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सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को झटका, कश्मीर पर 9 वोट भी नहीं जुटा सका, बंद कमरे में शुक्रवार को होगी अनौपचारिक बैठक
By Deshwani | Publish Date: 16/8/2019 11:31:35 AM
सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान को झटका, कश्मीर पर 9 वोट भी नहीं जुटा सका, बंद कमरे में शुक्रवार को होगी अनौपचारिक बैठक

न्यूयॉर्क। कश्मीर मुद्दा पाकिस्तान के लिए गले की फांस बन गया है। उसे पता नहीं चल रहा कि आगे करना क्या है। विश्व बिरादरी के सामने उसने अनुच्छेद 370 का मुद्दा काफी उठाया लेकिन उसकी एक भी दलील नहीं टिकी। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लगभग सभी देशों (चीन को छोड़कर) ने उसे बैरंग लौटा दिया। अब सिर्फ चीन बचा है जो उसकी फरियाद सुन रहा है, वह भी दबाव में क्योंकि चीन का बहुत कुछ पाकिस्तान में दांव पर लगा है।

 
पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद में झटका लगा है। सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य चीन के बीच बचाव के बाद सुरक्षा परिषद ने मान लिया है कि कश्मीर के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की औचारिक बैठक की जगह अब बंद कमरे में शुक्रवार को अनौपचारिक बैठक ही हो सकेगी, जिसमें परिषद के पांचों स्थाई सदस्य सहित 15 सदस्य ही भाग ले सकेंगे। 
 
सुरक्षा परिषद की औपचारिक बैठक के लिए न्यूनतम नौ सदस्यों की सहमति आवश्यक है, जो पाकिस्तान हासिल करने में नाकामयाब रहा है। इस बैठक में पाकिस्तान के प्रतिनिधि को अपना पक्ष रखे जाने की इजाजत नहीं होगी। परिषद में रूसी प्रतिनिधि ने बुधवार की शाम कहा कि वह तभी बैठक में भाग लेंगे, जब परिषद की बैठक बंद कमरे में अनौपचारिक होगी। मास्को की ओर से पहले ही यह कहा जा चुका है कि कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच राजनैतिक और कूटनीतिक द्विपक्षीय वार्ता एक मात्र विकल्प है। रूसी प्रतिनिधि इन निर्देशों पर अडिग रहेंगे।
 
पिछले सप्ताह पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी ने अपनी बीजिंग यात्रा में अपने समकक्ष विदेश मंत्री के सम्मुख एक के बाद एक दलीलों से उन्हें इस बात के लिए राज़ी किया था कि वह जम्मू कश्मीर के संदर्भ में अनुछेद 370 और 35ए को रद्द किए जाने तथा इस क्षेत्र का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने एवं कश्मीर में भारतीय पुलिस बल की कथित ज्यादितियों के विरुद्ध सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाएंगे। इस संबंध में कुरैशी ने सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष को भी पत्र लिखकर परिषद की औपचारिक बैठक बुलाने और पाकिस्तान की ओर से पक्ष रखने, बैठक की वार्ता को अधिकृत तौर पर रिकॉर्ड किए जाने का आग्रह किया था। लेकिन कुरैशी अथवा चीन सुरक्षा परिषद के 15 में से अपेक्षित नौ सदस्यों को औचारिक बैठक के लिए तैयार कराने में विफल रहे। इस अनौचारिक बैठक में सदस्यों की ओर से उठाई गई बातों को अधिकृत तौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। इस तरह का एक प्रयास सन् 1971 में हुआ था, तब परिषद की बैठक औपचारिक रूप से हुई थी। 
 
चीन के पाकिस्तान के प्रति रुख में कोई नयापन नहीं है। पुलवामा मामले में भी चीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद को आतंकी घोषित किए जाने के मामले में भी हरी झंडी देने में आनाकानी करता रहा था। यह तो अमेरिका और इंग्लैंड सहित अनेक देशों के दबाव का असर रहा कि चीन ने सुरक्षा परिषद की ओर से आतंकी सूची में रखे जाने की प्रस्ताव को स्वीकार किया।

चीन की मजबूरी
ऐसा नहीं है कि चीन, पाकिस्तान का घनिष्ठ पड़ोसी है और वह अपने मित्र राष्ट्र के लिए कुछ भी कर सकता है। चीन के सामने बड़ी मजबूरी बेल्ट रोड इनीशिएटिव (बीआरओ) है जिसका बड़ा हिस्सा पाकिस्तान से होकर गुजर रहा है। सड़क निर्माण के इस बड़े प्रोजेक्ट में चीन ने बहुत कुछ झोंक दिया है। अरबों युआन की राशि उसने रोड प्रोजेक्ट में लगाई है और पाकिस्तान से यारी बनाए रखने के लिए वहां बड़ी मात्रा में निवेश किया है।
 
ऐसे में चीन के सामने दो ही विकल्प हैं। पहला यह कि वह पाकिस्तान को झिड़क दे और अपने बूते बीआरओ को आगे बढ़ाए। दूसरा विकल्प उसके सामने सबकुछ बर्दाश्त करते हुए पाकिस्तान को मदद देने का है। पाकिस्तान को चीन झिड़क नहीं सकता क्योंकि उसे पता है इससे उसका पैसा तो डूबेगा ही, रोड प्रोजेक्ट में जान-माल की भी बड़ी क्षति होगी।
 
गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी आतंकी कई देशों में कोहराम मचा चुके हैं लेकिन अभी तक उन्होंने किसी चीनी नागरिक को नहीं छुआ है जो बीआरओ प्रोजेक्ट में लगे हैं। इसलिए चीन हर नफा-नुकसान देखते हुए पहले विकल्प में टिकना चाहता है। लिहाजा यूएनएससी की बैठक में वह पाकिस्तान की मदद कर रहा है।
 
बैठक में शामिल नहीं हो सकेगा पाकिस्तान
बैठक बंद दरवाजे की पीछे चलेगी लेकिन इसमें पाकिस्तान का शामिल होना नामुमकिन है क्योंकि पाकिस्तान न तो स्थाई सदस्य है और न ही अस्थाई। बंद कमरे की बैठक का प्रसारण नहीं किया जाएगा। मतलब, पत्रकारों की उसमें पहुंच नहीं होगी।
 
भारत की ओर से संविधान के अनुच्छेद 370 और 35ए को निरस्त किए जाने के बाद पाकिस्तान ने यूएनएससी से कश्मीर मसले पर बैठक बुलाने की मांग की थी। दरअसल, अनुच्छेद 370 और 35ए के प्रावधानों के तहत ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। सुरक्षा परिषद में शामिल चीन को छोड़कर बाकी सभी चारों स्थायी सदस्यों ने प्रत्यक्ष तौर पर नई दिल्ली के इस रुख का समर्थन किया है कि यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मसला है। अमेरिका ने भी कहा है कि कश्मीर के संबंध में हालिया घटनाक्रम भारत का आंतरिक मसला है।
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