नई दिल्ली, (हि.स.)। कांग्रेस कार्यसमिति ने आंतरिक लोकतंत्र के तकाजे को पूरा करते हुए आज पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के कार्य़क्रम की घोषणा की जिसके साथ ही उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नए पार्टी अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है।
आज दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिसमें पार्टी अध्यक्ष के चुनाव की तिथियां घोषित की गई। कांग्रेस कार्यसमिति कार्यक्रम के मुताबिक, चुनाव की अधिसूचना 1 दिसंबर को जारी होगी और नामांकन पत्र भरने की अंतिम तारीख 4 दिसंबर जबकि नामांकन पत्र वापस लेने की अंतिम तिथि 11 दिसंबर है। यदि एक से ज़्यादा वैध नामांकन दाखिल होते हैं और चुनाव की नौबत आती है, तो मतदान 16 दिसंबर को होगा जबकि मतगणना 19 दिसंबर को होगी। मुख्य बात ये है कि कांग्रेस अध्यक्ष की मतगणना से ही ठीक एक दिन पहले 18 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश और गुजरात चुनावों के परिणाम भी आएंगे।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना अब मात्र एक औपचारिकता है। चुनाव में उनका प्रत्याशी बनना प्राय: तय है और शायद ही कोई अन्य कोई उनके खिलाफ नामंकन पत्र दाखिल करे। राहुल की ताजपोशी 18 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों के परिणाम आने से पहले ही हो जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी आगामी 19 दिसंबर को देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष विधिवत घोषित करना और आंतरिक चुनाव सब औपचारिकता है। सोनिया गांधी अपने स्वास्थ्य और उम्र के चलते अब अध्यक्ष पद गांधी-नेहरू परिवार की विरासत राहुल के हाथ में सौंपना चाहती हैं। दुनिया के लोकतांत्रिक शासन प्रणाली वाले देशों में यह पहली बार होगा कि किसी पार्टी का अध्यक्ष पद एक ही परिवार की पांचवीं पीढ़ी तक पहुंचा है। इस परिवार के मोतीलाल नेहरू वर्ष 1919 में पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। बाद में उनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1929, 1930 , 1936, 1937, 1951, 1952, 1953 और 1954 में यह जिमेदारी निभाई थी। वर्ष 1959 में उनकी पुत्री इंदिरा गांधी पहली बार पार्टी अध्यक्ष बनी थीं। वर्ष 1960 से लेकर वर्ष 1978 तक यह पद गैर गांधी-नेहरू परिवार वाले व्यक्ति के पास रहा। उसके बाद वर्ष 1978 से 1991 तक पहले इंदिरा गांधी और फिर उनके पुत्र राजीव ने पार्टी की कमान संभाली। 1998 से पार्टी नेतृत्व सोनिया गांधी के पास रहा और अब वह राहुल के हाथ में आने वाला है।
यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि गांधी-नेहरू परिवार पक्ष-विपक्ष दोनों में देश की राजनीति इसी परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। साल 2014 के चुनाव में भारी पराजय के बावजूद कांग्रेस का वजूद बना रहा और सत्ता में वापसी की आशा बरकरार रही। सोनिया अभी राजनीति को अलविदा कहने वाली नहीं हैं। वह पार्टी की मार्गदर्शक बनी रहेंगी। उनकी हैसियत भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जैसी नहीं होगी बल्कि यदि जरूरत पड़ी तो वह फिर केंद्रीय भूमिका में आ जाएंगी लेकिन अब ये राहुल के लिए परीक्षा की घड़ी है।