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जन-जन की आस्था की छठ पूजा प्रकृति से प्रेम का संदेश देती है- आचार्य शिवेंद्र
By Deshwani | Publish Date: 9/11/2021 6:39:03 PM
जन-जन की आस्था की छठ पूजा प्रकृति से प्रेम का संदेश देती है- आचार्य शिवेंद्र

 ।। श्रीशः।।

 
ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशिःजगत्पते।
अनुकम्पाय यां भक्त्या गृहाणाऽर्घ्यः दिवाकरः।।
 
आपसभी स्नेहप्रिय सनातनीयो को  लोकास्था पर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाएं :-
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पुरुष और प्रकृति संरक्षित इस पर्व की महत्ता आज सम्पूर्ण भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को पल्लवित और प्रफुल्लित कर रहा है। जहाँ सम्पूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण संरक्षण आदि गंभीर विषयों से आक्रान्तित हैं। 
वहीं लोक आस्था का यह महान पर्व अपने व्रतीय नियमों में सबका समाधान छुपाये हुए हैं। इस व्रत में होने वाले नियमों या विधियों पर गौर करेंगे तो हमें सभी समस्याओं का समाधान प्राप्त हो जायेगा। इस व्रत का प्रारंभ नहाय खाय से होता है। जो प्रकृति के साथ सात्विक संबंध के प्रौढ़ता का सूचक है। 
 
अर्थात् प्रयोग में होने वाले कद्दू की सब्जी और नये धान का भात शारीरिक पुष्टता के साथ प्राकृतिक सौंदर्य को दर्शाता है।
 
        व्रत के दूसरे  दिन दिनभर उपवास के बाद सायं समय में गुङ से बना हुआ रसियाव (खीर) और रोटी "सदा जीवन उच्च विचार" को परिभाषित करता है।
           इस व्रत का सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सबसे पहले डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और बाद में उगते हुए सूर्य को। अर्थात् यह नियम प्रकृत्ति के उस नियम को प्रदर्शित करता है कि जीवन  में दुख के बाद सुख का अनुभव निश्चित ही होता है।
 
 उत्थान और पतन यह प्रकृत्ति का स्वभाविक गुण है। अतः पुरुष को मदाहंकार से रहित होकर प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीवन यापन करना चाहिए। 
 
जब हम प्रकृति विमुख होते हैं तो प्रकृति अपने स्वभावानुसार कार्य करने लगती है।
 
     पूजन में प्रयुक्त होने वाली साम्रगी जैसे आटा गुङ से बना ठेकुआ, गन्ना, खरीफ अन्न, अदरख, निम्बू व सिंघाड़ा आदि पदार्थ जो मानव जीवन के लिए अनुकूल और औषधीय गुणों से युक्त है। उसका प्रयोग होना विज्ञान को भी चुनौती देता है।
                इस व्रत में भगवान सूर्य और षष्ठी देवी का पूजन किया जाता है। भगवान सूर्य पुरुष का प्रतिनिधित्व करते हैं तो भगवती षष्ठी ( सूर्य पत्नी सविता) प्रकृति का। सूर्य अपने अलौकिक प्रकाशपुंज से जगत को प्रकाशित कर नये तेज उमंग का प्रवाह करते हैं तो भगवती षष्ठी शीतत्व से रक्षार्थ हेतु सृष्टि को संचालित करती है।
 
इस वर्ष सायं अर्घ्य बुधवार 10-11-2021 को शाम 5:10- 5:27 के मध्य और प्रातः अर्घ्य गुरूवार 11-11-2021को6:17 - 6:34 तक होगा।
 
पुनः आप सभी को लोकास्था के महान पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
 
      ।। शुभम् भूयात् ।।
श्री गायत्री ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र
आचार्य शिवेन्द्र पाण्डेय
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