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बिहार
भारत-नेपाल सीमा पर अवैध शराब के तस्कर पुलिस गिरफ्त से बाहर
By Deshwani | Publish Date: 6/4/2017 5:38:24 PM
भारत-नेपाल सीमा पर अवैध शराब के तस्कर पुलिस गिरफ्त से बाहर

 अररिया (भारत-नेपाल सीमा) । भारत-नेपाल सीमा का अररिया जिला अभी तस्करों और माफियाओं के गिरफ्त से निकल नहीं पाया था कि अब शराबबंदी ने भी राज्य में तस्करी का एक और रास्ता खोल दिया है। 

राज्य में शराबबंदी को सख्त कानून बनाकर नीतीश की सरकार अपनी पीठ भले ही थपथपा लें, मगर अररिया जिला के सीमावर्ती ग्रामीण इलाके के फुलकाहा, घूरना, बसमतिया जैसे थाना क्षेत्रों में पशु एवं चाइनीज सेबों की तस्करी का सबसे बड़ा अड्डा होने के बाद शराब की तस्करी में भी अब यह सबसे अग्रणी स्थान बनाने की ओर अग्रसर है। इसकी सबसे बड़ी वजह शायद यह भी हो सकता है कि भारत-नेपाल सीमा के जोगबनी बॉर्डर की तरह सुरक्षा के मद्देनजर यह रिहायसी और प्रबंध युक्त चेकपोस्ट नहीं है। जबकि यहां भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा एसएसबी को विशेष रूप से नियुक्त भी की गयी है, बावजूद इस पर नकेल कसने में इन इलाकों में पुलिसिया कानून की सबसे लचर व्यवस्था सबसे बड़ी बाधा प्रतीत होती नजर आ रही है। फुलकाहा थाना अन्तर्गत मानिकपुर, नबाबगंज और इसी फुलकाहा बॉर्डर के पार नेपाल से पशुओं के साथ-साथ चाइनीज सेबों के बाद अब नेपाली शराबों की भी तस्करी का धंधा इन दिनों अपने चरम पर है, मगर पकड़े गए तस्करों और बरामद किए गए सामानों की संख्या कम ही है। और पकड़े गए लोग वे होते हैं, जिनका पुलिस और सीमा सशस्त्र बल के साथ रुपयों के माध्यम से लाइन का समझौता नहीं हो पाता है | पर उनकी गिरफ्तारी और बरामदगी दिखा दी जाती है। 
संदर्भित मामले में माणिकपुर व बसमतिया के मो.हमीद, धानुक मंडल,सुरजानंद यादव, माहेश्वरी पासवान, डोमी पासवान, इब्राहिम अंसारी, नईम अंसारी, बटेश्वर यादव, शमशाद आलम आदि कई अन्य आवगन्तुकों के अनुसार इस इलाके में भारी मात्राओं में तस्करी का सामान इधर से उधर करने में स्थानीय प्रशासन की अहम भूमिका होती है। इस सन्दर्भ में दरभंगा प्रक्षेत्र के आई.जी उमाशंकर सुधांशु ने दूरभाष पर इस संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्र के प्रसंग में पटना डीजी का हवाला देते हुए बताया कि शराब बंदी को लेकर बार-बार उनके द्वारा सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को हिदायत भी दी जा चुकी है। उन्होंने अररिया जिले के एसपी सुधीर कुमार पोड़ीका को भी तलब करने की बात कही। हालांकि इस सीमावर्ती क्षेत्र के अतिसंवेदनशीलता को लेकर बार-बार मीडिया द्वारा भारत सरकार और बिहार सरकार के नुमाइन्दों को जागरूक तो किया जाता रहा है, मगर कोई सरकार इसे कब गंभीरता से लेती है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। 
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