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अश्व पर सवार होकर आएंगी मां शक्ति स्वरूपा - ज्योतिषाचार्य चंदन तिवारी
By Deshwani | Publish Date: 6/4/2019 4:44:50 PM
अश्व पर सवार होकर आएंगी मां शक्ति स्वरूपा - ज्योतिषाचार्य चंदन तिवारी

ज्योतिषाचार्य चंदन तिवारी

*इस बार दो शनिवार नवरात्र को बना रहे विशेष फलदायी, 8दिन का होगा व्रत*
 
मोतिहारी। देशवाणी न्यूज नेटवर्क।
 
आयुषमान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक वेदों के जानकार व युवा ज्योतिषाचार्य आचार्य चन्दन तिवारी ( शास्त्री ) से देशवाणी के प्रतिनिधि से नवरात्र पर बातचीत हुई। इनका मोतिहारी के अरेराज में आयुष्मान ज्योतिष सेवा केन्द्र नामक संस्थान स्थापित है। उन्होंने बुधवार को परामर्श के दौरान कहा कि शनिवार को 6 अप्रैल को दिन भर वैधृति योग है।
वासंतिक नवरात्र 6 अप्रैल से शुरू होने जा रहा है, जो 8 दिन का होगा, इस बार माता का आगमन अश्व पर और गमन भैंसे पर होगा।
 
 

वहीं शनिवार से शुरू शनिवार को समाप्त होने के चलते, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार का नवरात्र विशेष फलदायी माना जा रहा है,

चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्र का बड़ा महत्व है, इसमें 9 दिनों तक माँ शक्ति भगवती जगदम्बा का व्रत और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से आध्यत्मिक और भौतिक दोषो पर विजय प्राप्त होता हैं,।
इस नवरात्र को वासंतिक नवरात्र कहा जाता हैं, 8 दिन का नवरात्र होने के चलते शक्ति की उपासना के लिए यह बेहद शुभ है,।
मान्यता के अनुसार शनिवार को दुर्गा पूजा का लाख नहीं करोड़ गुना फल मिलता है,।
ग्रह स्थिति के अनुसार में स्वगृही गुरु उच्च स्थान का राहु आदि योग से नवरात्र अत्यंत शुभ माना जा रहा है, अश्व पर आगमन से राज भंग और भैसे पर गमन से रोग शोक की आशांका बनी रहती हैं,।
वैधृति योग में कलश स्थापन आदि का निषेध है,।
ऐसे में दिन में 11 बज कर 35 मिनट से दोपहर 12 बज कर 24 मिनट तक अभिजित मुहूर्त में कलश स्थापन किया जा सकता हैं, चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को रामनवमी होती हैं, मध्यान्हन में भगवान राम का दिव्य अवतरण हुआ था इसलिए रामनवमी व्रत किया जाता हैं,।
इस वर्ष अष्ठमी शनिवार 13 अप्रैल को दिन में 8 बज कर 16 मिनट तक हैं, उसके बाद नवमी तिथि लग रही हैं जो मध्यान काल में है और दूसरे दिन रविवार को नवमी प्रातः काल 6 बजे तक हैं,।
इस दौरान पांच बार सर्वार्थसिद्धि, दो बार रवि और एक बार रवि पुष्य नक्षत्र का संयोग बन रहा है। यह संयोग साधना-सिद्धि के साथ सुख-समृद्धि दायक माना जाता है।
इस दौरान देवी की आराधना का विशेष फलदायक रहेगी।  इस बार नवरात्रि के दौरान पांच बार सर्वार्थसिद्धि, दो बार रवि और एक रवि पुष्य नक्षत्र योग बन रहा है। ऐसे योगों में देवी की साधना का विशेष फल प्राप्त होता है।
 6 अप्रैल, शनिवार को चैत्र नवरात्रि शुरू होगी, अगले दिन रविवार, 7  अप्रैल को दुतिया तिथि पर सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा, जबकि 8 अप्रैल, सोमवार को तृतीया तिथि रवियोग बन रहा है। वहीं, 9 व 10 अप्रैल (मंगलवार-बुधवार) को चतुर्थी-पंचमी तिथियां सर्वार्थसिद्धि योग लेकर आ रही हैं, जबकि 11 अप्रैल, गुरुवार को षष्ठी तिथि पर रवियोग तथा 12 अप्रैल, शुक्रवार को सप्तमी तिथि पर सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा।
13 अप्रैल, शनिवार को महाअष्टमी रहेगी, जो बिना योगों के ही देवी मां की आराधना के लिए सर्वश्रेष्ठ तिथि है।  रवि पुष्य नक्षत्र और सर्वार्थसिद्धि योग साथ बनेंगे।
साधकोंकी दृष्टी से इस पर्व काल का बहुत
महत्त्व  है। नवरात्री में भगवती कि साधना करके उनकी कृपा प्राप्त कि जा सकती है। नवरात्री में शक्ति साधना का ही महत्त्व
है। और नवरात्री का मतलब ही रात्रिकालीन साधना से है।
चैत्र नवरात्रि से ही हिन्दू नववर्ष (शालिवाहन शक ) का आरम्भ माना
जाता है। इस काल में ही सृष्टी का आरम्भ माना जाता है। जब सृष्टी कि रचना करने का समय आया तो ब्रम्हा जी को
कुछ सूझ नहीं रहा था। तब भगवान विष्णु और महादेव की सूचना के अनुसार  उन्होंने भगवती त्रिपुरसुंदरी कि साधना की। भगवती त्रिपुरसुंदरी ने भुवनेश्वरी के रूप में उन्हें दर्शन दिए। और भगवती भुवनेश्वरी ने तीनो भुवनो का निर्माण ब्रम्हाजी के माध्यम से किया इसीलिए वे भुवनेश्वरी कहलायी। वे ही महामाया है ..
इस नवरात्रि में भुवनेश्वरी तत्व प्रधान तत्व माना जाता है। भगवान श्रीराम ने भी जो स्वयं भुवनेश्वरी के साधक थे
इसी नवरात्री काल को राज्याभिषेक (लंका ले लौटने के बाद )के लिए सर्वश्रेष्ठ समय  माना था।
वसंत ऋतु का आगमन भी इसी काल में होता है। भुवनेश्वरी सूर्य मंडल कि अधिष्ठात्री है। सूर्य भी इस नवरात्री से और गरम होने लगता है।
वर्ष में चार नवरात्रियाँ होती है। चैत्र नवरात्री , आश्विन नवरात्रि जो हम सब मनाते है। दो नवरात्री गुप्त नवरात्री कहलाती है। एक माघ महीने में और दूसरी आषाढ़ महीने में होती है। इस 36 दिनों में भगवती तत्व ब्रह्माण्ड के सबसे करीब होता है। और मनुष्य अगर उचित साधनाओं के माध्यम से उस शक्ति तत्व को प्राप्त कर लेता है तो वह अपनी भौतिक एवं अध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त कर सकता है।
नवरात्री से बढकर और कोई पर्व काल नहीं जो शक्ति तत्व कि कृपा प्राप्त करने में सहायक हो।इसीलिए साधकों को नवरात्री में साधना करके इस पर्व काल का लाभ उठाना चाहिए। फालतू चीजों में समय बर्बाद करके पर्व काल को गवाना
हीं चाहिए। हम लोग समय को पहचान नहीं सकते। हम तो बस वर्त्तमान में जीते है। आज अगर सब कुछ अच्छा चल रहा है तो हम यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि कल कुछ प्रतिकूल समय भी आ सकता है और प्रतिकूलता कभी भी किसी भी रूप में आ सकती है। जरुरी नहीं कि वह सिर्फ आर्थिक संकट हो जैसा कि हम अक्सर सोचते है। पारिवारिक समस्या ,रोग,शत्रु बाधा ,मानसिक तनाव , आदि कई सारे माध्यम है जिनसे प्रतिकूलता का अनुभव किया जा सकता है। इसलिए किसी भी भ्रम में ना रहके कमसे कम नवरात्री और बाकी पर्व काल में तो आध्यात्मिक साधना करके अपने आपको आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कवचित करना चाहिए और अपनी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहिए।
इस नवरात्रि में या तो भुवनेश्वरी साधना  करनी चाहिए या नवार्ण मंत्र " ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे " कि यथाशक्ति साधना करनी चाहिए।
वैसे अभी के नवग्रह  के अनुसार साधक गण के लिये  महाकाली की साधना भी लाभदायक रहेगी ..
जो साधक माँ भुवनेश्वरी या महाकाली कि दीक्षा प्राप्त कर चुके है वे भुवनेश्वरी या महाकाली कि साधना कर सकते है।
जो लोग किसी गुरु से दीक्षित नहीं है वे भगवती दुर्गाजी के  नवार्ण मन्त्र का जाप कर सकते है।
1) भुवनेश्वरी का मंत्र  " ॐ ह्रीम नमः  " स्फटिक माला से करे
2) महाकाली मंत्र " ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ॐ " का जाप रुद्राक्ष माला या काली हकिक माला से करे ..
3) दुर्गाजी के नवार्ण मंत्र का जाप " ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे " का जाप रुद्राक्ष माला या काली हकीक माला से करे ..
*साधना कैसे करे*
 
