ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री व्रत मनाया जाता है। पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य पाने के लिए शादीशुदा महिलाएं इस व्रत को रखती हैं। संतान की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को रखा जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का खास महत्व है। वट सावित्री व्रत में 'वट' और 'सावित्री' का विशेष महत्व है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार, वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए यज्ञ करते हुए प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। उन्होंने यह पूजा 18 वर्षों तक की। पूजा से खुश होकर सावित्रीदेवी प्रकट हुईं और उन्होंने राजा को वरदान दिया कि उनके यहां एक तेजस्वी कन्या जन्म लेगी। कन्या के जन्म के बाद उसका नाम सावित्री रखा गया।
सावित्री बड़ी होकर काफी रूपवान युवती बनी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा। सावित्री वर की तलाश में वन में घूमने लगी। उसी वन में साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे। उनसे उनका राज्य छीन लिया गया था, जिस वजह से वे वहां रहने को मजबूर थे। राजा द्युमत्सेन के साथ उनके पुत्र सत्यवान भी रहते थे। सत्यवान को देखने पर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।
सत्यवान अल्पायु थे। नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री उनकी बात नहीं मानी और सत्यवान से ही विवाह किया। सत्यवान को वेदों का ज्ञानी माना जाता था। सत्यवान ने सावित्री को भी वेदों की शिक्षा दी।
पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार जब यमराज सत्यवान की मृत्यु के बाद जब यमराज उनके प्राण ले जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी। यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने के लिए कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। यमराज ने उन्हें कामना पूरी की। इसके बाद भी वे यम के पीछे चलती रहीं। दूसरे वरदान में उन्हें अपने ससुर का छीना हुआ राज्यपाठ वापस मिल गया, फिर भी सावित्री अपने यम के पीछे चलती रहीं। आखिर में उन्होंने सौ पुत्रों का वरदान मांगा। जब यम ने उन्हें ये वरदान दिया तो सावित्री ने कहा कि वे पतिव्रता स्त्री है और बिना पति के मां नहीं बन सकती। यमराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने सत्यवान के प्राण वापस दे दिए।