अमित कुमार गुड्डू की कलम से।
पूरे साल कोरोना महामारी की वजह से पूरी तरह बंद व्यवसाय, रोजगार, स्कूल, कॉलेज व अन्य शिक्षण संस्थान, होटल कारोबारी सभी मायूस थे, उसी बीच विधानसभा का चुनाव आ गया। दुर्गा पूजा भी बीच में बीत गया, पता नहीं चला। ईद-बकरीद कब बीत गई, किसी को पता नहीं चला। पिछले 1 महीने से विधानसभा के शोर-शराबे से लोगों में कुछ हलचल दिखाई दी।
अपने सरकार को चुनने की उत्सुकता दिखाई दे रही थी, कल उसका भी अंत हो गया। पूरे 5 साल के लिए राजनीति बंद हो गई। नई-नई राजनीतिक पार्टियां नए-नए न्यूज़ संस्थान सब अपनी दुकान समेट कर अब आने वाले त्योहारों की तरफ अपना रुख मोड़ लिया। कल धनतेरस मनाना है उसके 2 दिन के बाद दीपावली का त्यौहार है। यह अलग बात है कि इस बार के चुनाव में वह पुराना गाना ही बैठता है, 'कहीं दीप जले कहीं दिल' किसी की जीत तो किसी की हार के साथ चुनाव संपन्न हुआ। करीब करीब सभी लोग अपने घर की सफाई में लगे हैं और लक्ष्मी के आगमन के इंतजार मे हैं। सभी की यही आशा है कि माता मेरे घर में आए और रिद्धि सिद्धि के दाता मंगल हो, मंगल करें।
पूरे 6 महीने से मायूस दुकानदारों के चेहरे पर थोड़ी सी खुशी आई है। बाजारों में चहल-पहल दिखाई दे रही है, लोगों में खरीदारी की चाह और मजबूरी साफ दिख रही है। क्योंकि साल में एक बार ही तो त्यौहार आता है। गरीब अपने हिसाब से व अमीर अपने हिसाब से त्यौहार मनाने की कोशिश करते हैं। और अपने हिसाब से बाजारों में खरीदारी करते हैं। बाजार के छोटे-मोटे और बड़े बड़े दुकानदार भी नया स्टॉक लगाकर ग्राहकों की प्रतीक्षा में उम्मीद लगाए बैठे हैं। इंतजार है कि कुछ बिक्री हो जाए तो उनका भी त्यौहार मन जाए। प्रधानमंत्री द्वारा सभी देशवासियों से अपील की गई है कि देश का सामान यूज़ करें, मतलब देश में निर्मित का प्रयोग करें, स्वदेशी अपनाएं रोजगार बढ़ाएं।
चुनाव के समय किए गए वादे और उन वादों से जनता का नाता अब 5 वर्षों तक टूट गया। सारे लुभावने सपने चुनाव के साथ ही खत्म हो गई, अब तो बस अपनी जेब और अपनी खरीदारी अपने साथ होगी। भयानक महामारी कोरोना से ग्रसित पूरा देश यू कहे तो पूरा विश्व आज आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में इस त्यौहार की अहम भूमिका रहेगी क्योंकि हम आप खरीदारी करेंगे तो ही दुकानदारों के घर में दिए रोशन होंगे। समस्याएं तो हर वर्ष छठ समय में आता ही है। वह नगर के प्रबुद्ध लोगों का अतिक्रमण कर छठ घाट पर कब्जा जमाना, वहीं प्रशासन को मशक्कत करना और जनता को आश्वासन देना कि स्वच्छ और सुंदर घाट का निर्माण कराया जाएगा। व्रतियों को दिक्कत ना हो उसके लिए बिजली की व्यवस्था घाट पर ब्लीचिंग पाउडर जैसे सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाएगा।
कुछ लोग अपनी सुविधा के हिसाब से मोहल्ले में या यूं कहें अपने घर में ही छठ मनाने के लिए समर्पित होते हैं। चुनाव के हिसाब किताब के बाद प्रशासन भी अब इस कार्य में लगेगा, नगर परिषद भी इस कार्य में लगेगा, जनता के बीच जाएगा और हमें आश्वासन देगा कि इस बार घाट की सफाई बहुत अच्छी होगी। आप से घाट पर आने का आग्रह किया जाएगा महापर्व मनाने के लिए कहां जाएगा। आपने देखा होगा शहर में जब आप खरीदारी करने निकलते हैं तो घर से ही डर सताता है कि बाजार में जाम लगा होगा। कुव्यवस्था का आलम अब दो-चार दिन आपको बाजार में देखने को मिलेगा।
प्रशासन के लोग खड़े रहेंगे आपके सहयोग के लिए, लेकिन हमारे आपके द्वारा की गई गलतियों के कारण जाम महा जाम का रूप ले लेगा और एक काम करने के लिए बाजार आएंगे सुबह से शाम हो जाएगा। जिला प्रशासन, नगर परिषद, प्रशासन के नाक के नीचे यह समस्या करीब-करीब पूरे जिले में हर जगह देखने को मिलेगा। प्रशासन भी अतिक्रमण करने वालों पर डंडा चलाएगी, दुकान उजड़ेगी और फिर से वहा दुकान बस जाएगा। छोटे-मोटे दुकानदार जो सड़क पर फुटपाथ पर दुकान लगाते हैं उनका भी एक संगठन है और वह जिला प्रशासन से अपनी सुरक्षा की मांग करने लगेंगे।
फुटपाथ दुकानदार संघ, यह सोचकर भी हंसी आती है कि यह त्यौहार सभी लोगों के लिए रोजगार का अवसर लेकर आता है और इसे हम अपनी गलतियों से गवां बैठते हैं और भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। त्यौहारों का रंग फीका पड़ जाता है क्योंकि आपके सोच के हिसाब से अगर आपकी आमदनी नहीं हुई तो फिर आप अपने बच्चों और घर वालों को क्या जवाब देंगे। नगर में छोटे से चौक चौराहे पर आप देखेंगे, थ्री व्हीलर रिक्शा, ठेला तांगा, कार, ई रिक्शा अपने घर से कमाने के लिए सड़क पर निकलते हैं लेकिन जाम की समस्या की वजह से उनकी आमदनी भी आधी हो जाती है। समस्या दोगुनी हो जाती है। वैसे समस्या के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं और खुद बीच बाजार में खड़ा होकर एक दूसरे से सवाल करते नजर आते हैं कि भाई इस समस्या का निदान क्या है।