नई दिल्ली। भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में पीडीपी से समर्थन वापस लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है। भाजपा का आरोप है कि कश्मीर के मौजूदा हालातों को देखते हुए अब पीडीपी के साथ सरकार चलाना बहुत मुश्किल है। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन की आशंका बढ़ने लगी है। समर्थन वापसी के बाद अब जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखा जा रहा है।
इस बीच अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई है। गठबंधन टूटने के बाद शिवसेना ने कहा है कि यह राष्ट्र विरोधी गठबंधन था। वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) नेता सीताराम येचुरी ने इस गठबंधन को अनुचित ठहराया है। शिवसेना लीडर संजय राउत ने कहा, 'यह गठबंधन राष्ट्र विरोधी और अनुचित था। हमारे पार्टी अध्यक्ष ने कहा था कि यह गठबंधन काम नहीं करेगा। अगर वे इनके साथ गठबंधन जारी रखते, तो उन्हें 2019 लोकसभा चुनाव में जवाब देना होता। वहीं, बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि जो भी हुआ वो सही नहीं हुआ है।
राज्यसभा विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि जो भी हुआ वह अच्छा है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ राहत मिलेगी। उन्होंने (बीजेपी) कश्मीर को बर्बाद कर दिया और अब बाहर निकाला है, इन 3 वर्षों के दौरान अधिकतम संख्या में नागरिक और सेना के लोग मारे गए।
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि अगर जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू हो जाता है तो सीधे तौर पर न सही राजभवन से होते हुए सूबे की कमान भाजपा के हाथों में आ जाएगी। जबकि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेंगे कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा का दखल बढ़े।
भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस पीडीपी की मुखिया महबूबा मुफ्ती को समर्थन दे सकती है। कांग्रेस के पास इस वक्त 12 सीट हैं। अगर 5 निर्दलीय उम्मीदवारों को मिला लिया जाए तो पीडीपी बहुमत के आंकड़े 44 को छू सकती है। दूसरी ओर अगर महबूबा नेशनल कांफ्रेंस के साथ सीएम की कुर्सी को लेकर कोई डील कर लेती है तो भी सत्ता बची रहेगी। ऐसे में नेशनल कांफ्रेंस के लिए भी ये घाटे का सौदा नहीं रहेगा।
पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के लिए उत्तरी कश्मीर का इलाका सियासी नजरिए से खासा अहम है। अभी सरकार चलाने के लिए 3 साल का वक्त बाकी है। एक रास्ता ये भी है कि सूबे में राज्यपाल शासन लागू न करके चुनाव करा दिए जाएं।