहूं जैसी फसलों की खेती करते थे, साथ में सब्जियों की खेती भी करते थे। अपनी खेती की शुरुआत के बारे में रामबाबू पटेल बताते हैं, “पहले मैं भी अपने यहां के दूसरे किसानों की तरह खेती करता, सब्जियों के साथ ही लहसुन की भी खेती कर रहा था, लेकिन सही जानकारी न होने से सही पैदावार नहीं मिलती थी, जबकि लागत ज्यादा आती थी।“

अक्टूबर के महीने में लहसुन लगाना शुरु कर दिया जाता है। इसके खेत के मेड़ पर गोभी, मूली जैसी दूसरी सब्जियों की फसलें भी लगानी चाहिए। इससे भी आमदनी हो जाती है।

“हमारे जिले के कृषि वैज्ञानिक से पुणे के लहसुन एवं प्याज अनुसंधान संस्थान में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम के बारे में पता चला, वहां जाकर मैंने एक हफ्ते के प्रशिक्षण में लहसुन की उन्नत खेती के बारे में जानकारी ली।“

भारी भूमि में इसके कंदों का भूमि विकास नहीं हो पाता है। मृदा का पी. एच. मान 6.5 से 7.5 उपयुक्त रहता है। दो - तीन जुताइयां करके खेत को अच्छी प्रकार समतल बनाकर क्यारियां एवं सिंचाई की नालियां बना लेनी चाहिये।

उन्होंने बताया कि लाडवा, मलेवा, एग्रीफांउड व्हाइट, आर जी एल-1, यमुना सफेद-3 एवं गारलिक 56-4 नामक किस्में अच्छी पैदावार देती है। लहसुन का चूर्ण बनाने के लिये बड़े आकार की लौंग वाली गुजरात की जामनगर व राजकोट किस्मों को उपयुक्त माना गया है।

खाद एवं उर्वरकः

खेत की तैयारी के समय 20-25 टन प्रति हेक्टर गोबर खाद खेत में मिला देनी चाहिये क्योंकि जैविक खाद का लहसुन की उपज पर बड़ा अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा 50 किलो नत्रजन, 60 किलो फॉस्फोरस व 100 किलो पोटाश प्रति हेक्टर बुवाई के समय दें व 50 किलो नत्रजन बुवाई के 30 दिन बाद दें।

रामबाबू ने बताया कि लहसुन की कलियों की बुवाई के बाद एक हल्की सिंचाई करनी चाहिये इसके पश्चात वानस्पतिक वृद्धि व कंद बनते समय 7-8 दिन के अन्तराल से व फसल के पकने की अवस्था में करीब 12 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करें। सिंचाई के लिये क्यारी ज्यादा बड़ी नहीं बनावें। पकने पर पत्तियां सूखने लगे तब सिंचाई बंद कर दें। जिस क्षेत्र में पानी भरता हो उसमें पैदा हुये कंद अधिक समय तक संग्रह नहीं किये जा सकते। खरपतवार नष्ट करने के लिये निराई गुडाई आवश्यक है। गुड़ाई गहरी नहीं करें। इस फसल में निराई गुड़ाई अन्य फसलों की तुलना में कठिन है क्योंकि पौधे पास-पास में होते हैं। अतः खरपतवार नाशी रसायनों का उपयोग किया जा सकता है।

पांच साल पहले तक रामबाबू के पास सिर्फ सवा बीघा जमीन थी, खेती से ही उन्होंने 10 बीघा जमीन खरीद ली है। लहसुन एवं प्याज अनुसंधान संस्थान में प्रशिक्षण लेने के बाद रामबाबू ने एक एकड़ खेत में लहसुन की लगाया। जिसकी कुल लागत 45 हजार रुपये आयी थी। छह महीने में लहसुन की फसल तैयार हो गयी और जिसे बेंचने पर सवा दो लाख रुपये की आमदनी हुई।

रामबाबू बताते हैं, “ट्रेनिंग में किसानों को बताया जाता है, कि किस समय कौन सी खाद डालनी चाहिए। जैसे नाइट्रोजन तब देना है जब पौधे की बढ़वार होती है। दिन के हिसाब से कीटनाशक का छिड़काव किया जाता है। पहले सही जानकारी न होने से जड़ की बढ़वार होने के बजाय पौधों की बढ़वार हो जाती थी।“

उन्नत खेती के लिए रामबाबू को तीन बार फतेहपुर के जिलाधिकारी ने सम्मानित किया है। साथ ही पूसा दिल्ली में भी उन्हें सम्मानित किया गया है। फसल तैयार होने के बाद रामबाबू खुद ही मण्डी तक बेंचने भी ले जाते हैं। कानपुर की मण्डी में इन्होंने लहसुन की बिक्री की थी। 

 
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