सर्व प्रथम सामान्य पूजन सामग्री एकत्र करे। पंचोपचार पूजन जैसे गंध,अक्षत,पुष्प,धुप, दीप , नैवेद्य आदि कि व्यवस्था करे।
फिर सर्व प्रथम सदगुरु का स्मरण करे
फिर गणेश जी का स्मरण करे। फिर संकल्प करे।
संकल्प में अगर आप देश काल का उच्चारण करे तो ठीक, नहीं तो सिर्फ
अपना नाम और गोत्र का उच्चारण कर अपनी मनोकामना या
सिर्फ " भगवती प्रीत्यर्थं " ऐसा कहके जल छोड़े।
फिर भगवती का पंचोपचार या षोडश उपचार पूजन करे।
जो साधक आवरण पूजन जानते है वे कर सकते है। फिर अगर साधक चाहे तो अष्टोत्तर नामावली या सहस्त्र नामावली से पूजन करे और मन्त्र जाप रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला से करे। भगवती के जिस रुप की आप साधना कर रहे है उनके उचित स्तोत्रों का पाठ भी कर सकते है ..
नवरात्री के नौ दिनोमे घी या तेल का या दोनों का दिया जलाये। .इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है।
कमसे कम 5 माला या 11 माला जाप करे। इससे ज्यादा करे तो और अच्छा। लेकिन पहले दिन जीतनी माला करे उतनी रोज करे।
स्त्रियों को अगर पिरियड कि समस्या हो तो उतने दिन साधना ना करे
और फिर पिरियड ख़त्म होने के बाद साधना कर सकते है।
रात्रि कालीन साधना में रात्रि 9 से देर रात 3 -4 बजे तक का समय होता है।
अगर आप ज्यादा समय नहीं दे सकते तो
सबसे अच्छा समय  है रात 10 से 11.30 .. इस समय का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करे।
जो लोग रात्री में साधना नहीं कर सकते वे सुबह कर सकते है।
जिस साधना में बली कि आवशकता हो वहाँ पर नारियल या निम्बू बली दे।
मंत्र जाप के बाद या पहले जैसा उचित लगे स्तोत्र पाठ कर सकते है।
स्तोत्र पाठ में कवच, स्तोत्र, ह्रदय स्तोत्र , अष्टोत्तरशत नाम और सहस्त्र नाम
का महत्त्व है। और भी दूसरे स्तोत्र का पाठ कर सकते है।
नवार्ण मन्त्र की साधना में श्री दुर्गा सप्तशती में जो स्तोत्र दिए है जैसे कि
कवच, अर्गला, किलक, सिद्ध कुंजिका स्तोत्र , देवी अथर्वशीर्ष ,तांत्रोक्त देवी
सूक्तम , रात्रि सूक्तम , सप्तश्लोकी दुर्गा स्तोत्र,देवी अपराधक्षमापन स्तोत्र, दुर्गा
द्वात्रिंश नामावली आदि स्तोत्र का महत्त्व है। इन स्तोत्रो मे से उपलब्ध समय के अनुसार जो स्तोत्र पढ सकते है उनका पाठ करे .. कमसे कम कवच स्तोत्र का तो  पाठ  करे .. ।
जो साधक न्यास जानते है वे न्यास करे। जो लोग न्यास नहीं जानते
वे कवच पाठ करे या सीधे मन्त्र जाप करे।
जो लोग पुरे नौ दिन साधना नहीं कर सकते वे उन दिनोमे साधना करे जो
इन नौ दिनोमे ज्यादा से ज्यादा महत्व पूर्ण हो। जैसे कि इस नवरात्री में पहला दिन , फिर पंचमी , अष्टमी  और नवमी  के दिन कर सकते है। पंचमी और अष्टमी का महत्त्व ज्यादा है।
कुमारी पूजन ....
किसी भी नवरात्री में अगर सम्भव हो सके तो रोज कुमारी पूजन करे।
नहीं तो पंचमी, अष्टमी, या नवमी के दिन तो करे। अष्टमी पर करे तो ज्यादा अच्छा  .
किसी एक शुभ लक्षणी कन्या को जो 3 साल से 7 साल तक कि हो
उसे बुलाये और उसका पूजन ( चरण धोकर ) कर उसे गंध , पुष्प
अर्पण करे और उसकी मन पसंद मिठाई या भोजन उसे दे। जैसी
अपनी आर्थिक ताकत हो वैसे दक्षिणा या वस्त्र दे। कुमारी पूजन में
एक कन्या से लेकर 5 ,9 या 11 या उससे भी अधिक संख्या में कन्यायों को
आमंत्रित कर सकते है। कुमारी पूजन के बारे में अधिक विस्तार से ,
जो साधक हवन करना जानते है वे अपने मन्त्र जप कि संख्या का दशांश
हवन करे। कमसे कम 108 आहुतियां तो देनी चाहिए। अगर हवन नहीं कर सके तो दशांश जाप ज्यादा कर सकते है। साधना के अनुसार हवन सामग्री का उपयोग करे नहीं तो सामान्य हवन सामग्री का उपयोग करे।
 इस महायोगों के चलते इस बार चैत्र नवरात्रि में शास्त्रोक्त विधि से जो भी भक्त व्रत उपवास करेगा उसे भगवती जगदम्बा  माँ आदिशक्ति की कृपा प्राप्त होगी

 

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