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बेतिया
उदयपुर वनक्षेत्र के अस्तित्व पर संकट के बादल, जल-जीवन-हरियाली, लौटेगी उदयपुर वनक्षेत्र की खुशहाली
By Deshwani | Publish Date: 30/3/2020 7:08:24 AM
उदयपुर वनक्षेत्र के अस्तित्व पर संकट के बादल, जल-जीवन-हरियाली,  लौटेगी उदयपुर वनक्षेत्र की खुशहाली

बेतिया।अवधेश कुमार शर्मा। पश्चिम चम्पारण जिला अन्तर्गत वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना से अलग बैरिया प्रखण्ड के बगही बघम्बरपुर स्थित उदयपुर वनक्षेत्र कुछ दिनों बाद इतिहास बनकर रह जायेगा। इस प्राकृतिक संसाधन युक्त जंगल का सिर्फ़ नाम रह जाएगा। इस पर मुख्यमंत्री या मंत्री अथवा किसी पदाधिकारी का कोई ध्यान नही है। 

क्या मुख्यमंत्री के जल जीवन हरियाली से उदयपुर वनक्षेत्र का कोई वास्ता नहीं है। यदि है तो इस जंगल के प्रति मौन क्यों है? उदयपुर वनक्षेत्र से अवैध वन पातन प्रारम्भ से चला आ रहा है, यदि इसपर रोक नहीं लगाई गई तो उदयपुर जंगल इतिहास बनकर रह जाएगा। इसलिए मुख्यमंत्री व प्रशासनिक अमला जागो और उदयपुर वनक्षेत्र को बचा लो। अभी कुछ ज्यादा नही बिगड़ा है, अभी से इस जंगल पर ध्यान नही देंगे तो अस्तित्व विहीन हो जाएगा यह क्षेत्र।

यदि शासन व प्रशासन का ध्यान उदयपुर जंगल के प्राकृतिक सौंदर्य व नैसर्गिक संसाधनों की ओर नही जाता है तो आगामी कुछ वर्ष में जंगल का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। जिस प्रकार उदयपुर वनक्षेत्र से पेड़ की कटाई की जा रही है। उससे वन माफिया व वन विभाग की संलिप्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है। वैसे वन माफियाओं से प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों व पुलिस सेवा के अधिकारियों की मिलीभगत की चर्चा क्षेत्र की अधिकांश जनता की ज़ुबान पर रहती है।

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के गार्डो की मिली- भगत से जंगल की लकड़ी की तस्करी पर कोई अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं, वन विभाग के अधिकारी से जब फोन पर विगत दिनों पूछा गया तो जवाब मिला कि वे फोन पर कुछ नहीं बतायेंगे। यदि वन से लकड़ियों की तस्करी नहीं रुकी तो संभवतः सिर्फ कागजी वनक्षेत्र बनकर रह जाएगा। मुख्यमंत्री के अधिकारियों को पेड़-पौधे लगाने की बात करते हैं, दूसरी ओर वन तस्करों पर लगाम नहीं। वृक्ष लगाओ-जीवन बचाओ का नारा दिया जा रहा है।

अलबत्ता धरातल पर कुछ नही है, जो पेड़ पौधे हैं उनका बचाव हो का नारा नही दिया जा रहा है। रामलखन सिंह यादव कॉलेज के सामने दर्ज़नो वृक्ष काटे गए खबरें अखबारों में छपी, पत्रकार को संवेदक दुश्मन समझने लगे। अलबत्ता सभी अधिकारियों ने टोपी मिला मामला रफ़ा दफ़ा कर लिया। ऐसा नहीं हो कि उदयपुर जंगल की खबर पर कुछ ऐसा ही हो रहा है। अगर उदयपुर वन क्षेत्र के कर्मियों का सामूहिक ट्रांसफर किया जाय तो कुछ दिनों में हद तक जंगल सुरक्षित हो जाएगा ।

अब देखना यह है कि सरकार उदयपुर जंगल के कौन सा रूख़ अख्तियार करती है। जल जीवन हरियाली वाले मुख्यमंत्री उदयपुर वनक्षेत्र के लिए मौन, तो फिर उदयपुर को बचाएगा कौन! अब देखना यह है कि सरकार उदयपुर जंगल व जंगली जानवरों, जलचरों, कछुआ व साँप तक कब तक सुरक्षित कर पाएगी।

अब यक्षप्रश्न यह कि क्या उदयपुर जंगल को यूँ ही उसके हाल पर छोड़ दिया जाएगा। सारा दारोमदार अब जिला पदाधिकारी कुन्दन कुमार के कंधों पर है। देखना यह है कि नये कार्यो, प्रगतिशील निर्णय लेने वाले पदाधिकारी, इस दिशा में कौन सा सकारात्मक पहल करते हैं।

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