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राज्यसभा का खेल निराला...क्या मात्र तीन लाख में टिकट बेच डाला....
By Deshwani | Publish Date: 29/5/2018 4:21:00 PM
राज्यसभा का खेल निराला...क्या मात्र तीन लाख में टिकट बेच डाला....

धर्मेंद्र कुमार

आज एक मित्र के सलाह पर खबर की तलाश में मैं चुनाव आयोग की वेबसाइट को खंगाल रहा था...कुछ इनपुट दी गई थी भाजपा के दो मूर्धन्य बिहारी नेताओं के बारे में...साथ में बिहार की राजनीति में हाल के दिनों में चले शब्दबाण भी सुनाये गये थे। लिहाजा उन्हीं शब्दबानों के आलोक में आयोग की वेबसाइट को देखना शुरू किया। अब आपकी रूचि खबर से ज्यादा उन शब्दबाणों पर होगी जिसने मुझे एलेक्शन कमीशन का वेवबसाइट खंगालने पर मजबूर कर दिया। इसके लिए बिहार की राजनीति को आज से ठीक एक साल पीछे मुड़कर देखना होगा। साल 2017 में मार्च महिना से लगातार जून तक सुशील मोदी लालू प्रसाद पर हमलावर रहे। उनके पास लालू पर हमला करने के लिए चारा घोटाला से अलग एक नया चारा था। नया चारा का प्रभाव और प्रकोप ऐसा निकला कि नीतीश कुमार लालू की दोस्ती को ठुकरा कर पुन: भाजपा की शरण में आ गये। उन दिनों सुशील मोदी लालू पर आरोप लगा रहे थे कि लालू ने पैसा लेकर कुछ लोगों को नौकरी दिया, कुछ नेताओं को लोकसभा-विधानसभा का टिकट दिया और किसी को तो मंत्री ही बना दिया। भ्रष्टाचार का नया आरोप सुशील मोदी लालू पर प्रमाण के साथ लगा रहे थे। लालू किसी भी आरोप का वाजिब जवाब नहीं दे पाए। इनके समर्थकों ने सुशील मोदी पर हाउ हाउ की तरह हल्ला जरूर किया लेकिन आरोपों के साथ अडिग सुशील के सामने कें कें करते हुए शांत हो गये। एक बार फिर बिहार में भाजपा और जद यू की सरकार बन गई नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने और सुशील मोदी उप-मुख्यमंत्री...लेकिन मेरे आलेख का असली हिस्सा अब शुरू होता है।

    

जरा याद कीजिए 2012 में बिहार की राजनीति को नीतीश अपने पार्टी के सबसे बड़े नेता और सुशील मोदी बिहार भाजपा के सबसे बड़े चाणक्य गठबंधन पर जब भी दोनों दल के छोटे नेता आदतन हुआ-हुआ करते तब इन दोनों का बयान का मतलब वही होता जो जंगल में शेर की गर्जना का ...इन दोनों के बयान के बाद दोनों पार्टी के बयान बहादूर कें कें करते हुए अपने पुराने लय धुन में गठबंधन धर्म सरीखे कुछ धार्मिक बातों को करते हुए चेहरा छुपाने लगते थे, लेकिन मेरे आलेख का मतलब यह भी नहीं है कि मैं आपको उस दौर के बिहार की राजनीति की तस्वीर से रुबरू कराउं। दरअसल मेरा मकसद 2012 के उस हलफनामा में दर्ज है जो सुशील मोदी जी ने बिहार विधानपरिषद की सदस्यता के दूसरे कार्यकाल हेतु (2012) चुनाव आयोग को सौंपा था। इस हलफनामे में मोदी जी ने यह बताया है कि उन्होंने अपने परिजनों के साथ ही बिहार से निकल केंद्र की राजनीति कर रहे माननीय रवि शंकर प्रसाद जी ( r.s Shankar) से तीन लाख बतौर कर्ज लिया है। कर्ज लेना और उसे चुका देना ईमान धर्म की बात है...हालांकि कुछ लोग कर्ज देना जैसे कर्म को गुनाह-ए-अजीम मानते हैं।



अब फिर बात राजनीति की, भाजपा की एक परिपाटी रही है कि किसी भी नेता को दो बार से अधिक राज्यसभा की सदस्यता नहीं दी जाती है। संभव है कि अटल-आडवाणी-जोशी जैसे नेताओं को इस रिवाज से दूर रखा गया हो, हालांकि इन जननेताओं को पार्टी से इस तरह का उपकार लेने की जरूरत शायद ही पड़ी हो, लेकिन रविशंकर प्रसाद जी का कद इन तीनों के छाया के भी बराबर नहीं है, लेकिन बिहार से रविशंकर प्रसाद को तीसरी बार भाजपा ने राज्य सभा में भेजना तय किया। इतना ही नहीं उसी साल इनको राज्यसभा के अंदर पार्टी का उपनेता भी बनाया गया। अब जरा रविशंकर प्रसाद का राजनीतिक कद और बिहार से तीसरी बार उन्हें राज्यसभा भेजे जाने के फैसले को सुशील कुमार मोदी के द्वारा अपने हलफनामा में दर्ज कर्ज के कॉलम से मिला कर देखें...रकम थोड़ी छोटी जरूर लगती है...लेकिन इस रकम का जिक्र हमने नहीं मोदी जी ने किया है। क्या इस संभावना से इंकार किया जा सकता है कि वास्तविक रकम इससे भी ज्यादा हो...या इतना रकम सुशील जी को मिला...बाकी के हिस्सेदारों की जानकारी अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है।


गौर करने वाली बात है कि रविशंकर प्रसाद ने अपने हलफनामा में किसी भी प्रकार का दान या कर्ज का जिक्र नहीं किया है। हम किसी पर कोई आरोप नहीं लगा रहे हैं। बस जो तथ्य दर्ज है उस आलोक में उस वक्त की राजनीतिक घटनाओं को एकबार फिर से याद करने की कोशिश की है। ...मेरे पास इस बात के प्रमाण नहीं हैं कि मोदी जी ने तीसरी बार रवि शंकर प्रसाद जी को राज्य सभा में भेजने के बदले क्या लिया और नहीं लिया, लेकिन इस बात से कैसे कोई इनकार कर सकता है कि 2012 में बिहार भाजपा में सुशील मोदी जी की ईच्छा के बगैर कोई चूं भी नहीं करता था...आज भी इनका दबदबा कुछ वैसा ही कायम है...

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