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बेतिया
बिहार में शराबबंदी का सच: राज्य में सरकार के कड़े रूख के बावजूद शराब का कारोबार परवान पर
By Deshwani | Publish Date: 11/11/2019 11:35:54 AM
बिहार में शराबबंदी का सच: राज्य में सरकार के कड़े रूख के बावजूद शराब का कारोबार परवान पर

बेतिया।अवधेश कुमार शर्मा। बिहार सरकार ने राज्य में पूर्ण शराबबंदी कर देश में एक मिशाल कायम किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देश भर से शराब बंदी के लिए बधाईयाँ दी गई। उन्होंने इसके लिए कड़े सजा का प्रावधान किया, जिससे शराबबंदी सफल हो सके। शराबबंदी की मुख्य जिम्मेदारी बिहार पुलिस को सौंपी गई। मद्य निषेध के सख्ती से अनुपालन कराने व दोषियों को सजा दिलाने के लिए, नए अधिनियम बनाये गए। पुलिस को इतनी बड़ी जिम्मेदारी और फिर जोरदार कमाई का मौका दिया गया। 

 
हालांकि सरकार के कड़े रूख के कारण ऐसे पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही होती रही है। परन्तु यह कार्रवाई सिर्फ व महज़ एक दिखावा बन कर रह गया, क्योंकि बिना पुलिस के मिलीभगत के शराब की आपूर्ति सम्भव नहीं हो सकता। इस पर स्वयं मुख्यमंत्री ने भी कहा कि शराब की होम डिलिवरी की बात पूर्णतः मिथ्या है। परन्तु मुख्यमंत्री की बातें पूर्णतः हास्यास्पद लगती है। सूबा का बच्चा बच्चा जानता है कि सिर्फ पाॅकेट में रुपये होने चाहिए शराब पाॅकेट से निकल कर पाॅकेट में आ जाती है। 
 
कुछ ऐसी ही स्थिति पश्चिम चम्पारण जिला के बेतिया, नरकटियागंज और बगहा शहर की है। वैसे इस जिला में छोटी- बड़ी कार्रवाई शराब, गुटखा और छोटे हाॅकरों के विरूद्ध होती रही है। उनकी गिरफ्तारी भी दिखाई जाती रही है, परन्तु जो मुख्य संरक्षक व कारोबारी हैं, उनसे जिला पुलिस की पूरी बनी हुई है। जिसके कारण रात में उतरने वाले शराब व गुटखा का शाम से लेकर रात तक दर्जनों हाॅकरों, सप्लायर पाॅकेट से पाॅकेट डिलेवरी करते रहते है। शराबबंदी ने बारों को जरूर बंद कर दिया है, परन्तु अच्छे अच्छे घरों और प्रतिष्ठानों में शराब पीने और पिलाने का दौर शाम होते शुरू हो जाता है। 
 
इन सब को देख, सवाल यह उठता है कि सरकार होम डिलिवरी की बात मिथ्या बताती हैं तो फिर ऐसे शराब की बोतल नामी-गिरामी शराबियों तक कैसे पहुँचती और कौन पहुंचाता है? अमूमन जिला मुख्यालय बेतिया, अनुमण्डल मुख्यालय नरकटियागंज व बगहा में शाम होते ही सभी चौकों पर दूर दराज के हाॅकरों के माध्यम से होम डिलेवरी का काम शुरू हो जाता है। बाजार की मंदी का एहसास सबको हो गया और परन्तु शराबबंदी के बाद शराब को मुंहमांगा दाम देकर लेने वालों के चेहरे पर मंदी नहीं दिखाई देती है।  
 
सरकार व प्रशासन इस ख़बर को भले नकार दे, अलबत्ता जब नगर परिषद की नालियों को आम और खास देखना व ढूंढ़ना शुरू करते हैं, तो नालियों में शराब की खाली बोतल उपर्युक्त ख़बर की सत्यता को प्रमाणित करती है। यदि सूबा के मुखिया इन खबरों से इत्तेफाक नहीं रखते तो हमारे सूत्र कह सकते हैं कि पड़ोसी राज्यों से शराब पीने वाले शराब की खाली बोतलों को बेतिया, नरकटियागंज और बगहा की नालियों में फ़ेंक देते हैं। जिससे नीतीश कुमार के सुशासन में पूर्ण शराबबंदी को झूठलाया जा सके। जी नहीं! 
 
ऐसा नहीं है बल्कि हमारी पुलिस की नाकामी और शराब माफियाओं कामयाबी की वज़ह से पूर्ण शराबबंदी के बावजूद शराब का कारोबार परवान पर है। बिहार में शराबबन्दी को ऐसे लोगों का परोक्ष संरक्षण प्राप्त है जो दिन में कुछ, रात में कुछ और होते हैं। जब सारा शहर नींद की आगोश में होता है तो शराब व गुटखा की खेप सन्नाटों में उतरती है। जिन्हें छोटी गाड़ियों से अलग-अलग जगहों को भेज दी जाती है। जिससे संध्या होते ही आसानी से पाॅकेट डिलेवरी दी जा सके। कुछ धंधेबाज तो जेल जाने के बाद भी पुनः उसी रोजगार में लगे हुए हैं। क्योंकि जो खर्च लगा है वो किसी अन्य रोजगार से नहीं निकाला जा सकता है। 
 
वैसे में शराबबंदी पर पीठ थपथपाना कितना असरदार है, यह समझना स्वयं शर्मिंदगी भरा है। ऐसा तो नहीं कि शराबबंदी कर शराब सरकार कालाबाजारी और कालाधन का रास्ता खुला रखना चाहती है? अमीर खूब अमीर होता जा रहा है, गरीब खूब गरीबी में फंसता हुआ कराहता जा रहा है। अलबत्ता सफलतापूर्वक शराबबंदी नही होने से कुछ लोगों को जमीन से आसमान पहुंचाने का भरपूर प्रयास होता आ रहा है। विगत दिनों शराब माफियाओं की गिरफ्तारी हुई, बड़ी खेप बरामद हुई। 
 
लौरिया में सीमा शुल्क ने दो ट्रक गुटखा पकड़ा, कहाँ गया किसी को पता नहीं चला। पूर्ण शराब व गुटखा बन्दी के बावजूद उनकी उपलब्धता यह बताने को पर्याप्त है कि सरकार की कथनी व करनी में फ़र्क़ है। विगत दिनों डीजीपी का पश्चिम चम्पारण दौरा हुआ, उन्होंने कहा ऑल इज वेल, यह बताने को काफ़ी है, "तुम ना मानो मगर हक़ीक़त है, गुटखा व शराब बड़े बड़ो व कुछ गरीबों की ज़रूरत है....।
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