बिहार
रक्सौल: सरिसवा नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने की कोशिशों में लगे डॉ. स्वयंभू शलभ
By Deshwani | Publish Date: 8/11/2021 8:10:14 PMरक्सौल। अनिल कुमार। सरिसवा नदी को प्रदूषणमुक्त बनाने की कोशिशों में लगे डॉ. स्वयंभू शलभ ने लोकआस्था के महापर्व छठ के मौके पर कहा है कि इस नदी के किनारे प्रतिवर्ष हजारों महिलाएं छठ पूजा करती हैं। इस दौरान नेपाल स्थित कल कारखानों द्वारा कुछ दिनों के लिए अपने वेस्टेज को नदी में डालना बंद कर दिया जाता है लेकिन छठ पूजा बीतने के साथ ही स्थिति जस की तस हो जाती है। नदी में प्रदूषण का जहर डालना आरंभ कर दिया जाता है और नदी का पानी फिर से काला और जहरीला हो जाता है। बड़ा प्रश्न यही है कि छठ पूजा के समय जो नदी स्वच्छ नजर आती है सरकार और नागरिक समाज चाहे तो क्या इस स्थिति को बरकरार नहीं रखा जा सकता।
उन्होंने आगे कहा कि भारत नेपाल की सीमा को चिह्नित करने वाली इस नदी का तिल तिल कर मरना और दोनों देशों की सरकारों के द्वारा इसके प्रदूषण को रोक पाने में सफल नहीं हो पाना प्रकृति की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के नियमों के आगे एक बड़ा प्रश्नचिह्न बनकर खड़ा हो गया है। जबकि भारत और नेपाल दोनों ही देश पर्यावरण संरक्षण के हिमायती हैं और दोनों के बीच आपसी गहरे सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध हैं।उन्होंने जनमानस की पीड़ा को व्यक्त करते हुए आगे कहा कि यह असफलता सबों की असफलता है। हमारी आने वाली पीढ़ियां इसके लिए हमें कभी माफ नहीं करेंगी। वो सवाल उठाएंगी कि हम कैसा पर्यावरण उनके लिए छोड़ गए। वो पूछेंगी कि कैसे यहां के जीते जागते लोग असंवेदनशील बनकर अपनी आंखों के सामने एक जीवनदायिनी नदी को घुट घुट कर मरते देखते रहे। वो पूछेंगी कि यहां की सरकारें, यहां की व्यवस्था क्यों नहीं कोई कारगर कदम उठा पाईं।हम शायद उन्हें यह समझा नहीं पाएंगे कि इसे बचाने की हमने हर मुमकिन कोशिश की।
पर्यावरण से जुड़े देश में जितने भी विभाग और मंत्रालय हैं सबों तक अपनी फरियाद पहुंचाई। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी आवाज उठाई। सबों ने नदी की दशा पर चिंता जताई और कार्रवाई के नाम पर समस्या को दूसरे विभाग में फॉरवर्ड करके अपने कर्तव्य को पूरा कर दिया। बीते एक दशक में इस प्रदूषण मामले को लगभग सभी विभागों और मंत्रालयों तक पहुंचाने के बावजूद नतीजा कुछ नहीं निकला। संबंधित विभागों ने रक्सौल में ईटीपी और एसटीपी लगाए जाने का अनुमोदन भी कर दिया पर वह योजना भी जमीन पर नहीं उतरी। हाँ हमारे पास विभागीय पत्रों की कई कई फाइलें जरूर तैयार हो गईं।एक स्वच्छ और पवित्र नदी के तिल तिल कर मरने की कहानी आज एक कड़वी सच्चाई बनकर हमारे सामने है जहां की व्यवस्था लाख कोशिशों के बावजूद इस नदी को बचाने की दिशा में अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठा पाई और जहां के लोग इस जहरीले प्रदूषण के बीच घुट घुट कर जीने के लिए विवश हैं।