उत्तर बिहार के जानेमाने विद्वान हिन्दी साहित्य के साधक मोतिहारी एलएनडी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो महेश्वर प्रसाद सिंह कवि जी ने बसंत पंचमी को अंतिम सांसें लीं
मोतिहारी। प्रसाद रत्नेश्वर।
उत्तर बिहार में कवि जी नाम से विख्यात प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद सिंह "कवि जी"नहीं रहे। जीवन पर्यन्त सरस्वती की आराधना में लीन रहनेवाले इस महान सपूत को विद्या की देवी ने वसंत पंचमी (30 जनवरी) की पावन तिथि को ही अपनी गोद में चिरनिद्रा के लिए हमेशा के लिए बुला लिया। उन्होंने करीब 76 वसंत देखे।
शहर के श्रीकृष्णनगर स्थित उनका निवास बना साहित्यिक तीर्थ-
शहर के मदन राज नर्सिंग होम में उन्होंने अंतिम सांसें लीं। उनके साहित्य में आम आदमी की पीड़ा व संघर्ष का साक्षात्कार होता है। वही अपने व्यवहार में आम आदमी थे। उनसे बातें करने पर लगता कि हम अपने अभिभावक से मिल रहे हैं। यही कारण था कि उनका निवास जिले का सांस्कृतिक व साहित्यिक केन्द्र बना रहा। कहना न होगा कि वे अपने निवास को सांस्कृतिक तीर्थ बनाकर चले गए। लिहाजा अपनी कविताओं व साहित्यिक कृतियों के माध्यम से साहित्य को साधनेवालों के दिलों में वे हमेशा जीवित रहेंगे। अपने पीछे बेटे-बेटियां, पोते-पोती व नातियों से भरापूरा संसार छोड़कर गए हैं।
वैशाली में हैं उनका पैतृक निवास-
वैशाली और मुजफ्फरपुर की सीमा स्थित बनिया गाँव में 19 जनवरी,1944 को जन्मे कवि जी मोतिहारी के श्रीकृष्ण नगर में बस गये थे। 90 के दशक में वे चरखा पार्क के पीछे बेलबनवा स्थित किराए के मकान में बहुत दिनों तक रहे। हाजीपुर में भी उनका मकान है जहां उनके चिकित्सक भाई का परिवार निवास करता है।
वे हिंदी भाषा और साहित्य के मर्मज्ञ थे-
हिंदी काव्य जगत के इस अमिट हस्ताक्षर को धूमिल और मुक्तिबोध की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कवि माना जाता है। हिंदी एवं संस्कृत साहित्य-संस्कृति के समर्थ व्याख्याता,प्रखर वक्ता,ओज व व्यंग्य के रचनाकार कवि जी स्थानीय लक्ष्मी नारायण दुबे महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष थे।इस महाविद्यालय में 1973 में योगदान करने वाले कवि जी ने 31 जनवरी,2004 को यहीं से अवकाश प्राप्त किया था।
कई संस्थाओं के थे पदाधिकारी-
मोतिहारी के साहित्यिक और सामाजिक जन जीवन में रचे-बसे कवि जी संप्रति मोतिहारी रेड क्रॉस सोसायटी के निर्वाचित उप सभापति थे। वे बिहार विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का नेता और फुटबॉल के राज्य स्तरीय खिलाड़ी भी थे। वही वे महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य थे।
कवि जी की दूर-दूर तक ख्याति उनकी कविताओं को लेकर थी। मुक्त छंद की उनकी कविताओं की लयात्मकता, नये विम्बों की खोज और तेवर ने उन्हें आधुनिक कवि के रूप में स्थापित किया। लंबी कविताएँ भी उन्हें कंठस्थ रहा करती थीं। गद्य और पद्य में समान गति रखने वाले कवि जी छन्द विधान के भी ज्ञाता थे। उन्होंने दर्जनों छंदबद्ध भी कविताएँ लिखीं हैं। आंचलिकता और लोकोक्तियों के अनूठे प्रयोगों के दर्शन उनकी कविताओं में होते हैं।
उल्लेखनीय है कि कवि जी स्वरचित श्लोक व प्रार्थनाओं से ईश्वर की उपासना करते थे। धर्म और अध्यात्म वे आधिकारिक विद्वान थे। श्री रामचरित मानस और तुलसीदास पर उनका वक्तव्य और विवेचन श्रवणीय होता था।
कवि जी राजनीतिक रूप से भी बहुत चेतनशील व्यक्ति थे। देश-दुनिया में रोज़ घटनेवाली घटनाओं पर उनकी सटीक टिप्पणी और भविष्यवाणी हुआ करती थी। उनसे कई से मंत्री, सांसद, विधायक, विधान पार्षद व अन्य नेता जुड़े थे। जो अपने चुनाव कार्यालय का उदघाटन कराने या आशीर्वाद लेने आते थे।
उनकी साहित्यिक कृतियां-
अपनी काव्य-साधना से अपने घर को साहित्यिक तीर्थ बना गए कवि जी। उनकी चर्चित कविताओं में बोल तिरंगे, नरक के द्वार पर, रूई, पावस संहार व मेरी खोपड़ी सिद्धपीठ प्रमुख रूप से शामिल हैं।