सबरीमाला मंदिर मामला: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी, मंदिर प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं है, कोई भी जा सकता है
नई दिल्ली। केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 उम्र वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। बुधवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है। मंदिर प्राइवेट संपत्ति नहीं बल्कि सावर्जनिक संपत्ति होते हैं, जहां कोई भी जा सकता है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि जब भगवान ने पुरुष और महिला में कोई भेद नहीं किया, उसी ने दोनों को बनाया है तो फिर धरती पर भेदभाव क्यों किया जाता है।
बीते शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया। पीठ फैसला करेगी कि क्या तय आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद-14, 15, 17 का उल्लंघन है अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार देता है, अनुच्छेद 15 धर्म, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव से बचाव और अनुच्छेद 17 के अंतर्गत छुआछूत और इसके प्रयास को समाप्त करने का प्रावधान है।
इस मामले पर बुधवार को सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में इस मामले की सुनवाई चल रही है। कोर्ट में जब इस मुद्दे पर बहस चल रही थी, उस समय जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि किसी भी सावर्जनिक संपत्ति में अगर पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी प्रवेश की इजाजत मिलनी चाहिए। एक बार जब मंदिर खुलता है तो उसमें कोई भी जा सकता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा सविंधान के अनुच्छेद 25 के तहत सब नागरिक किसी धर्म की प्रैक्टिस या प्रसार करने के लिए स्वतंत्र है। इसका मतलब ये है कि एक महिला होने के नाते आपका प्रार्थना करने का अधिकार किसी विधान के अधीन नहीं है, बल्कि संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि हर महिला भगवान की रचना है। तो फिर रोजगार और पूजा में भेदभाव क्यों।
उधर, केरल सरकार ने भी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया है। हालांकि इससे पहले केरल सरकार के रुख में बदलाव को देखकर कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि राज्य सरकार अपना रुख बदलती रहती है। गौरतलब है कि 2015 में केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन किया था लेकिन 2017 में उसने अपना रुख बदल दिया था। 12वीं सदी में बना सबरीमाला मंदिर पथानामथिट्टा जिले में स्थित है और यह भगवान अयप्पा को समर्पित है।