रक्सौल। अनिल कुमार।अनुमण्डल क्षेत्र व सीमाई क्षेत्र के लोगों के लिए रक्सौल में चिकित्सा के क्षेत्र में एक बेहतर सुविधा की और शुरुआत हो गयी है। जिसे हम डी-डीमर जाँच के नाम से जानते हैं। इसकी शुरुआत शहर के सरकारी हॉस्पिटल के समीप हनुमान मंदिर के सामने अपोलो जाँच घर में की गई है। इसके साथ यहाँ पर एलडीएच व सीआरपी जाँच की सुविधा भी मिल रही है। जिसका विधिवत शुरुआत शनिवार से हुआ है।
इसके संचालक डॉ. भूपेंद्र प्रसाद चौरसिया ने बताया कि अपोलो जाँच घर लैब पूर्ण रूपेण आधुनिक व कंप्यूटराइज्ड कृत है। जो कि एनालाइजर व सीबीसी जैसे आधुनिक मशीनों से सुसज्जित बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त है। डॉ. भूपेंद्र ने बताया कि डी-डीमर के जाँच से कोरोना मरीजों को काफी फायदा होगा, जो उनके जान को बचाएगा।
गौरतलब है कि कोरोना से संक्रमित अधिकतर मरीजों में डी-डिमर बढ़ने के कारण थ्रोम्बोसिस की समस्या हो सकती है। डी-डिमर प्रोटीन का ऐसा टुकड़ा है जो तब बनता है जब शरीर में रक्त का थक्का घुल जाता है।
ऐसे में डी-डीमर टेस्ट करवाना जरूरी होता है। कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद व्यक्ति को भविष्य में भी कई खतरे होते हैं। इससे संक्रमित होने के कुछ दिन बाद तक भी उन्हें कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। गौरतलब यह भी है कि कोरोना एक रेस्पिरेटरी वायरस है सबसे अधिक फेफड़ों पर अटैक करता है, यही वजह है कि प्रभावित व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है, लेकिन कुछ अन्य शोध में यही भी खुलासा हुआ है कि वायरस जब व्यक्ति के फेफड़ों में प्रवेश करता है तो वह धीरे-धीरे खून को चिपचिपा कर खून में थक्के जमाने लगता है।
फेफड़ों में होने वाले वायरल इंफेक्शन से मरीजों में गंभीर निमोनिया हो सकता है, जिससे उस मरीज की मौत हो सकती है। कोरोना वायरस भी मरीज के फेफड़ों में अटैक कर खून के थक्के जमाने लगता है, जिससे व्यक्ति के फेफड़े खराब हो जाते हैं और उसी समय उसकी तत्काल मौत भी हो सकती है। शोध के मुताबिक, कोरोना से संक्रमित अधिकतर मरीजों में डी-डिमर बढ़ने के कारण थ्रोम्बोसिस की समस्या हो सकती है। डी-डिमर प्रोटीन का ऐसा टुकड़ा है जो तब बनता है जब शरीर में रक्त का थक्का घुल जाता है। ऐसे में डी-डीमर टेस्ट करवाना जरूरी होता है, जिससे खून में थक्के जमने की समस्या का पता चल जाता है।