संवादों को ख़त के माध्यम से कहती है ख़त की कहानी..
मिर्जा ग़ालिब का एक बड़ा ही मशहूर शेर है कि
"क़ासिद के आते-आते एक और ख़त लिख रखूं,
मैं जानता हूँ वो क्या लिखेंगे ख़त के जवाब में।।"
साहित्य में या यूं कहें हमारी संवाद परंपरा में ख़त का हमेशा से बड़ा योगदान रहा है। यूँ तो ख़त पर पहले भी कई शार्ट फिल्में बन चुकी है पर हाल में ही आयी निशांत प्रधान के निर्देशन में बनी इस शार्ट फ़िल्म ने यूट्यूब पर धमाल मचा रखा है। फ़िल्म में संवादों की जगह ख़त का पढ़ा जाना इसे अपने आप में विशेष बनाता है।
कहानी की शुरुआत नायक नदीम जिसका किरदार झारखंड के हंसडीहा निवासी राहुल जायसवाल ने निभाया है उसके ख़त से होती है। राहुल पहले भी 'एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर' जैसी बड़ी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाते रहें हैं। नदीम ने अपनी प्रेमिका नूर (समृद्धि दत्ता) को एक पत्र लिखा होता है जो उसकी पत्नी सबा (ऐश्वर्या सिंह) के हाथों में लग जाता है। सबा-नदीम की नई शादी हुई होती है पर आज भी नदीम के दिल में नूर को लेकर जो जज़्बात होते हैं उसे इस फ़िल्म में बखूबी प्रस्तुत किया गया है।
फ़िल्म में जो ख़त सबा ने नदीम के लिए लिखा है उस खत के मज़मून में स्त्री के परित्याग की भावना को मजबूती से दर्शाने का काम इस फ़िल्म के व्यापक तरीके से किया गया है। पूरे फ़िल्म में नायक का विचलित मन और नायिका का परित्याग बेजोड़ तरीक़े से रचा गया है। क्लाइमेक्स में नायक का इकलौता संवाद "कबूल है" नायिका के परित्याग और स्त्री हृदय की करुणा का मोल चुकाता नजर आता है।
पूरे फ़िल्म के दौरान बैकग्राउंड में चलता क्लासिकल संगीत दर्शकों को संवेदना के स्तर पर बखूबी जोड़ता है। स्क्रिप्ट उम्दा है, डायरेक्टर ने अपने स्तर से स्क्रिन प्ले व एंगल पर काफी मेहनत की है जो फिल्माकंन के माध्यम से स्प्ष्ट तौर पर नजर आती है। ख़ालिस उर्दू के शब्दों ने जो ख़त का मज़मून रचा गया है वह कानों में एक मिठास घोलता है।
कुल मिला कर "ख़त" का मज़मून आशिक़, माशूक़ के साथ-साथ नामा-बर की भी कहानी है। अगर आपने अबतक इस फ़िल्म को नहीं देखा तो गोया आप क्लासिकल शार्ट फिल्मों के एक दिल-चस्प हिस्से से ना-आशना है।