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भारतीय कंपनियां यूरोप में कारोबार को लेकर सकारात्मक: फिक्की सर्वे
By Deshwani | Publish Date: 5/10/2017 10:06:08 PM
भारतीय कंपनियां यूरोप में कारोबार को लेकर सकारात्मक: फिक्की सर्वे

 नई दिल्ली, (हि.स.)। यूरोप में कारोबार कर रही भारतीय कंपनियां निराशा के साये से बाहर निकली हैं और वे यूरोप में अपने कारोबारी संभावनाओं में फिर से उछाल देख पा रही हैं।

भारतीय कॉर्पोरेट जगत ने दुनिया के सबसे अपेक्षा रखने वाले और संगठित बाजारों में से एक, यूरोप में धीरे-धीरे अपनी संचालन क्षमताओं की स्थिति में बदलाव कर और उन्हें नए सिरे से संरेखित कर बाजी पलटी है। कई यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के प्रदर्शन में सुधार का फायदा उठाकर और इसके दम पर भारतीय कंपनियां वहां आगे बढ़ने और अपने उत्पादों के लिए एक शीर्ष जगह तैयार करने में सक्षम हुई हैं।
“क्या बदलाव की बयार यूरोप में कारोबार करने वाली भारतीय कंपनियों के लिए शुभ संदेश ला रही है”, इस विषय पर किए गए फिक्की के सर्वे में पता चला है कि ऐसी कंपनियों की संख्या बढ़ रही है, जिन्होंने इस इलाके में कारोबार के दौरान अपने घाटे में कमी की है।
भारतीय कॉर्पोरेट जगत के लिए यह उत्साह बढ़ाने वाले संकेत हैं कि भारत-यूरोप के व्यापार और आर्थिक संबंधों में धीरे-धीरे गिरावट आने के बावजूद यह इलाका अब भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
सर्वे से पता चलता है कि मौजूदा आर्थिक परिस्थिति में वैसे तो भारतीय कंपनियों के लिए इस महाद्वीप में अपने विस्तार या कारोबार करने के रास्ते में तमाम प्रक्रियागत और नियामक अड़चनें आ रही हैं, लेकिन यहां किए गए निवेश पर अब भी जरूरी रिटर्न मिल जा रहा है।
भारतीय उद्यमिता अब यूरोप की सुधरी हुई आर्थिक परिस्थितियों का दोहन अपने फायदे के लिए करना चाहता है। इसकी वजह से यूरोपीय कंपनियों के साथ उनके संवाद और संयुक्त उद्यम कायम करने में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारत के एसएमई (SME) सेक्टर ने भी यूरोपीय कंपनियों के साथ नए कारोबारी गठजोड़ कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने की खातिर जरूरी टेक्नोलॉजी और संचालन विशेषज्ञता हासिल करने के लिए ऐसा किया गया है। इस तरह के कौशल उन्नतीकरण और विकास से भारतीय तथा यूरोपीय उद्यमों के बीच तालमेल बढ़ता जा रहा है।
सर्वे के निष्कर्षों से यह खुलासा भी होता है कि यूरोप में धीरे-धीरे हो रहे आर्थिक सुधारों का भारतीय कंपनियों के कारोबारी हितों पर कई दिशा में गहरा असर पड़ने वाला है। इनमें शामिल हैं-उनके कारोबार के मौजूदा स्तर के बने रहने, इस इलाके में अपने पांव और मजबूत करने, संबंधित यूरोपीय अर्थव्यवस्था के लिए ज्यादा लचीला नीतिगत ढांचा हासिल करने ताकि वहां कारोबार करने की प्रक्रिया आसान हो और मानव संसाधान की सुगम आवाजाही ताकि मौजूदा प्रोजेक्ट पूरा हो सकें तथा आने वाले समय में नए प्रोजेक्ट हाथ में लिए जा सकें।
भारत और यूरोपीय संघ के बीच एक समान भागीदारी वाले और संतुलित एफटीए (FTA) पर दस्तखत के लिए चल रही वार्ताओं पर भारतीय उद्योग जगत की गहरी नजर है। यूरोप में अपने प्रोफेशनल्स के लिए वीसा हासिल करना और उनकी आवाजाही अब भी भारतीय कंपनियों के लिए सबसे विवादग्रस्त और चिंता का क्षेत्र बना हुआ है।
उदारीकरण के शुरुआती वर्षों में भारतीय कंपनियों का जोर निर्यात बढ़ाने, विदेशी कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम या टेक्नोलॉजी ट्रांसफर समझौता करने पर था ताकि वैश्विक बाजारों में अपनी मौजूदगी दर्ज की जा सके। हाल के वर्षों में भारत का कॉर्पोरेट जगत लगातार वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी उद्यम बनाने की दिशा में आगे बढ़ा है। घरेलू मोर्चे पर बेहतर प्रदर्शन और बाहर निवेश करने के बारे में बनी उदार नीतियों की बदौलत विदेश में उपक्रम खड़े करने की इच्छा, वैश्विक स्तर पर पांव जमाने के लिए उत्प्रेरक साबित हुई है और इससे अधिग्रहण के रास्ते भारतीय कंपनियों के विदेशी बाजारों में प्रवेश की प्रक्रिया तेज हुई है।
समूचे 27 देशों का गुट यूरोपीय संघ भारतीय कंपनियों के लिए बहुत बड़ा ग्राहक आधार (करीब 50 करोड़ संभावित ग्राहक) पेश करता है। यूरोपीय संघ के अन्य आकर्षण में शामिल हैं- अच्छी तरह विकसित पूंजी बाजार, राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता, स्थापित और पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया आदि।
