पटना। राजद के बाहुबली नेता व माफिया डॉन शहाबुद्दीन और उसके तीन साथियों को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से मिली उम्र कैद की सजा बरकरार रखी है। चीफ जस्टिस रंजग गोगोई की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए शहाबुद्दीन की याचिका खारिज कर दी है। बता दें कि शहाबुद्दीन अभी दिल्ली के तिहाड़ जेल में सजा काट रहा है।
मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजग गोगोई की पीठ सख्त दिखी। सुनवाई के दौरान शहाबुद्दीन के बचाव में सीनियर वकीलों की टीम जब कुछ कहने लगी तो बेंच ने साफ कहा कि इन अपीलों में कुछ भी नहीं रखा है और हम हाईकोर्ट के फैसले में दखल नहीं देंगे। कोर्ट ने बिहार सरकार के वकील केशव मोहन से भी कुछ नहीं पूछा और मामले का निपटारा कर दिया।
घटना साल 2004 की है। आरोप है कि शहाबुद्दीन ने सीवान के ही व्यवसायी चंदा बाबू के दो बेटों गिरीश कुमार और सतीश कुमार का अपहरण करवाया। जिसके बाद शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर ले जाकर उसकी ही कोठी में तेजाब से नहलाया गया। जिससे उनकी तड़प-तड़प कर मौत हो गई। इसी मामले के चश्मदीद गवाह और चंदा बाबू के तीसरे बेटे राजीव रौशन की भी 16 जून 2014 को सीवान के डीएवी मोड़ पर गोली मारकर हत्या कर दी गई। बताया जाता है कि दोनों ने शहाबुद्दीन के गुंडों को रंगदारी देने से मना किया था। जिसका उन्हें खमियाजा भुगतना पड़ा।
व्यवसायी की पत्नी कलावती देवी ने इस मामले में मुफस्सिल थाने में मामला दर्ज कराया। जिसके बाद शहाबुद्दीन, असलम, आरिफ व राज कुमार साह को अप्राथमिकी अभियुक्त बनाया था। इस मामले में पहले लोकल कोर्ट, फिर हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। ज्ञात हो कि 9 दिसंबर, 2015 को स्पेशल कोर्ट ने शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। पिछले साल 30 अगस्त को पटना हाई कोर्ट ने भी उस फैसले को बरकरार रखा।
बता दें कि राजद पार्टी ने शहाबुद्दीन को 1990 में विधान सभा का टिकट दिया था। जिसमें उनकी जीत हुई। उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता। इस दौरान कद और बढ़ गया। ताकत को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और शहाबुद्दीन फिर विजय रहे। 1997 में राजद के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत बहुत और बढ़ गई।