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ब्राह्मण विमर्श के अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में लिए गया समाज की एकता का संकल्‍प
By Deshwani | Publish Date: 21/12/2019 6:07:13 PM
ब्राह्मण विमर्श के अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में लिए गया समाज की एकता का संकल्‍प

पटना  ब्राह्मण समाज में सामाजिक एकता की आवश्यकता के विषय पर आज राजधानी पटना के होटल मौर्या में ब्राह्मण विमर्श के तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘कंट्रीब्यूशन ऑफ ब्राह्मण समाज टू यूनाइट द सोसाइटी एंड देयर रिस्पांसिबिलिटी’ का आयोजन किया गया, जिसका शुभारंभ विधिवत रूप से ब्राह्मण विमर्श के संयोजक एवं संरक्षक श्री जे एन त्रिवेदी ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। इसके पश्चात कांचीपीठ के शंकराचार्य वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्‍यम से अपना आशीर्वचन दिया। इस दौरान वक्‍ताओं ने ब्राह्मण समाज का देश के निर्माण में योगदान पर विमर्श किया। वहीं, वरिष्‍ठ नेता संजय जोशी ने भी संगोष्‍ठी को संबोधित किया और ब्राह्मण समाज के योगदानों की चर्चा की। उन्‍होंने समाज की एकता पर बल दिया।

 
इससे पहले ब्राह्मण विमर्श के संयोजक एवं संरक्षक श्री जे एन त्रिवेदी ने कहा कि ब्राह्मण समाज अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग की सहायता प्राप्त करने हेतु राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए अत्यंत लोकप्रिय कांटा बन गया है। ऐसा औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा शुरू की गई द्वेषनीति नीति का परिणाम है। वे जानते थे कि हिंदू जैसे देश को पराभूत करने के लिए ब्राह्मणों को सामाजिक परिदृश्य से ओझल करना आवश्यक था। वे जान चुके थे कि यही ब्राह्मण समाज है, जिसने इस देश के प्राचीन दर्शन को कलेजे से लगा कर अभी तक बचा कर रखा है।  मुसलमान शासकों के विनाशकारी कदमों से 10वीं और 11वीं शताब्दी से बचाकर सुरक्षित रखा है।
 
उन्‍होंने कहा कि सन 1835-37 में ही उन लोगों ने शिक्षा की प्राचीन प्रणाली को जो कभी सरकारी नियंत्रण में नहीं था। उसे बदल दिया और नई शिक्षा प्रणाली लागू कर दिया, जो नगरीय संस्कृति पर आधारित रही थी। उन लोगों ने दो लाख से अधिक देसी स्कूलों की बनी बनाई शिक्षा की ग्रामीण संरचना और संस्कृत व फारसी आधारित उच्चतर शिक्षा को ध्वस्त होने दिया। शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण का मतलब यह था कि सरकार ही पाठ्यक्रम का निर्धारण पुस्तकों का चयन करेगी और प्रमाण पत्र देगी। इस प्रकार के इस व्यवस्था ने सरकार को ऐसा अभूतपूर्व मौका दे दिया, जिसके द्वारा स्कूल - कॉलेज के लिए अपने द्वारा चयनित पुस्तकों के माध्यम से संपूर्ण आबादी का मन मस्तिष्क बदल सके। दमन चक्र के क्रम में जाति और भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार बनी और ब्राह्मणों को सभी प्रकार की सभी प्रकार की बुराइयों के रूप में दिखाया गया और प्रचारित किया गया कि ब्राह्मण ही इन वंचित जातियों को समानता और शिक्षा के अधिकार से वंचित करने वाले थे। इस प्रकार ब्राह्मणों के विरुद्ध विस्तृत अध्ययन विस्तृत व्याख्यान तैयार किए गए और वोट की राजनीति ने स्वयं भारत में इसे हवा दे दी इसके साथ ही ब्राह्मणों पर दुष्प्रचार प्रारंभ हो गया। इसका बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव ब्राह्मण समाज पर पड़ा। कतिपय संस्थाओं और व्यक्तियों की छिटपुट विरोध के अलावा और कुछ उल्लेखनीय नहीं हुआ।
 
उन्‍होंने कहा कि 10वीं और 11वीं शताब्दी के आसपास भारत में जाति प्रथा की जल जमनी शुरू हो गई। इस्लाम के प्रारंभिक प्रवेश की उपस्थिति का भान होने लगा, जिसने भारतीय संस्कृति के धर्मनिरपेक्ष तत्वों को हिला दिया।  इसमें ईर्ष्‍या, द्वेष के लिए जगह नहीं थी। धार्मिक आस्थाओं के प्रति विरोध भाव पैदा कर दिया गया। मुस्लिम यात्रियों में प्रसिद्ध यात्री अब अलबेरूनी ने हिंदू और मुसलमान की आस्था एवं उनके बुनियादी अंतर के बारे में अपने यात्रा में वृतांत में लिखा है। श्री त्रिवेदी ने कहा कि प्रारंभ में ब्राह्मण दो भागों में बांट गए पंच गौर और पंच द्रविड़। इसके अलावा अन्य जातियों एवं उप जातियों में बांट गए। इस विभाजन ने ब्राह्मणों को  शक्ति से विहीन कर दिया, जिसके आधार पर वे अपने प्रति हो रहे अत्याचार के अत्याचार के खिलाफ लड़ते रहे थे। अब वह अपने दर्शन की रक्षा के प्रति अधिक सजग हो गए और इस क्रम में विक्रम से अन्य दुर्गुणों के शिकार होते गए, जिससे हम ब्राह्मणों द्वारा की गई सामाजिक बुराई मानते हैं।
 
उन्‍होंने कहा कि आज स्थिति यह है कि हम ब्राह्मण नव दलित के रूप में देखे जा रहे हैं। अब समय आ गया है कि ब्राह्मण जाति उपजाति का संकीर्ण भेद मिटाकर एक वृहद ब्राह्मण पूर्ण परिवार के रूप में विकसित हो। हम सबको सही मार्ग दिखायें और हमारे विरुद्ध किए जा रहे दुष्प्रचार का प्रतिवाद करें।  
 
संगोष्ठी का संचालन श्री मणींद्रनाथ तिवारी ने किया एवं श्री वाचस्पति द्विवेदी ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। संगोष्ठी को अपने ज्ञान से आलोकित करने वालों में श्री अरविंद सीतारमन, श्री श्री वेदवीर आर्य, प्रो. चंद्र भूषण झा, श्री निलय उपाध्याय, श्रीमती सुषमा कुमारी, श्री प्रेम स्वामीनाथन, श्रीमती प्रेम स्वामीनाथन आदि प्रमुख थे। इनके अलावा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संगोष्ठी को श्री बी.वी. के. शास्त्री और श्री रविंद्र कौल ने भी संबोधित किया। ब्राह्मण समाज के लगभग 300 सदस्यों ने संगोष्ठी में भाग लिया और अपनी भावनाओं से संगोष्ठी को अवगत कराया बाद में धन्यवाद ज्ञापन श्री पंडित जी पांडे ने किया।
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