ग्रीक, स्पेन और इटली के साथ ही कई बड़ी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं जैसे जर्मनी और फ्रांस में हाल के महीनों में आर्थिक मजबूती और तरक्की के संकेत देखे गए। इसकी वजह से भारतीय कंपनियों ने इस बारे में जबर्दस्त तरीके से आशावाद दिखाया है कि अब इस इलाके में वाणिज्यिक हितों के लिहाज से उनके बुरे दिन बीत चुके हैं।
साल 2015 के भारतीय कंपनियों के सर्वे में 75 फीसदी ने यह कहा था कि यूरोप में जारी संकट से इस इलाके में उनके कारोबारी संभावनाओं पर बुरा असर पड़ा है, लेकिन इस साल सर्वे में शामिल होने वाली सिर्फ 25 फीसदी कंपनियों ने यह चिंता जताई कि यूरोप के मौजूदा आर्थिक हालात से उनके कारोबारी संभावनाओं को चोट पहुंच रही है।
सर्वे में शामिल 65 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने यह बताया कि जब बढ़ी हुई घरेलू मांग को दर्ज करने के लिहाज से बाजार सुस्त थे, तब भी वे अपने उत्पाद श्रेणी में वृद्धि हासिल करने में सफल रहीं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सर्वे में शामिल 61 फीसदी कंपनियां, जिन्होंने अपने कारोबारी संभावनाओं में बढ़त की बात की है, उनका घाटा साल 2015 के 20 फीसदी के मुकाबले इस साल 5 फीसदी से भी कम रह गया है। 18 फीसदी कंपनियों ने अपने कारोबार में 2 से 5 फीसदी तक की बढ़त हासिल की है।
सर्वे में शामिल 50 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने उम्मीद जताई है कि अगले 1-2 साल में मौजूदा आर्थिक हालत में और सुधार होगा।
उत्साहजनक बात यह है कि 30 फीसदी कंपनियों ने यह आशावाद जाहिर किया है कि यूरोपीय संघ की आर्थिक हालत एक साल में सुधरने लगेगी।
सर्वे में शामिल 57 फीसदी से ज्यादा कंपनियां अपने बहीखाते को स्थिर रखने के लिए यूरोप के भीतर और बाहर अपने बाजार को विविधता देने की शुरुआत कर चुकी हैं। यह साल 2015 के सर्वे के बिल्कुल विपरीत है, जब इनमें से 40 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने मध्य और यूरोपीय बाजारों में बस कदम रखने की शुरुआत की थी। इनमें से 60 फीसदी कंपनियों की प्राथमिकता अफ्रीकी देशों, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और यहां तक कि उत्तर अमेरिका जैसे हरियाली वाले इलाकों में कारोबार की थी।
सर्वे में शामिल 20 फीसदी से ज्यादा कंपनियों ने कहा कि मौजूदा आर्थिक संकट में विदेशी निवेश और कारोबार को सुगम बनाने की जगह कई यूरोपीय सरकारों ने लांग टर्म वीजा, परमिट, फैमिली और डिपेन्डेंट वीजा हासिल करने या उसके नवीनीकरण तथा इस क्षेत्र में कारोबारी सहूलियत की पूरी प्रक्रिया को और कठोर बनाया है। इन सबमें एक बात पर आमराय थी कि उनके लिए यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं में प्रभावी संपर्क बनाए रखने के रास्ते में बिजनेस वीजा हासिल करना सबसे चिंताजनक मसला बना हुआ है।
सर्वे में शामिल 10 फीसदी प्रतिभागियों ने सुझाव दिया कि भारत-यूरोपीय संघ व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी देने और करों में कटौती के लिए भारत सरकार को सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए। 
कई भारतीय कंपनियां यूरोप के मौजूदा आर्थिक संकट को अपना निवेश बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देख रही हैं। अपने फायदों को ज्यादा से ज्यादा करने और यूरोपीय बाजारों में मांग की कमी की वजह से हो रहे कारोबारी नुकसानों को कम करने के लिए भारतीय मैन्युफैक्चरर नई कारोबारी योजनाओं पर सक्रियता से आगे बढ़ रहे हैं। इनमें यूरोप से उच्च स्तर की मशीनरी और टेक्नोलाजी का आयात बढ़ाना भी शामिल है, क्योंकि यूरोपीय निर्यातक काफी प्रतिस्पर्धी कीमत की पेशकश कर रहे हैं। यह क्षमताओं में बढ़ोतरी तथा पूंजीगत व्यय में कमी के लिहाज से भारतीय उद्योग जगत के लिए दीर्घकालिक फायदा पहुंचा सकता है।
अपने कारोबारी हित वाले देश में निवेश बनाए रखने के लिए भारतीय कंपनियों की आर्थिक बुनियाद मजबूत है, इसलिए वे वहां बने रहना चाहती हैं। दुनिया के दूसरे हिस्सों में दिख रहे बेहतर अवसरों के लिए फिलहाल भारतीय कंपनियों यूरोपीय कारोबार को छोड़ने के मूड में नहीं हैं। 
 
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