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बिहार
शराबबंदी के मुद्दे पर समाज के हर वर्ग और सामाजिक संगठनों को सरकार का साथ देना चाहिए
By Deshwani | Publish Date: 19/12/2022 10:49:33 PM
शराबबंदी के मुद्दे पर समाज के हर वर्ग और सामाजिक संगठनों को सरकार का साथ देना चाहिए

पटना जितेन्द्र कुमार सिन्हा।बिहार के छपरा (सारण जिला) में जहरीली शराब से बीते दिनों 72 से ज्यादा लोगों की हुई मौत चिंता का विषय है, इसलिए शराबबंदी को लेकर सवाल उठना लाजमी है। दुखद बात यह है कि इस मौत पर बिहार सरकार के मुख्यमंत्री का यह कहना कि “ जो भी लोग शराब पीने से मरे उनके परिजनों को कोई मुआवजा नहीं दिया जायेगा।” यह निहायत ही गलत प्रतीत होता है। शराब से मरने वालों में उनके परिजनों को मुआवजा देने से सरकार क्यों भाग रही है? कहीं सरकार नई गठबंधन के कारण ऐसा कहने को मजबूर तो नहीं है?

 
 
 
 
लोगों की दलीलें आम होते जा रही है कि हरियाणा, तमिलनाडु और केरल में शराबबंदी का प्रयोग सफल नहीं हुआ था और बिहार में भी जबसे शराबबंदी कानून लागू हुआ है उस दिन से लगभग सभी दिन या तो पुलिस शराब की बोतलों को पकडी या घर घर शराब आपूर्ति होने की खबर समाचारों में प्रकाशित होती रहती है। इसलिए बिहार सरकार को शराबबंदी पर पुनर्विचार करना चाहिए। जबकि देखा जाय तो इस दलील का कोई ठोस आधार दिखता नहीं है। 
 
 
 
 
समाचारों में जिस प्रकार प्रतिदिन कोई न कोई समाचार प्रकाशित होता है जिसमें शराब की खेप पकड़ी, शराब की होम डिलीवरी होना, शराब पीकर हंगामा करना या शराब पीकर मरने की घटना होना, प्रकाशित होते रहती है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि शराबबंदी सिर्फ दुकान खोलकर बिक्री नहीं हो रही है और अगर इसे नजरअंदाज किया जाय, तो लगेगा कि शराबबंदी कहाँ है? 
 
 
 
 
 
यह सही बात है कि यदि सड़कों पर वाहन की दुर्घटना बढ़ती है तो आवागमन बंद नहीं किया जाता है बल्कि सड़कों की रूट बदला जाता है या फिर नये नियम के उपाय खोजे जाते है और नये नियम बनाये जाते है। इसी तरह बिहार में शराबबंदी के बाद भी यदि शराब पीकर लोगों की मरने की सिलसिला जारी रहती है तो सरकार को शराबबंदी बरकरार रखते हुए जहरीली शराब के कारोबारों पर लगाम कसने के उपाय खोजनी चाहिए। 
 
 
 
 
 
शराबबंदी गुजरात में 1960 से लागू है। उसी प्रकार बिहार में भी शराबबंदी पहली बार
1977 में लागू की गई थी, लेकिन उस समय सरकार पर शराब माफिया के दबाव रहने के कारण यह बंदी ज्यादा समय तक नहीं चली थी। पुनः बिहार सरकार शराबबंदी वर्ष 2016 में लागू की, जो एक बहुत ही साहसिक कदम था। लेकिन 2016 से अब तक का जो स्थिति बिहार में है, उससे ऐसा लगता है कि शराब की आपूर्ति के खिलाफ सरकारी तंत्र को चुस्त दुरुस्त करनी होगी ताकि शराबबंदी और अधिक कारगर हो सके।
 
 
 
 
 
महात्मा गांधी ने भी शराबबंदी को पूरे देश में लागू करने के पक्षधर थे। उनका मानना था कि शराब पीना, चोरी और व्यभिचार से भी ज्यादा खराब है। वे कहते थे कि यदि उन्हें भारत के तानाशाह बना दिया जाय तो वे बिना मुआवजा दिये ही देश में शराब की सारी दुकानें बंद करवा दूंगा।
 
 
 
 
 
बिहार में जहरीली शराब पीने से हुई मौत पर राज्य सरकार को संज्ञान लेनी चाहिए और जहरीली शराब से हुई मौत के जिम्मेदार कौन है उसकी खोज कर सलाखों के पीछे डालने के लिए पहल करनी चाहिए, ताकि शराबबंदी पर सरकार को कोई कटघरे में खड़ा नहीं करे। कच्ची शराब के अवैध कारोबार पर सरकार को अंकुश लगाने की ठोस कदम उठानी चाहिए।
 
 
 
 
 
देखा जाय तो सरकार ने शराबबंदी की पहल समाज हित में की थी, लेकिन इसे राजनीतिज्ञों ने राजनीतिक रंग दे दिया है। अब समय आ गया है कि समाज के हर वर्ग और सामाजिक संगठनों को गोलबंद होकर शराबबंदी के मुद्दे पर सरकार का साथ दें, क्योंकि उन्हें समझना चाहिए कि नशा से सिर्फ और सिर्फ बर्बादी के सिवा कुछ हासिल नहीं होता है।
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