आजमगढ़, (हि.स.)। बसपा सुप्रीमो मायावती विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार आजमगढ़ में आ रही हैं। इस बार मौका है निकाय चुनाव का। वैसे बसपा बीजेपी और सपा की तरह आधिकारिक तौर पर मैदान में उतरेगी या नहीं, इस पर अभी संशय बरकरार है लेकिन प्रत्याशी मैदान में डटे हैं।
कार्यकर्ता महासम्मेलन में मायावती के पास न केवल संगठन के पेंच कसने का मौका होगा बल्कि मोदी, मुलायम, योगी और अखिलेश पर एक साथ हमला करने का मौका भी होगा। कारण कि रैली में उन्हीं तीन मंडलों के कार्यकर्ता भाग ले रहे हैं जिससे ये बड़े नेता परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इन क्षेत्रों में बसपा का सूपड़ा साफ हो गया था।
बतातें चलें कि पिछले दो दशक से आजमगढ़ में सपा और बसपा का वर्चश्व रहा था। आस पास के जिलों में भी बसपा काफी मजबूत मानी जाती रही लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव से बसपा का ग्राफ लगातार गिरा है। लोकसभा चुनाव में बसपा पूरे यूपी में साफ हो गयी थी। बीस साल में उसे पहली बार आजमगढ़ में बुरी तरह हार मिली थी। नहीं तो हर चुनाव में दो में से एक सीट उसके पास होती थी। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा आजमगढ़ में सिर्फ चार सीट जीत पाई। मऊ में उसे सिर्फ एक सीट मिली वह भी मुख्तार अंसारी की वजह से।
मायावती को पता है कि एक और चुनाव में हार उनकी पार्टी को विखेर सकती है। कारण कि उनके वोट बैंक पर आरएसएस, बीजेपी और कांग्रेस की सीधी नजर है। यहीं वजह है कि आजमगढ़ में कार्यकर्ता सम्मेलन के लिए मायावती ने आजमगढ़ के उन तीन जिलों को चुना जिससे परेक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से मुलायम, सिंह, अखिलेख यादव, मोदी और योगी आदित्यनाथ जुडे़ हुए है।
आजमगढ़ मुलायम सिह यादव का संसदीय क्षेत्र है, और वे हमेशा कहते रहे हैं कि आजमगढ़ उनकी धड़कन हैं लोकसभा चुनाव में मायावती को मुलायम और अखिलेश से यहां सीधी चुनैती मिलनी तय है। गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का गढ़ कहा जाता है। पहले वह सिर्फ गोरखपुर के सांसद थे लेकिन अब यूपी के सीएम होने के नाते गोरखपुर में उनका वर्चश्व बढ़ा है। वाराणसी पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है। इन्हीं तीन मंडलों के कार्यकर्ता यहां पहुंच रहे हैं।
ऐसे में यह तय है कि देश और प्रदेश के चार बड़े नेता पूर्व सीएम मायावती के निशाने पर होंगे। विपक्ष की नजर पूरी तरह मायावती की रैली पर है। क्योंकि दावा दो लाख से अधिक कार्यकर्ता पहुंचने का किया जा रहा है लेकिन मैदान की क्षमता और तैयारियों को देख इसपर सवाल अभी से उठ रहा है। अगर मायावती के कार्यक्रम में पिछली रैली से कम भीड़ होती है तो विपक्ष को उन्हें घेरने का मौका मिल जायेगा लेकिन अगर भीड़ जुटाने में सफल होती है तो विपक्ष क पेशानी पर बल पड़ना निश्चित है।