अखिल भारतीय किसान महासभा ने आरसीईपी समझौते का किया विरोध, कहा- दूध उत्पादक हो जाएंगे बर्बाद
बेतिया। पश्चिम चम्पारण जिला मुख्यालय बेतिया में रीजनल कंप्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में भारत के शामिल होने के विरोध में सोमवार को बेतिया रेलवे स्टेशन से कलेक्ट्रेट के समक्ष तक अखिल भारतीय किसान महासभा के बैनर तले सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करते हुए नई व्यापार संधि के प्रति की दहन किया। किसान महासभा के नेताओ ने कहा कि मोदी सरकार नई व्यापार संधि समझौता के जरिये देश के करोड़ों दूध उत्पादक किसानों को बर्बाद करने पर तुली है, जिसके विरोध में आज अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अह्वान पर अखिल भारतीय किसान महासभा ने संधि के प्रति दहन किया।
सभा को संबोधित करते हुए किसान महासभा के जिला संयोजक सुनील कुमार राव ने कहा कि भारत डेयरी उत्पादन में काफी बेहतर स्थिति में है। ऐसे में यदि यह समझौता होता है और विदेशी उत्पाद भारत में आते हैं तो इससे देश के डेयरी उद्योग को भारी नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि समझौते के तहत सरकार आयात कर को कम करेगी ऐसी सूरत में बाहर से सस्ता मिल्क पाउडर देश के बाजार में आ जाएगा। यह हमारे देश के उन किसानों और लोगों के लिए सही नहीं होगा जो दूध को एक व्यवसाय के रूप में इस्तेमाल करते हैं। भारत के इन्हीं लोगों की वजह से आज हम दुग्ध और इससे निर्मित उत्पाद में आत्मनिर्भर हुए हैं। भारत में इससे होने वाली कमाई धान, गेंहू और गन्ना से होने वाली कमाई से अधिक है। किसान नेता धर्मनाथ कुशवाहा ने कहा कि इस समझौते से एक दूसरे देशों में उत्पादों की पहुंच आसान हो जाएगी और व्यापार करने में रास्ता आसान हो जाएगा। इस समझौते से सदस्य देशों को प्रोडेक्ट बेचने के लिए एक बड़ा बाजार मिल जाएगा। इसके तहत भारत पर आयात कर में भी कटौती का दबाव बढ़ेगा।
सुनील कुमार राव ने कहा कि पहले से ही चीन के सामानों का भारत के बाजार पर कब्जा है। यह डर तब और बढ़ जाता है, जबकि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 64 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। ऐसे में यह समझौता हो गया तो यह व्यापार घाटा और बढ़ सकता है। इस समझौते के बाद इसके सदस्य देशों के बीच मुक्त व्यापार हो जाएगा। वहीं पहले ही भारत इस तरह के समझौतों का भरपूर लाभ नहीं ले पाया है। लिहाजा, इस समझौते के बाद आसियान देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की आशंका है। किसान नेता योगेन्द्र यादव ने कहा कि स्टील, कृषि, डेयरी, टेक्सटाइल समेत अन्य सेक्टर भी इस समझौते को लेकर आशंकित हैं। दुनिया में भारत दुग्ध उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है। वहीं डेयरी प्रोडेक्ट की बात करें तो अस्सी के दशक में हम वैश्विक बाजार में कुछ पीछे थे, लेकिन बीते दो दशकों में हमने न केवल इस क्षेत्र में भी खुद को आत्मनिर्भर किया है बल्कि वैश्विक बाजार में एक अच्छी साख भी कायम की है।
उन्होंने कहा कि एक दूसरी बड़ी चिंता चीन की है, जो इस व्यापार समझौते का प्रमुख सदस्य है। जो बिना किसी मुक्त व्यापार समझौते के ही चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2017-18 में 54 अरब डॉलर पहुंच चुका था जो 10 वर्ष पहले केवल 17 बिलियन डॉलर था। भारत के बाजार पहले से ही चीनी उत्पादों से भरे पड़े हैं। इसका प्रभाव विशेष रूप से खिलौना उद्योग, ताला उद्योग, कपड़ा मशीनरी क्षेत्र, साइकिल निर्माण, डीजल इंजन पंपसेट तथा अन्य उद्योगों के ऊपर साफ देखा जा सका है। 2018 में एक अध्ययन के मुताबिक पता चला है कि भारत के बाजार चीन से आयातित खिलौनों से भरे हुए हैं। इससे भारतीय खिलौना निर्माता पूरी तरह से तबाह हो गए हैं। इसी प्रकार टैक्सटाइल मशीनरी मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ने चीन से आयात होने वाले सस्ती कपड़ा मशीनों का विरोध किया क्योंकि वे 30 से 50 प्रतिशत तक सस्ते थे। भारत की साइकिल उद्योग भी चीन के आयात से गंभीर रूप से प्रभावित है।
इनके अलावा फुलदेव कुशवाहा, मुजमील मियां, मुखतार मियां, जोखू चौधरी, सुरेन्द्र चौधरी, जवाहर प्रसाद, रीखी साहब, कृष्णा मुखिया आदि किसान नेताओं ने सभा को संबोधित करते हुए आरसीईपी समझौता में भारत सरकार को भाग नहीं लेने और कृषि और डेयरी को समझौता से बाहर रखने की अपील करते हुए चेतावनी दिया कि सरकार हमारी मांग नहीं मानती है तो किसान महासभा बड़ा जनआंदोलन खड़ा करेगा।