समान काम-समान वेतन: 3.5 लाख नियोजित शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से झटका, नहीं मिलेगा समान वेतन
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के करीब 3.5 लाख नियोजित शिक्षकों बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बिहार के सरकारी स्कूलों में संविदा पर कार्यरत करीब 3.5 लाख शिक्षक नियमित आधार पर वेतन पाने के हकदार हैं।
शीर्ष कोर्ट ने शिक्षकों के समान काम के बदले समान वेतन देने के फैसले से इनकार करते हुए पटना हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और जस्टिस उदय उमेश ललित की खंडपीठ में मामले की अंतिम सुनवाई पिछले साल तीन अक्तूबर को हुई थी। सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा था कि संविधान में संशोधन कर शिक्षा को मौलिक अधिकार के रुप में लागू किया गया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2002 से पहले राज्य के 23 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर थे। लेकिन आज एक लाख से भी कम बच्चे स्कूलों से दूर हैं। ये तभी संभव हो पाया जब राज्य सरकार ने नियोजित शिक्षकों की नियुक्ति की। राकेश द्विवेदी ने कहा था कि इन शिक्षकों की नियुक्ति 2006 से शुरु की गई थी। जहां पहले एक लाख शिक्षकों की नियुक्ति होती थी वहीं अब राज्य में करीब साढ़े तीन लाख शिक्षकों की नियुक्ति हुई है। ये नियुक्तियां राज्य सरकार ने अपने बजटीय प्रावधानों से की थी।
राकेश द्विवेदी ने कहा था कि नियोजित शिक्षकों का वेतन हमेशा बढ़ता रहा है। उनका वेतन 15 गुना बढ़ाया गया है। जब ये शिक्षक नियुक्त हुए थे तो इनकी सैलरी 15 सौ रुपये थी। अब इनका वेतन 25 हजार रुपये तक पहुंच गया है। राज्य सरकार हर साल इनकी सैलरी में बढ़ोतरी करेगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि जब योग्यता समान है तो समायोजित शिक्षकों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है। बिहार सरकार ने कहा था कि राज्य सरकार आर्थिक रुप से सक्षम नहीं है कि इन शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन दे सके।
केंद्र सरकार ने भी अपने हलफनामे में बिहार सरकार के रुख का समर्थन किया। केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा सकता है, क्योंकि ये समान कार्य के लिए समान वेतन की कैटेगरी में नहीं आते हैं। केंद्र सरकार ने कहा कि इन नियोजित शिक्षकों को समान कार्य के लिए समान वेतन देने पर केंद्र सरकार पर करीब 40 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार आएगा।