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कांटों भरा ताज पहन रहे हैं प्रसून जोशी
By Deshwani | Publish Date: 12/8/2017 10:57:45 AM
कांटों भरा ताज पहन रहे हैं प्रसून जोशी

मुंबई, (हि.स.)। उत्तरांचल के अल्मोड़ा से आने वाले पंडित प्रसून जोशी की पहलाज निहलानी के उत्तराधिकारी के तौर पर सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पद पर ताजपोशी कांटो भरे ताज से कम नहीं हैं। इस पद पर उनके लिए चुनौतियों के पहाड़ खड़े हैं। एक तरफ उनको सेंसर बोर्ड के भीतर का माहौल ठीक करना होगा, तो दूसरी ओर, फिल्म इंडस्ट्री के खोए विश्वास को फिर से पाने के लिए मशक्कत करनी होगी, जो उनके लिए आसान नहीं होगा। सेंसर बोर्ड की अंदरुनी खींचतान और कलह से भी उनको निपटना होगा।
प्रसुन्न जोशी मौजूदा केंद्र सरकार के करीबी माने जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के लिए जोशी ने कई गीत लिखे। पिछले साल जब सेंसर बोर्ड में सुधार और बदलाव के लिए केंद्र सरकार ने श्याम बेनेगल के नेतृत्व में एक पांच सदस्य कमेटी बनाई थी, तो जोशी इस कमेटी के सदस्यों में से एक थे। उनके अलावा पत्रकार भावना सोमैया, फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा भी इस कमेटी का हिस्सा थे। इस कमेटी ने पिछले साल अप्रैल में अपनी पहली रिपोर्ट और फिर जून में अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली को सौंप दी थी। अभी तक इस कमेटी की रिपोर्ट केंद्र सरकार के विचाराधीन है और एक आरआईटी के जवाब में मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि इस रिपोर्ट का अध्यन्न किया जा रहा है। 
जोशी को अब तक फिल्म इंडस्ट्री दो रूपों में जानती थी। विज्ञापन की दुनिया का वे बड़ा नाम हैं और सालों तक लिंटास जैसी बड़ी विज्ञापन कंपनी के संचालक रहे हैं। दूसरा रूप गीतकार के तौर पर सामने आया। उन्होंने आमिर खान की रंग दे बसंती, फना और तारे जमीं पे के गीत लिखे, तो इसके अलावा मिल्खा सिंह और सोनम कपूर की नीरजा का स्क्रिप्ट लिखा। 1999 की फिल्म भोपाल एक्सप्रेस से लेकर 2016 में आई नीरजा तक उन्होंने तकरीबन चालीस फिल्मो में गाने लिखे। फना के गाने- चांद सिफारिश के लिए उनको फिल्मफेयर मिला, तो तारे जमीं पे के लिए डरता हूं मैं मां... के लिए भी यही अवार्ड मिला। 2015 में इसी सरकार ने उनको पद्मश्री से नवाजा। 
अभी तक सेंसर बोर्ड को लेकर प्रसुन्न जोशी कहते रहे हैं कि वे खुलेपन के हिमायती हैं और सेंसर बोर्ड को उदार बनाने की जरूरत है। उनकी अब तक सोच रही है कि सेंसर बोर्ड को सिर्फ फिल्मो को सार्टिफिकेट देना चाहिए और फिल्मों पर कैंची चलाने का रिवाज बंद होना चाहिए। पहलाज निहलानी ने अपने कार्यकाल में सेंसर बोर्ड को सांस्कारिक अवतार में ढाला, तो प्रसुन्न जोशी इसे उदारवादी चेहरे में कैसे और कब तक ढाल पाएंगे, ये ही उनका सबसे बड़ा इम्तिहान होगा। 
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