नरकटियागंज की तबस्सुम ने रूढ़ीवादी समाज को चुनौती देते हुए फुटबॉल को बनाया करियर, लड़कियों के लिए बनी नज़ीर
बेतिया। वर्तमान दौर में लड़कियों को जींस टॉप, जीस कुर्ती, क्रिकेट, फुटबॉल और अन्य खेलों में प्रतिस्पर्धा करते देखते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होता है। अलबत्ता कोई 27-28 वर्ष पूर्व कोई आसान बात नहीं थी कि कोई लड़की जींस वाले कपडे पहने, हाफपेंट पहन कर फूटबॉल खेले, ऐसे में परिवार का सपोर्ट भी मिल जाए यह तो और भी अनोखी बात कही जाएगी।
पश्चिम चंपारण जिला क्षेत्र के नरकटियागंज अनुमण्डल के बिनवलिया पंचायत (नरकटियागंज प्रखण्ड) के महुअवा गांव के शेख कालिम की पुत्री वाजदा तबस्सुम ने समाज की रूढ़ीवाद को चुनौती देते हुए फुटबॉल को अपना करियर चुना और 1992 में पुरुषों के अधिपत्य वाले फुटबॉल के मैदान में अकेले उतर गई। उस वक्त उसे पिता शेख कालीम, भाई म. असलम म. अयूब अख्तर का पूरा सहयोग मिला।
मुस्लिम समाज के मुल्लों ने कालीम को काफी बुरा-भला कहा, वाजदा को लेकर उसके परिवार पर बंदिश की बात भी मुस्लिम समाज में उठने लगी। तमाम परेशानियों को झेलते हुए वाजदा के परिजनों ने उस वक्त उसे प्रोत्साहित किया और उसे आगे बढ़ने में पूरा सहयोग किया। समाज के फ़तवा और विरोध के बावजूद वाजदा ने अपने फुटबॉल कला से बुलंदी को छुआ और समाज के अन्य लडकियों के लिए नज़ीर बन गई।
रुढि़वादी समाज और बेटियों को घर से निकलने पर पाबंदी जैसे माहौल में जब शहर से 4 किलोमीटर दूर महुअवा गांव की वाजदा तबस्सुम ने फुटबॉल के मैदान में कदम रखा तो आम लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गई। खेल मैदान के आसपास के चौक चौराहों से इस छात्रा खिलाड़ी के प्रदर्शन को देखने के लिए लोगों की भीड़ लगने लगी। उसके गांव के लोगों को जानकारी मिली कि तबस्सुम फुटबॉल खेल रही है तो अजूबा हो गया। उसकी प्रतिभा पर बंदिश लगाने को पंचायती भी हुई। तबस्सुम के फुटबॉल खेलने से रोकने के लिए दबाव बनाया जाने लगा। अलबता वाजदा के पिता शेख कालीम भाई अयूब अख्तर और असलम ने बहन का स्नेह देते हुए पूरा सहयोग किया।
पंचायत में शेख कालीम व उनके परिवार के लोगों ने तबस्सुम का साथ नहीं छोड़ने के अपने फैसले से सबको आगाह कर दिया और परिणाम स्वरुप 1994 में पहली बार जिला स्तर के फुटबॉल में प्रतियोगिता में उसका चयन हुआ, क्या कामयाबी की सीढियाँ चढ़ती हुई उसने फिर मुड़कर नहीं देखा और विरोध करने वाले भी उसकी प्रतिभा के कायल हो गए।
उसके प्रगति में प्रशिक्षक सुनील वर्मा का पूर्ण सहयोग वाज़दा तबस्सुम को मिला। उसकी कामयाबी और अभ्यास को देख कई लड़कियों के मन में फुटबॉल के प्रति आकर्षण बढ़ा और अन्य छोटी छोटी बेटियों ने फुटबॉल को अपना कैरियर बनाया जिसमे अंशा, ज्योति, सोनी, दिव्या, ज्योति, रजनी, शशि, लवली, पिकी, आशु,पल्लवी, ममता, नीतू, संगीता ने बुलंदी को छुआ। वाजदा का जिक्र इस लिए आवश्यक है कि जिन विपरीत परिस्थितियों में उसने अपनी मेहनत की बदौलत वाजदा ऊंचाइयों को छुआ वह काबिल ए तारीफ़ है।
वर्ष 1999 में वह बांग्लादेश में आयोजित फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद तो फुटबॉल के प्रति लड़कियों का मार्ग प्रशस्त हो गया। अनुकरण करते हुए कई लड़कियों ने फुटबॉल के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई। अंशा और सोनी समेत अन्य कई बेटियों ने भी वाजदा की राह को अपनाया और फुटबॉल की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में चीन, श्रीलंका जैसे देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
फुटबॉल प्रशिक्षक सुनील वर्मा के वजह से अब चंपारण की बेटियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वर्तमान समय में नरकटियागंज में एक अदद फुटबॉल के मैदान की जरूरत है, जिस तरफ प्रशासनिक अधिकारी, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों, सांसद, विधायक और अन्य का कोई ध्यान नहीं है। मजबूरी में उच्च विद्यालय नरकटियागंज का खेल मैदान महिला फुटबॉल खिलाड़ियों और पुरुष खिलाडियों के अभ्यास से गुलज़ार रहता है, जिसमें प्रधान अध्यापक देवेन्द्र कुमार गुप्ता का पूरा सहयोग मिलता है।